सिंधु जल संधि, 1960 के तहत तटस्थ विशेषज्ञ के निर्णय का भारत ने किया स्वागत

नई दिल्ली, 21 जनवरी (हि.स.)। भारत ने सिंधु जल संधि-1960 के अनुबंध एफ के पैराग्राफ 7 के तहत तटस्थ विशेषज्ञ की उसकी क्षमता के बारे में दिए गए निर्णय का स्वागत किया है। विदेश मंत्रालय ने कहा है कि यह निर्णय भारत के रुख का समर्थन करता है कि किशनगंगा और रतले जलविद्युत परियोजनाएं के संबंध में सभी सात प्रश्न संधि के तहत तटस्थ विशेषज्ञ के अंतर्गत आने वाले मतभेद हैं।

मंत्रालय ने कहा है कि संधि एक ही तरह के मतभेदों पर समानांतर कार्यवाही की अनुमति प्रदान नहीं करता है। इस कारण से भारत अवैध रूप से गठित मध्यस्थता न्यायालय की कार्यवाही को मान्यता नहीं देता है या इसमें भाग नहीं लेता है। तटस्थ विशेषज्ञ ने सिंधु जल संधि के तहत परियोजनाओं से संबंधित कुछ मुद्दों को संबोधित करने की अपनी क्षमता पर 20 जनवरी को एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की है।

विदेश मंत्रालय के बयान के अनुसार भारत की सुसंगत और सैद्धांतिक स्थिति यह रही है कि संधि के तहत केवल तटस्थ विशेषज्ञ ही इन मतभेदों को तय करने की क्षमता रखता है। तटस्थ विशेषज्ञ अब अपनी कार्यवाही के अगले चरण में आगे बढ़ेंगे। यह चरण सात मतभेदों में से प्रत्येक पर अंतिम निर्णय देंगे। संधि की पवित्रता और अखंडता को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध होने के नाते भारत तटस्थ विशेषज्ञ प्रक्रिया में भाग लेना जारी रखेगा ताकि मतभेदों को संधि के प्रावधानों के अनुरूप तरीके से हल किया जा सके।

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हिन्दुस्थान समाचार / अनूप शर्मा

   

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