सांस्कृतिक आतंकवाद से निपटने काे एकात्म दर्शन की आवश्यकता: डॉ मुरली मनोहर जोशी
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- Feb 06, 2025
—कश्मीर: अतीत, वर्तमान और भविष्य विषयक गोष्ठी का भाजपा के वरिष्ठ नेता ने किया उद्घाटन
वाराणसी, 06 फरवरी (हि.स.)। भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व केन्द्रीय मंत्री डॉ मुरली मनोहर जोशी ने सांस्कृतिक आतंकवाद से निपटने के लिए एकात्म दर्शन की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि भारत एक सांस्कृतिक चेतना के रूप में जीवित है और रहेगा । कश्मीर, जम्मू और लद्दाख की एकात्मक संस्कृति को बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है। ये तीनों क्षेत्र एक ही है अलग नहीं है।
डॉ जोशी गुरूवार को वाराणसी इन्स्टीट्यूट ऑफ हिस्ट्री की पहल पर वैदिक विज्ञान केंद्र बीएचयू के सभागार में आयोजित कश्मीर: अतीत, वर्तमान और भविष्य विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र को वर्चुअल सम्बोधित कर रहे थे। डॉ जोशी ने युवाओं से अपने देश की संस्कृति को बचाने की अपील कर कहा कि देश की चेतना को जागृत करने का दायित्व सभी के उपर है। सनातन संस्कृति के आधार पर एक विश्व के निर्माण की कल्पना मेरे मन में है। कार्यक्रम में डॉ जोशी ने इतिहास एवं संस्कृति में श्रीराम नामक पुस्तक का विमोचन भी किया। इस पुस्तक में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के जीवन के सभी पहलुओं पर विस्तृत चर्चा की गई है।
गोष्ठी में जम्मू-कश्मीर अध्ययन केंद्र के निदेशक आशुतोष भटनागर ने कश्मीर का विश्लेषण किया। उन्होंने भारत की वैदिक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक सीमाओं के परिपेक्ष्य में करने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि महाराज रणजीत सिंह और महाराजा गुलाब सिंह का योगदान कश्मीर के ऐतिहासिक परिपेक्ष्य में अत्यंत महत्वपूर्ण है। भटनागर ने पाकिस्तान के कश्मीर को लेकर बयानबाजी और आक्रामक तेवर पर खासतौर चर्चा की और शोध के दौरान भ्रामक तथ्यों से बचने की सलाह दी।
गोष्ठी में आमंत्रित अतिथि बेल्जियम के दर्शनशास्त्री कोनार्ड एल्स ने कश्मीर समस्या के विभिन्न पहलुओं को समझने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कश्मीरी हिंदुओं के विस्थापन का उल्लेख करते हुए आतंकवाद और अलगाववाद के कश्मीर प्रभावों पर भी प्रकाश डाला। अध्यक्षता हिमाचल प्रदेश केन्द्रीय विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. कुलदीप चंद्र अग्निहोत्री ने की। उन्हाेंने कहा कि महाराजा रणजीत सिंह के बिना कश्मीर के इतिहास को नही समझा जा सकता। जम्मू कश्मीर के संवैधानिक माडल में हरि सिंह शामिल करना चाहते थे। लेकिन पंडित नेहरू चाहते थे कि हरि सिंह सत्ता का हस्तांतरण शेख अब्दुल्ला के पक्ष में करें। प्रो. कुलदीप चंद ने कहा कि कश्मीर के लोग पाकिस्तान में जाना चाहते हैं, यह नरेटिव सेट किया गया है। गोष्ठी में आए अतिथियों का स्वागत वाराणसी इन्स्टीट्यूट ऑफ हिस्ट्री की संस्थापक निदेशक और बीएचयू इतिहास विभाग की एमेरिटस प्रो.अरूणा सिंहा ने की। उद्घाटन सत्र में बेल्जियम, पुर्तगाल, इथोपिया, इंडोनेशिया सहित अन्य देशों से विद्वान जुड़े थे और भारत के पंद्रह राज्यों से लगभग 150 प्रतिभागियों ने भाग लिया।
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हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी