पर्यावरण को संतुलित करने में अहम भूमिका निभाता खेजड़ी का वृक्ष :बंडारू दत्तात्रेय
- Admin Admin
- Feb 08, 2025
![](/Content/PostImages/70eb800102d72c1b5d91f10b59aa8371_2067618634.jpg)
प्रदेश में खेजडी को सरंक्षण व बढ़ावा देने के उदेश्य से एचएयू में बैठक का आयोजनकुलपति प्रो. नरसी राम बिश्नोई ने रखे चिपको आंदोलन पर विचारहिसार, 8 फरवरी (हि.स.)। हरियाणा के राज्यपाल व हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलाधिपति बंडारू दत्तात्रेय ने कहा है कि खेजड़ी शुष्क क्षेत्र का बहुत महत्वपूर्ण वृक्ष है। इसका संपूर्ण भाग मनुष्य और पशुओं के लिए लाभदायक है तथा यह पर्यावरण को संतुलित करने में अहम भूमिका निभाता है। महामहिम राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय शनिवार को हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में खेजडी को हरियाणा में सरंक्षण व बढ़ावा देने के उदेश्य से आयोजित बैठक को संबोधित कर रहे थे। बैठक में नलवा के विधायक रणधीर पनिहार, विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कम्बोज व गुरु जम्भेश्वर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. नरसी राम व अन्य अधिकारी उपस्थित रहे। राज्यपाल ने कहा कि खेजड़ी एक नाइट्रोजन-फिक्सिंग पेड़ है जो मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाता है। खेजड़ी का उपयोग आयुर्वेद और अन्य पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों का उपयोग लंबे समय से विभिन्न बीमारियों के इलाज में किया जाता रहा है। इतने महत्वपूर्ण वृक्ष का संरक्षण व इसको बढावा देना जरूरी है। इसके लिए विश्वविद्यालय शोध करें, किसानों को पौधे उपलब्ध करवाएं और किसानों में खासतौर पर युवाओं को इसके महत्व के बारे में जागरूक करें। उन्होनें सामाजिक संगठनों व कार्यकत्ताओं को भी इस मुहिम से जोडऩे को कहा ताकि वे ज्यादा से ज्यादा लोगों को इसके बारे में जागरूक कर सकें।खेजड़ी का फसलों पर सकारात्मक प्रभाव: प्रो.बीआर कम्बोजविश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कम्बोज ने बताया कि खेजड़ी जिसे रेगिस्तान का राजा भी कहा जाता है, पारंपरिक कृषि वानिकी प्रणालियों में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। हरियाणा में मुख्य रूप से सिरसा, फतेहाबाद, हिसार, भिवानी, महेंद्रगढ़, रेवाड़ी और चरखी दादरी जिलों में पाया जाता है। हकृवि के वानिकी विभाग ने विभिन्न कृषि वानिकी मॉडलों पर परीक्षण किए हैं जिसमें पाया गया कि खेजड़ी के साथ जो फसल बोई जाती है उस फसल की उत्पादकता सामान्य से अधिक होती है। यह मिट्टी की उर्वरता क्षमता को बढाता है। इस वृक्ष की फलियां स्थानीय रूप से सांगरी के रूप में जानी जाती हैं, जिसमें पौषक तत्व भरपूर मात्रा मे होते है। खेजड़ी की फलियां जिनका मूल्य संर्वधन करके जैसी सब्जी, अचार, लड्डू, चटनी, बिस्किट इत्यादि खाद्य उत्पाद निर्मित करके पौषण सुरक्षा व उद्यमिता को बढावा मिल सकता है। इस पेड़ की छाल के अर्क का उपयोग बिच्छू और सांप के काटने के लक्षणात्मक उपचार में किया जाता रहा है। यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि खेजड़ी थार रेगिस्तान के नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र में एक आधारशिला प्रजाति है।बाउंडरी पर खेजड़ी के पेड जरूर लगाने चाहिए : पनिहारविधायक रणधीर पनिहार ने कहा कि किसान को बाउंडरी पर खेजड़ी के पेड जरूर लगाने चाहिए। उन्होंने विश्वविद्यालय को शोध के लिए जमीन व अन्य किसी प्रकार की सहायता देने का आश्वासन दिया व इस महत्वपूर्ण विषय पर बैठक के आयोजन के लिए धन्यवाद किया।डिमांड वाले क्षेत्र में होनी चाहिए इस पौधे की उपलब्धता : नरसी राम बिश्नाेईगुरु जम्भेश्वर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. नरसी राम ने बैठक में चिपको आंदोलन व अन्य विषयों पर अपने विचार रखे।उन्होंने कहा कि फिलहाल इस पौधे की गांव झुम्पा में नर्सरी है, लेकिन वातावरण को फायदा पहुंचाने वाले इस पौधे की उपलब्धता तमाम डिमांड वाले क्षेत्र में होनी चाहिए।अनुसंधान निदेशक डॉ. राजबीर गर्ग ने खेजड़ी पर विस्तृत रूपरेखा प्रस्तुत की। इस अवसर पर वन मंडल अधिकारी, रोहतास बीरथल, ओएसडी डॉ. अतुल ढीगड़ा, रजिस्ट्रार डॉ. पवन कुमार, अधिष्ठाता कृषि महाविद्यालय, डॉ. एसके पाहुजा, एसवीसी कपिल अरोड़ा, विभागाध्यक्ष वानिकी विभाग डॉ. संदीप आर्य व डॉ. उर्वशी नांदल सहित अन्य अधिकारी उपस्थित रहे।
हिन्दुस्थान समाचार / राजेश्वर