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देहरादून, 14 फ़रवरी (हि.स.)। उत्तराखंड की सुरम्य वादियों में आयोजित 38वें राष्ट्रीय खेल न केवल खेल प्रतिभाओं के प्रदर्शन का मंच बने, बल्कि राष्ट्रीय एकता और सांस्कृतिक मेलजोल का जीवंत उदाहरण भी साबित हुए। इस भव्य आयोजन में देशभर से आए 10,000 से अधिक खिलाड़ी, कोच और अधिकारी खेल के साथ-साथ विभिन्न संस्कृतियों से परिचित होकर आपसी भाईचारे को मजबूत कर रहे हैं।
भोजन के माध्यम से सांस्कृतिक आदान-प्रदान
यह आयोजन भारतीय विविधता के बीच एकता का सांस्कृतिक संगम बन गया। यहां भाषा, परंपराओं और खानपान की दीवारें टूट गईं और खिलाड़ी एक परिवार की तरह जुड़ गए। नाश्ते की टेबल पर दक्षिण भारत के वड़ा-सांभर, उत्तराखंड के झोली-भात और पंजाब के राजमा एक साथ परोसे गए। महाराष्ट्र, असम और केरल के खिलाड़ी एक ही टेबल पर बैठकर एक-दूसरे के पारंपरिक व्यंजनों का आनंद लेते और उनके बारे में चर्चा करते दिखे।
मैदान के बाहर रिश्तों की नई कहानी
भले ही खिलाड़ी मैदान पर अपने-अपने राज्यों के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे थे, लेकिन मैदान के बाहर नई दोस्तियों की अनगिनत कहानियां बन रही थीं। बैडमिंटन कोर्ट पर प्रतिद्वंद्वी रहे खिलाड़ी शाम को फैन पार्क में हंसी-मजाक करते नजर आए। एक भावुक पल तब देखने को मिला जब डाइनिंग हॉल में काम करने वाले एक वॉलंटियर और कुछ खिलाड़ियों के बीच गहरी दोस्ती हो गई। जब खिलाड़ी अपने राज्य लौटने लगे, तो विदाई के दौरान वॉलंटियर की आंखों में आंसू छलक आए, जो इन खेलों की आत्मीयता को दर्शाता है।
फैन पार्क में लोकनृत्य और संगीत का रंग
हर शाम फैन पार्क में विभिन्न राज्यों के सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन हुआ, जिसमें खिलाड़ी दर्शक ही नहीं, बल्कि कलाकार भी बने। उत्तराखंड के कलाकारों द्वारा प्रस्तुत झोड़ा नृत्य में महाराष्ट्र, बंगाल और केरल के खिलाड़ियों ने भी कदम से कदम मिलाए। भांगड़ा की धुन पर तमिलनाडु और असम के खिलाड़ी भी झूमते नजर आए। यह नज़ारा भारत की विविध संस्कृतियों के बीच मिलन और नई ऊर्जा का प्रतीक बन गया।
उत्तराखंड की संस्कृति से खिलाड़ियों का परिचय
खिलाड़ी केवल प्रतिस्पर्धा तक सीमित नहीं रहे, बल्कि उत्तराखंड की संस्कृति को भी करीब से देखने का अवसर मिला। कई खिलाड़ियों ने स्थानीय बाजारों से पहाड़ी टोपी और पारंपरिक वस्त्र खरीदे, तो कुछ ने गंगा आरती में शामिल होकर आध्यात्मिक अनुभव लिया। उत्तराखंडी व्यंजनों का स्वाद भी खिलाड़ियों को खूब भाया।
राष्ट्रीय एकता की मिसाल बना यह आयोजन
38वें राष्ट्रीय खेलों ने यह साबित कर दिया कि खेल केवल जीत-हार तक सीमित नहीं, बल्कि यह संस्कृतियों को जोड़ने और दोस्ती के नए रिश्ते बनाने का एक मजबूत मंच हैं। इस आयोजन के जरिए देश की एकता और आपसी समझ को और अधिक मजबूती मिली। उत्तराखंड की धरती पर हुआ यह आयोजन आने वाले वर्षों तक खेलों के जरिए राष्ट्रीय एकता की प्रेरणा देता रहेगा।
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हिन्दुस्थान समाचार / सुनील दुबे