किसानों की तकदीर बुनेंगे रेशम के कीड़े, खुलेगी समृद्धि की राह

मीरजापुर, 27 जुलाई (हि.स.)। अब गांवों की गलियों में सिर्फ फसल की बात नहीं होगी, बल्कि सुनहरी रेशमी धागों की चमक भी दिखेगी। उत्तर प्रदेश के किसान पारंपरिक खेती से आगे बढ़ते हुए रेशम पालन के ज़रिए आर्थिक आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ा रहे हैं। मीरजापुर के बरकछा स्थित राजकीय रेशम प्रशिक्षण संस्थान में 25 से 28 अगस्त तक होने वाला विशेष रेशम कीट पालन प्रशिक्षण शिविर इस बदलाव का बड़ा केंद्र बनने जा रहा है।

रेशम अब केवल शौक की चीज़ नहीं, बल्कि आमदनी का साधन बन गया है। इस चार दिवसीय प्रशिक्षण में कीट पालन से लेकर रेशम धागा बनाने तक की संपूर्ण जानकारी किसानों को दी जाएगी।

सोनभद्र के असिस्टेंट डायरेक्टर (सेरीकल्चर) रनवीर सिंह ने बताया कि इस प्रशिक्षण में प्रदेश के मेरठ, सहारनपुर, पीलीभीत, कुशीनगर, झांसी, औरैया, सोनभद्र सहित अन्य जिलों के 800 से अधिक किसान भाग लेंगे।

संस्थान में शहतूत की पत्तियां, ट्रे, कीट और उपकरण भी उपलब्ध कराए जाएंगे, जिससे प्रशिक्षण सिर्फ कागज़ी नहीं, व्यावहारिक भी होगा।

तीन रेशम, तीन रास्ते – एक मंज़िल: सफलता

प्रदेश में शहतूती, एरी और टसर – तीन प्रकार के रेशम का उत्पादन होता है।

शहतूती रेशम: कीट शहतूत की पत्तियां खाकर महज़ 30 दिन में ककून बना लेते हैं।

एरी रेशम: अरंडी की पत्तियां खाकर तैयार होता है, टिकाऊ व ज़्यादा मांग वाला।

टसर रेशम: अर्जुन या आसन के पेड़ों पर पला-बढ़ा कीट, दो बार फसल, अधिक आमदनी।

एक पेड़, कुछ पत्तियां और थोड़ी मेहनत, किसान को रेशम जैसे बहुमूल्य उत्पाद से जोड़ सकती हैं।

खेती से आगे सोचें, रेशम से पाएं ‘रेवेन्यू’

रेशम पालन किसानों के लिए केवल सहायक आय नहीं, बल्कि एक नया व्यवसाय बन सकता है। विशेष रूप से महिलाओं और बेरोजगार युवाओं के लिए यह आत्मनिर्भर बनने का सुनहरा मौका है। एक बार कीट पालन सीख लेने के बाद, साल में दो बार टसर और बार-बार शहतूती व एरी रेशम से कमाई की जा सकती है।

हिन्दुस्थान समाचार / गिरजा शंकर मिश्रा

   

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