हिसार : एचएयू वैज्ञानिकों ने पहली बार की कपास के उखेड़ा रोग में नए पैथोटाइप की पहचान

अंतरराष्ट्रीय स्तर के एल्सेवियर प्रकाशन ने दी मान्यता

हिसार, 5 मार्च (हि.स.)। हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने कपास

फसल के लिए घातक फयूजेरियम विल्ट रोग (उखेड़ा रोग) के एक नए पैथोटाइप (रेस-1) की पहचान

की है। देश में पहली बार कपास के उखेड़ा रोग की बीमारी का पता चला है। विश्वविद्यालय

के कुलपति प्रो. बीआर कम्बोज के निर्देशानुसार वैज्ञानिकों ने इस रोग के प्रबंधन के

कार्य शुरू कर दिए हैं। वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि वे जल्द ही इस दिशा में भी कामयाब

होंगे।

अंतरराष्ट्रीय प्रकाशन ने दी बीमारी को मान्यता, एचएयू के वैज्ञानिक हैं पहले

शोधकर्ता

एल्सेवियर एक डच एकादमिक प्रकाशन कंपनी है जो वैज्ञानिक, तकनीक और चिकित्सा

सामग्री में विशेषज्ञता रखती है। इसमें प्रकाशित फिजियोंलोजिकल एंड मोलिकुलर प्लांट

पैथोलोजी में वैज्ञानिकों ने इस बीमारी की रिपोर्ट को प्रथम शोध रिपोर्ट के रूप में

प्रकाशन में स्वीकार कर मान्यता दी है। जो विशेषता पौधों की बीमारियों के पौधों में

नई बीमारी को मान्यता देने वाली अध्ययन के लिए सबसे पुराने अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक

संगठनों में से एक है जो विशेषत: पौधों की बीमारियों पर विश्वस्तरीय प्रकाशन प्रकाशित

करती है। हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक देश में इस बीमारी की खोज करने वाले

सबसे पहले वैज्ञानिक हैं। इन वैज्ञानिकों ने कपास के उखेड़ा रोग पर शोध रिपोर्ट प्रस्तुत

की है जिसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संस्था ने मान्यता प्रदान करते हुए अपने जर्नल में

प्रकाशन के लिए स्वीकार किया है।

बीमारी के बाद इसके प्रकोप की निगरानी व उचित प्रबंधन का हो लक्ष्य : कम्बोज

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कम्बोज ने वैज्ञानिकों की इस खोज के लिए

बधाई दी। प्रो. कम्बोज ने कहा कि बदलते कृषि परिदृश्य में विभिन्न फसलों में उभरते

खतरों की समय पर पहचान महत्वपूर्ण हो गई है। उन्होंने वैज्ञानिकों से बीमारी के प्रकोप

पर कड़ी निगरानी रखने को कहा। वैज्ञानिकों को रोग नियंत्रण पर जल्द से जल्द काम शुरू

करना चाहिए।

इन वैज्ञानिकों का रहा अहम योगदान

अनुसंधान निदेशक डॉ. राजबीर गर्ग ने बताया कि फयूजेरियम विल्ट रोग विश्वभर

में कपास की फसलों के लिए गंभीर खतरा बना हुआ है। पहले यह रोग देसी कपास की फसल में

पाया जाता था लेकिन अब देसी व नरमा कपास की दोनों फसलों में इस रोग ने विकराल रूप धारण

कर लिया है। यह खोज कपास की खेती की सुरक्षा के लिए निगरानी और मजबूत प्रबंधन रणनीतियों

की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करती है। कृषि विशेषज्ञों ने रोग की सतत निगरानी, संक्रमण-प्रतिरोधी

कपास किस्मों के उपयोग और मृदा स्वास्थ्य सुधार तकनीकों को अपनाने की सलाह दी है।

उखेड़ा रोग के मुख्य शोधकर्ता डॉ. अनिल कुमार सैनी ने बताया कि शोधकर्ता इस

बीमारी के प्रकोप को समझने और इसके प्रभाव को कम करने के लिए लक्षित उपाय विकसित करने

में जुटे हुए हैं, जिससे भारतीय कपास उत्पादन की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। एचएयू

के वैज्ञानिकों डॉ. अनिल कुमार, डॉ. राकेश कुमार, डॉ. राजेश कुमार, डॉ. करमल सिंह,

डॉ. सतीश कुमार सैन, डॉ. किशोर कुमार, डॉ. अनिल जाखड़, डॉ. शिवानी मंधानिया, डॉ. शुभम

लांबा व पीएचडी छात्र शुभम सैनी ने भी इस शोधकार्य में योगदान दिया।

हिन्दुस्थान समाचार / राजेश्वर

   

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