वर्षों से लंबित और बगैर मूवमेंट वाले केस बंद करने की जरूरत : पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई
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- Jan 19, 2025
लोकतंत्र, उच्च शिक्षा, स्टार्टअप प्रणाली, न्यायपालिका की चुनौतियाँ, नेरेटिव युद्ध और डीप स्टेट जैसे मुद्दों पर चर्चा
सूरत, 19 जनवरी (हि.स.)। सूरत के वीर नर्मद यूनिविर्सटी में सूरत लिटरेरी फाउंडेशन की ओर से आयोजित सूरत लिटरेचर फेस्टिवल के तीसरे दिन देश के पूर्व चीफ जस्टिस व मध्यप्रदेश से राज्यसभा सांसद रंज गोगोई ने देश की न्याय व्यवस्था के संबंध में बात की। उन्होंने कहा कि आज देश में करीब 5 करोड़ केस तारीख पर तारीख के कारण लंबित है। इन केसों की सुनवाई के संबंध में देश के दोनों संसद भवन या सर्वोच्य न्यायाल में आज तक चर्चा नहीं हुई है। गोगोई ने कहा कि जो केस वर्षों से लंबित हैं और इनमें कोई मूवमेंट नहीं है, उसे बंद कर देने की जरूरत है।
गोगोई ने कहा कि देश में लंबित 5 करोड़ केसों से कुल 45 करोड़ लोग न्याय की राह ताक रहे हैं। यदि सभी मिलकर एक साथ आवाज उठाते हैं कि हमें कब न्याय मिलेगी तो कल सिस्टम सुधर जाएगी, हमें 2047 तक राह नहीं ताकनी होगी। गोगोई ने कहा कि सिस्टम को गति देने के लिए देश में एक लाख अच्छे ईमानदार लोगों को चुन लीजिए जिससे सिस्टम में सुधार भी आएगा और गति भी आएगी। समान नागरिक संहिता को लेकर फैली भ्रांतियों पर उन्होंने जोर देकर कहा कि यह कानून किसी धर्म पर आधारित नहीं है बल्कि गोद लेने, शादी, तलाक जैसी प्रथाओं को एक समान बनाता है। जो कि गोवा जैसे राज्यों में कई वर्षों से अच्छी तरह से लागू है। आयोजन में थ्रेट टू लोकतंत्र सत्र में लोकतंत्र की जन्मस्थली और दुनिया की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक शक्ति भारत जब आजादी का शताब्दी वर्ष मना रहा है, तो हमारे लोकतंत्र के लिए क्या चुनौतियां पैदा होंगी, इस विषय पर तुफैल चतुर्वेदी ने कहा कि पिछले 20 वर्षों में दुनिया में आतंकवाद की 20 घटनाएं हुई हैं, एक ऐसी मानसिकता है जिसने भारत को तोड़ने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा दी है, वहीं पिछले छह सौ वर्षों में भारत 13 टुकड़ों में बंट चुका है, ऐसे में हमारी सबसे बड़ी जिम्मेदारी भारत के लोकतंत्र को बचाना है। उन्होंने कहा कि हमें मोबाइल, मौज-शौक से बाहर निकलकर देश की सुरक्षा के लिए तैयार होना होगा और देश की सुरक्षा तभी संभव है जब भारत की लोकतांत्रिक ताकत बरकरार रहेगी।
एक अन्य सत्र में वर्ष 2047 में भारत की उच्च शिक्षा व्यवस्था पर चर्चा की गई। वक्ता प्रफुल्ल केतकर ने स्वाधिनता और स्वतंत्रता के बीच के अंतर को स्पष्ट किया। उन्होंने कहा कि भारत की स्वाधिनता प्राप्त करने के बाद देश में एक ऐसा तबका था जो आज भी स्वतंत्रता पाने के लिए संघर्ष कर रहा है। हमने सिर्फ राजनीतिक तौर पर स्वाधिनता हासिल की, लेकिन ये स्वतंत्रता नहीं है। स्वतंत्रता की प्राप्ति वैचारिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक रूप से हमारी प्राचीन पहचान की पुनः स्थापना होगी। उन्होंने कहा कि इंडिया देश की जियोग्राफिक पहचान है, लेकिन भारत यह अपनी ज्ञानवर्द्धक समाज की पहचान है। हमलोग भारत है, जो कि प्राचीन ज्ञान परंपरा का एक प्राचीन स्रोत रहा है। उन्होंने भारतीय छात्रों के विदेश जाने के रोकने की भी बात की। बेस्ट यूनिवर्सिटी बनाने के लिए उन्होंने कहा कि पश्चिम रैंकिंग सिस्टम के पीछे नहीं भागते हुए उनकी रैकिंग सिस्टम को अपनी पद्धति में बदलने की कोशिश करनी चाहिए। आयोजन में स्टार्टअप के जरिए वर्ष 2047 में देश की आर्थिक स्थिति पर चर्चा की गई। नेरेटिव युद्ध और डीप स्टेट के बारे में भी वक्ताओं ने अपनी राय दी।
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हिन्दुस्थान समाचार / बिनोद पाण्डेय