महाकुम्भ में संतों को 'संघ' के कार्यो का बोध करा रहा आरएसएस
- Admin Admin
- Feb 01, 2025
-महाकुम्भ में साधु-संतों, शंकराचार्य, महामंडलेश्वरों से संघ कर रहा सम्पर्क-महाकुम्भ में आए 1000 संतों से सम्पर्क कर चुका है आरएसएस महाकुम्भ नगर, 01 फरवरी (हि.स.)। विश्व के सबसे बड़े सनातनी मेले में समाई दुनिया को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) न केवल 'संघ' का बोध करा रहा है, बल्कि मानवता की राह दिखाने के साथ 'वसुधैव कुटुंबकम' की भाव से एकता के सूत्र में पिरोने का भी काम कर रहा है। संघ ने वैचारिक संगठनों को छह श्रेणी समूहों में रचना की है-सामाजिक एवं सांस्कृतिक, सेवा, शिक्षा, सुरक्षा, आर्थिक और वैचारिकी। इससे जुड़े सभी संगठनों के पदाधिकारी क्रमश: महाकुम्भ में आकर जहां संतों का आशीर्वाद ले रहे हैं, वहीं संघ के उद्धेश्यों एवं कार्यो से संतों को परिचित भी करा रहे हैं।
साधु-संतों, शंकराचार्य, महामंडलेश्वरों से संघ कर रहा सम्पर्क
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इस महाकुंभ के दौरान साधु-संतों, शंकराचार्य, महामंडलेश्वर और श्रद्धालुओं से संपर्क अभियान चला रहा है। संघ का मानना है कि महाकुम्भ सिर्फ धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि समाज को जोड़ने और राष्ट्र को संगठित करने का एक माध्यम भी है। देश के विभिन्न प्रांतों से आए संघ के वरिष्ठ पदाधिकारी और स्वयंसेवक आचार्य, शंकराचार्य, महामंडलेश्वर और साधु-संतों को संघ की विचारधारा और कार्यों से अवगत करा रहे हैं। साथ ही 'राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की परिचय दृष्टि' पुस्तक भेंट कर रहे हैं। सच तो यह है कि संघ को किताबों से नहीं समझा जा सकता। फिर भी जिज्ञासुओं को संघ के बारे में कुछ प्राथमिक जानकारी देने में यह पुस्तक सहायक होगी। यह 'राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ' क्या है ? संघ की आवश्यकता अर्थात् 'राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ क्यों' को समझाने का प्रयास है। यह पुस्तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख नरेन्द्र ठाकुर ने लिखी है।
महाकुम्भ में संघ परिवार सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय की थीम पर कार्य कर रहा है, जिससे समाज के विभिन्न वर्गों के बीच एकता और समरसता को बढ़ावा दिया जा सके। संघ की रोचक दुनिया को एकता के सूत्र में पिरोने, संगठनात्मक बोध कराने और प्रगाढ़ता को लेकर विस्तृत प्रयास किए जा रहे हैं। महाकुम्भ में संघ ने व्यापक स्तर पर सेवा कार्यों का आयोजन किया है, जिनमें भोजन सेवा, चिकित्सा सुविधा, सुरक्षा व्यवस्था और स्वच्छता अभियान शामिल है।
महाकुम्भ में संघ का दिख रहा सम्पर्क एवं समर्पण का अद्भुत नजारा
