होलाष्टक 7 मार्च से होंगे प्रारंभ, 14 मार्च को होंगे समाप्त
- Neha Gupta
- Mar 03, 2025
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जम्मू, 3 मार्च । जम्मू फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से लेकर फाल्गुन पूर्णिमा तक होलाष्टक रहता है। श्री कैलख ज्योतिष एवं वैदिक संस्थान ट्रस्ट के अध्यक्ष, ज्योतिषाचार्य महंत रोहित शास्त्री ने बताया कि होली के पर्व से आठ दिन पहले होलाष्टक प्रारंभ होते हैं। इस वर्ष होलाष्टक 07 मार्च (शुक्रवार) से शुरू होकर 14 मार्च (शुक्रवार) को समाप्त होंगे।
धर्म से जुड़ी धार्मिक किंवदंतियों के अनुसार, होली से ठीक आठ दिन पहले विवाह, गृह प्रवेश, यज्ञ-हवन, सगाई, मुंडन संस्कार और अन्य शुभ कार्य वर्जित माने जाते हैं। इन आठ दिनों को होलाष्टक कहा जाता है। हालांकि, बहुत कम लोग जानते हैं कि होलाष्टक केवल देश के कुछ क्षेत्रों में ही प्रचलित है। आइए जानते हैं कि यह किन स्थानों पर मनाया जाता है और कहां नहीं।
होलाष्टक का प्रभाव किन क्षेत्रों में माना जाता है?
शास्त्रों के अनुसार, विपाशा (व्यास), इरावती (रावी), शुतुद्री (सतलुज) नदियों के निकटवर्ती नगर, ग्राम एवं क्षेत्र तथा त्रिपुष्कर (पुष्कर) क्षेत्र में होलाष्टक दोष प्रभावी रहता है। इन क्षेत्रों में फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा (होलिका दहन) से पूर्व के आठ दिनों में विवाह, यज्ञोपवीत आदि शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं। इस प्रकार, संपूर्ण पंजाब प्रांत, हिमाचल प्रदेश के कुछ भाग तथा राजस्थान में अजमेर (पुष्कर) एवं आसपास के क्षेत्रों में विशेष रूप से होलाष्टक का पालन करना शास्त्रसम्मत माना जाता है। लेकिन देश के कई हिस्सों में, जैसे दक्षिण भारत, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र आदि में, होलाष्टक की परंपरा नहीं मानी जाती, और वहां इन दिनों में शुभ कार्य किए जा सकते हैं।
होलाष्टक का पौराणिक संदर्भ
राजा हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र भक्त प्रह्लाद को भगवान श्री विष्णु की भक्ति से रोकने के लिए अनेक प्रयास किए। फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से पूर्णिमा तक उसने प्रह्लाद को अत्यधिक यातनाएँ दीं और कई बार उसकी हत्या का प्रयास किया, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद को कुछ भी नहीं हुआ। अंततः, हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को प्रह्लाद को मारने का आदेश दिया। होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि वह अग्नि में नहीं जल सकती, इसलिए वह प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठ गई। लेकिन भगवान श्री विष्णु ने अपने भक्त की रक्षा की, जिससे होलिका स्वयं जलकर भस्म हो गई, जबकि प्रह्लाद सुरक्षित रहा।