फरीदाबाद : मां ने बेटे को किडनी डोनेट कर दिया नया जीवन

फरीदाबाद, 13 अक्टूबर (हि.स.)। मां दुर्गा के पावन पर्व नवरात्र में ग्रेटर फरीदाबाद स्थित एकॉर्ड अस्पताल में किडऩी की गंभीर बीमारी से जूझ रहे बेटे को मां ने अपनी किडनी देकर नया जीवन दिया है। ट्रांसप्लांट के बाद मां और बेटा दोनों स्वस्थ्य हैं। इस सफल ट्रांसप्लांट को नेफ्रोलॉजी डिपार्टमेंट के चेयरमैन डॉ. जितेंद्र कुमार ने नेतृत्व में यूरोलॉजिस्ट डॉ. सौरभ जोशी, डॉ. वरुण कटियार की टीम ने अंजाम दिया।

एसजीएम नगर 26 वर्षीय आशीष एक निजी कंपनी में नौकरी करते है। पिछले लगभग एक साल वे किडनी की बीमारी से जूझ रहे थे। उसे बार-बार डायलिसिस के लिए भागदौड़ करनी पड़ती थी। जिससे वह काफी परेशान था। युवा अवस्था होने के कारण परिजनों की किडनी ट्रांसप्लांट की सलाह दी गई। जिस पर वह राजी हो गए। वरिष्ठ किडऩी रोग विशेषज्ञ डॉ. जितेंद्र कुमार ने बताया कि किडऩी ट्रांसप्लांट किडऩी फेलियर का बेहतर विकल्प है। लेकिन इसमें समस्या ये आती है कि डोनर हमेशा कमी रही है। पहले ब्लड ग्रुप का मैच होना जरूरी होता था और बहुत बार परिवार के सदस्यों का ट्रांसप्लांट संभव नहीं होता था, क्योंकि ब्लड ग्रुप मैच नहीं करता था। इस कारण मरीज ट्रांसप्लांट से वंचित रह जाते थे।

पिछले कुछ वर्षों में ब्लड ग्रुप बदलने की तकनीक भारत में तेजी से फैल रही है। इस नवरात्र खास ये हुआ कि बेटे का मां से ब्लड ग्रुप तो नहीं मिलता था लेकिन मां की इच्छा प्रबल थी कि वह किडनी दान दे। जबकि बेटे के शरीर में मां के ब्लड ग्रुप खिलाफ एंटीबॉडी अत्यधिक था। नई तकनीक एडवांस विट्रोसर्ब सेकोरिम कोलम से ब्लड ग्रुप को बदल कर ट्रांसप्लांट को अंजाम दिया गया। नवरात्रि में एक मां के द्वारा दिया गया यह दान विशेष मायने रखता है क्योंकि मां को हम दया के रूप में भी जानते और शक्ति और प्रेम के रूप में भी जानते हैं। इस तरीके का दान एक उत्कृष्ट नमूना है मां के अपने बच्चों के प्रति प्रेम का। इस दौरान 51 मां ममता ने बेटे आशीष को अपनी एक किडऩी दान की।

ट्रांसप्लांट के बाद अब दोनों स्वस्थ है। उन्हें अस्पताल के छुट्टी दे दी गई है। यूरोलॉजिस्ट डॉ. सौरभ जोशी, डॉ. वरुण कटियार ने बताया कि एबीओ इनकंपैटिबल विधि में ए-बी-ओ का मतलब ब्लड गुप से है। इस तकनीक से मरीज और डोनर के अलग-अलग ब्लड ग्रुप के होने पर भी किडनी ट्रांसप्लांट की जा सकती है। खास बात यह है कि किडनी ट्रांसप्लांट से पहले मरीज व डोनर के एंटीबॉडीज का लेवल मानक के अनुरूप होना चाहिए। इसे डोनर के अनुरूप करने में दस दिन का समय लगता है। प्रतिदिन मरीज की बॉडी में प्लाज्मा एक्सचेंज तकनीक से एंटीबॉडीज की मात्रा घटाई जाती है।

हिन्दुस्थान समाचार / -मनोज तोमर

   

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