अखिल भारतीय संपर्क प्रमुख रामलाल जी और सह संघ कार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल जी के नेतृत्व में प्रत्येक प्रांत से एक टोली गठित की गई है, जो मेला क्षेत्र में सेक्टरवार कार्य कर रही है। इस टोली द्वारा अब तक 1000 से अधिक संतों से संपर्क किया जा चुका है। इनमें शंकराचार्य, आचार्य महामंडलेश्वर, मण्डलेश्वर, कथावाचक, देश के बड़े स्वयंसेवी संस्थान, अन्य प्रमुख संतगण एवं आम श्रद्धालु भी शामिल हैं। इस संपर्क अभियान के दौरान, संतों को संघ की विचारधारा से अवगत कराया जा रहा है और उन्हें संघ साहित्य भेंट किया जा रहा है। 25 सेक्टर में बंटे महाकुम्भ में सेक्टर वार टोली सेवा कार्य के साथ अब तक 1000 से अधिक संतों से संपर्क कर चुकी है।
महाकुम्भ में संघ नेतृत्व सेवा के साथ संतों को ले रहा आशीर्वाद
संघ के इस व्यापक अभियान में आरएसएस के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य एवं पूर्व सरकार्यवाह भैयाजी जोशी, सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल, अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख स्वांत रंजन, अखिल भारतीय संपर्क प्रमुख रामलाल, अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर सहित कई वरिष्ठ पदाधिकारी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। इसके अतिरिक्त पूर्वी एवं पश्चिमी उप्र क्षेत्र के संत सम्पर्क प्रमुख शिवनारायण, क्षेत्र प्रचारक अनिल कुमार, सह क्षेत्र संपर्क प्रमुख मनोज कुमार, क्षेत्र प्रचार प्रमुख सुभाष, सह क्षेत्र प्रचार प्रमुख मनोजकांत, काशी प्रान्त के प्रान्त प्रचारक रमेश, प्रदेश के अन्य प्रान्तों के प्रान्त प्रचारक तथा देशभर के सभी प्रान्तों से एक समर्पित कार्यकर्ताओं की टोली इस अभियान में सक्रिय हैं। ये पदाधिकारी जहां महाकुम्भ में विभिन्न कार्यो में जुटे स्वयंसेवकों का मार्गदर्शन, सेवा के लिए प्रेरित तो वहीं संतों की कुटियों में जाकर उनका आशीर्वाद भी ले रहे हैं।
संघ पदाधिकारी दे रहे संगठनात्मक बोध और एकता का संदेश
पूर्वी उत्तर प्रदेश क्षेत्र के सह सम्पर्क प्रमुख मनोज कुमार ने हिन्दुस्थान समाचार को बताया कि संघ की इस पहल का मुख्य उद्देश्य समाज में संगठनात्मक बोध को बढ़ावा देना और विविध धर्मों एवं संप्रदायों के बीच समरसता स्थापित करना है। भारत की आध्यात्मिक धरोहर को संजोते हुए आरएसएस विश्व को यह संदेश देना चाहता है कि एक संगठित समाज ही सशक्त राष्ट्र की नींव रख सकता है। संघ का यह प्रयास सामाजिक समरसता को बढ़ाने, धार्मिक एवं सांस्कृतिक मूल्यों को प्रोत्साहित करने और एकजुट समाज की दिशा में सार्थक योगदान देने का एक सशक्त उदाहरण है।
वसुधैव कुटुंबकम् की अवधारणा का साकार स्वरूप है महाकुम्भ
पूर्वी उप्र क्षेत्र के क्षेत्र प्रचार प्रमुख सुभाष ने हिन्दुस्थान समाचार से कहा कि महाकुम्भ 'वसुधैव कुटुंबकम' की उस अवधारणा को चरितार्थ करता है जिसमें संपूर्ण विश्व को स्वयं में समाहित करने की शक्ति है। देश-दुनिया से अनेक लोग अपने-अपने आस्था-विश्वास की डोर को हाथों में थाम कर, अपने रीति-रिवाज, संस्कार, आचार-व्यवहार को अपने साथ लेकर भारत भूमि पर आए हैं और यहां का दृश्य देख वे आश्चर्य और विस्मय से भर गए हैं। वे देख रहे हैं कि भारत की सनातन संस्कृति किस तरह से अपनी बांहे खोल उनका स्वागत कर रही है। वे देख रहे है यहां की सामाजिक समरसता को जहां लिंग, जाति, धर्म, पंथ, सम्प्रदाय, मत, अमीर-गरीब, पूरब-पश्चिम के भेद का कोई अर्थ नहीं है। यहां अनेक को एकाकार होते हुए देखा जा सकता है। महाकुम्भ अपने पूर्ण उत्साह से चल रहा है। कुम्भ हमारी सनातन संस्कृति की आस्था और आध्यात्मिकता की रीढ़ है।
