मंडी की महिलाएं हल्दी उत्पादन से बदल रही हैं अपनी तकदीर

शिमला, 30 मार्च (हि.स.)। जिला मंडी के धर्मपुर क्षेत्र की महिलाएं पारंपरिक खेती से हटकर हल्दी उत्पादन में सफलता की नई कहानी लिख रही हैं। प्रदेश सरकार द्वारा जैविक हल्दी के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) घोषित किए जाने से इन महिलाओं का उत्साह और बढ़ गया है। पहले 35 रुपये प्रति किलो के हिसाब से हल्दी बेच रहीं ये महिलाएं अब 90 रुपये के समर्थन मूल्य से अपनी आय में तीन गुना बढ़ोतरी देखकर बेहद खुश हैं। इसके लिए उन्होंने प्रदेश सरकार का आभार भी जताया है।

हल्दी की खेती से आत्मनिर्भर बनीं महिलाएं

धर्मपुर क्षेत्र के तनिहार गांव की कमलेश कुमारी भी उन्हीं मेहनतकश महिलाओं में शामिल हैं, जिन्होंने हल्दी की खेती को अपनाकर अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत किया है। पहले उनका परिवार पारंपरिक खेती करता था, लेकिन खराब मौसम और जंगली जानवरों के उत्पात के कारण खेती बंद करनी पड़ी। बाद में उन्होंने एफपीओ (फार्मर प्रोड्यूसर ऑर्गनाइजेशन) धर्मपुर से जुड़कर हल्दी की खेती शुरू की। हल्दी को जंगली जानवर नुकसान नहीं पहुंचाते, जिससे यह फसल सुरक्षित रहती है।

कमलेश कुमारी ने बताया कि खंड विकास अधिकारी कार्यालय धर्मपुर से जानकारी मिलने पर गांव की महिलाओं ने ‘जय बाबा कमलाहिया स्वयं सहायता समूह’ का गठन किया। इस समूह की छह महिलाएं स्थानीय प्राकृतिक उत्पादों से आचार और अन्य खाद्य सामग्री बनाती हैं। पहले ये महिलाएं ग्राम स्तर पर दुकानों में अपने उत्पाद बेचती थीं, लेकिन कोई अच्छा ब्रांड न होने से उन्हें उचित मूल्य नहीं मिल पाता था। एफपीओ की मदद से उनके उत्पादों को ‘पहाड़ी रतन’ ब्रांड मिला और इसका विपणन भी आसान हो गया। इससे मुनाफा बढ़ा और अब वे हर महीने 15 से 18 हजार रुपये कमा रही हैं।

मुख्यमंत्री के बजट से हल्दी उत्पादकों को मिला संबल

कमलेश कुमारी ने कहा कि मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू द्वारा घोषित बजट में जैविक हल्दी का समर्थन मूल्य 90 रुपये प्रति किलो तय किया गया है। इससे हल्दी उगाने वाले किसानों को निश्चित रूप से फायदा होगा। उन्होंने उम्मीद जताई कि जो किसान जंगली जानवरों के कारण खेती छोड़ चुके थे, वे भी अब सरकार की किसान हितैषी योजनाओं से प्रेरित होकर फिर से खेती की ओर लौटेंगे।

हल्दी की खेती से बढ़ी आमदनी, गांवों में बढ़ रहा रुझान

स्वयं सहायता समूह ‘श्री अन्न महिला प्रोसेसिंग सेंटर’ घरवासड़ा से जुड़ी सरोजनी देवी ने बताया कि वे पिछले दो साल से जैविक हल्दी की खेती कर रही हैं। पहले वे मक्की, गेहूं और रागी की खेती करती थीं, लेकिन बारिश और बंदरों के कारण फसलें अक्सर खराब हो जाती थीं। वर्ष 2023 में उन्होंने एफपीओ धर्मपुर से जुड़कर जैविक हल्दी परियोजना के बारे में जानकारी ली और तीन से चार बीघा भूमि पर हल्दी की खेती शुरू की।

पहले वर्ष एफपीओ ने खेतों से ही 25 रुपये प्रति किलो के हिसाब से हल्दी खरीदी, लेकिन अब सफाई के बाद यह 35 रुपये किलो में बिक रही है। समूह की महिलाएं खुद ही हल्दी की कटाई, सुखाई, पिसाई और पैकिंग करती हैं, जिससे उनके समय और श्रम की बचत होती है। इससे उन्हें सालाना एक से डेढ़ लाख रुपये तक की आय हो रही है। बढ़ती आय से बच्चों की पढ़ाई और परिवार की आर्थिक स्थिति भी सुधर रही है।

गांव के अन्य किसान भी अब हल्दी की खेती की ओर रुझान दिखा रहे हैं। पूरे क्षेत्र में 20 से 25 क्विंटल जैविक हल्दी का उत्पादन हो रहा है, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी मजबूती मिल रही है। सरकार के समर्थन से हल्दी उत्पादन करने वाली महिलाओं को आर्थिक संबल मिल रहा है, जिससे वे आत्मनिर्भर बनने की ओर तेजी से बढ़ रही हैं।

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हिन्दुस्थान समाचार / उज्जवल शर्मा

   

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