नटरंग ने सरकारी दफ्तरों की हकीकत को उजागर करते हुए सरकारी दफ्तर का एक दिन पेश किया

जम्मू, 27 अक्टूबर (हि.स.)। नटरंग ने अपनी संडे थियेटर सीरीज में लक्ष्मीकांत वैष्णव द्वारा लिखित और नीरज कांत द्वारा निर्देशित हिंदी नाटक ‘सरकारी दफ्तर का एक दिन’ कच्ची छावनी स्थित स्टूडियो थिएटर में पेश किया। नाटक में सरकारी दफ्तर के रोजमर्रा के कामकाज को दर्शाया गया है जिसमें हास्य और यथार्थवाद के माध्यम से नौकरशाही की बुराइयों को उजागर किया गया।

यह कहानी एक सरकारी दफ्तर की है जिसमें ऐसे कर्मचारियों को दिखाया गया है जो सुरक्षित नौकरी होने के चलते समय की पाबंदी की अनदेखी करते हैं और अपनी जरूरतों के हिसाब से नियमों में हेरफेर करते हैं। नाटक में लालफीताशाही, भाई-भतीजावाद, पक्षपात, भ्रष्टाचार, अनुपस्थिति और चाटुकारिता को हास्यपूर्ण ढंग से उजागर किया गया है जो दफ्तर की संस्कृति की एक प्रामाणिक तस्वीर पेश करता है।

कहानी में दफ्तर का चपरासी जो अपने वरिष्ठों के कई राज रखता है अछूत है और निजी फायदे के लिए इस शक्ति का फायदा उठाता है। हालांकि एक मंत्री के रिश्तेदार को विशेष सुविधा मिलती है जो अपने राजनीतिक संबंधों के कारण परिणामों से मुक्त है। यहां तक ​​कि विभागाध्यक्ष जिनसे ईमानदारी बनाए रखने की अपेक्षा की जाती है अक्सर निजी सुख के लिए काम छोड़ देते हैं।

कथानक में एक मोड़ तब आता है जब एक सतर्कता अधिकारी अप्रत्याशित रूप से कार्यालय पर छापा मारता है जिससे सभी चौंक जाते हैं। अधिकारी अनुपस्थित कर्मचारियों को निलंबित करने का आदेश देता है जिससे क्षण भर के लिए सुशासन की उम्मीद जग जाती है। हालांकि यह छापा महज एक सपना बनकर रह जाता है जिससे सरकारी कार्यालयों की असंतुलित स्थिति बरकरार रहती है जो अक्सर सरकारी कार्यालयों की अपरिवर्तनीय प्रकृति का प्रतीक है।

नटरंग की प्रस्तुति सरकारी दफ्तर का एक दिन ने दर्शकों को नौकरशाही प्रणालियों के भीतर की अक्षमताओं की एक व्यंग्यपूर्ण लेकिन विचारोत्तेजक झलक पेश की जिसमें सरकारी संचालन के भीतर व्याप्त खामियों पर हास्य के साथ सामाजिक टिप्पणी का मिश्रण किया गया।

हिन्दुस्थान समाचार / राहुल शर्मा

   

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