आध्यात्मिक आलोक में साकार होता सनातन भारत
त्रिवेणी संगम पर विश्व की अद्भुत और आध्यात्मिक नगरी बसी हुई है। चार हेक्टेयर क्षेत्रफल में बसी कुंभनगरी आस्था, विश्वास, समपर्ण, ज्ञान, संस्कृति, परंपरा, नवाचार, धर्म और रोजगार के साथ मानवता की मूर्त विरासत है। भारत की सांस्कृतिक विरासत और समाजशास्र को समझने का यह अनुपम प्रकल्प है। इसका अर्थतंत्र भी देखने और समझने लायक है। महाकुम्भ में नर सेवा-नारायण सेवा ध्येय वाक्य साकार हो रहा है। अनन्य आस्था, अगाध भक्ति, हर्ष-उमंग, सनातनी भावनाओं के उमड़ते ज्वार को पूरे विश्व ने देखा। गंगा, यमुना, सरस्वती के तट पर 50 दिन के लिए बसा महाकुम्भ नामक देश अपनी पौराणिक संस्कृति, धर्म, ज्ञान, नए सरोकारों, रोजगार सृजन के साथ सामाजिक सम्बधों की संरचना, व्यवस्था, प्रकार्यात्मक समागम स्थापित करेगा।
राष्ट्र सेवा का अखंड प्रवाह है संघ
संतों को भेंट स्वरूप दी जा रही पुस्तक में उल्लेखित है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ विश्व का सबसे बड़ा सांस्कृतिक स्वयंसेवी संगठन है। इसके बारे में अधिकाधिक जानने की इच्छा लोगों में सदा से ही रही है। आजादी के बाद प्राय: संघ विचार के विरोधी ही सत्ता में रहे। उन्होंने बहुत भ्रम फैलाए, पर संघ ने इस ओर ध्यान नहीं दिया और अपने काम में लगा रहा। संघ राजनीतिक संस्था नहीं है, पर भारत के नागरिक होने के नाते स्वयंसेवक राजनीति में जरूर हैं। ऐसे ही एक स्वयंसेवक पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी थे। जब वे प्रधानमंत्री बने तो उन्हें लगा कि 'भारतीय जनता पार्टी' की वृद्धि और विस्तार का रहस्य संघ की कार्यप्रणाली में है। 2014 और 2019 फिर 2024 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा-एनडीए की सरकार बनने से लोगों का यह विश्वास और दृढ़ हुआ है।
हिंदू राष्ट्र बनाने के लक्ष्य के साथ हुई थी संघ की स्थापना
दुनिया के सबसे बड़े स्वयंसेवी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना केशव बलराम हेडगेवार ने की थी। भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने के लक्ष्य के साथ 27 सितंबर 1925 को विजयदशमी के दिन आरएसएस की स्थापना की गई थी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इस वर्ष अपनी यात्रा के 100 वर्ष पूरे कर लेगा। यह किसी भी संगठन के लिए महत्वपूर्ण बात होती है कि इतने लंबे कार्यकाल में उसका निरंतर विस्तार होता रहे। अपनी 100 वर्ष की यात्रा में संघ ने समाज का विश्वास जीता है। संघ का विचार रहा है कि-'कथनी नहीं, व्यवहार से स्वयं को समाज के समक्ष प्रस्तुत करो'। 1925 के विजयदशमी पर्व से अब तक संघ के स्वयंसेवकों ने यही किया। नागपुर के अखाड़ों से तैयार हुआ संघ मौजूदा समय में विराट रूप ले चुका है।
हिन्दुस्थान समाचार / राजेश