नैनीताल जिले शिक्षक सीख रहे लाेक वाद्ययाें व संगीत के गुर 

नैनीताल, 8 फ़रवरी (हि.स.)। नैनीताल जनपद के भीमताल स्थित जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान में रंग मंच प्रशिक्षण कौशल विकास कार्यशाला का आयोजन 7 से 11 फरवरी तक किया जा रहा है। कार्यशाला के दूसरे दिन के प्रथम सत्र का शुभारंभ जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान भीमताल के कार्यानुभव विभाग प्रमुख डॉ. ज्योतिर्मय मिश्र एवं मनोज कुमार चौधरी ने दीप प्रज्ज्वलन कर किया। कार्यक्रम का शुभारंभ मोहन जोशी द्वारा सरस्वती वंदना से हुआ।

इस अवसर पर रंगकर्मी प्रशिक्षक बृजमोहन जोशी ने जनकवि गिरीश तिवारी ‘गिर्दा’ की स्वरबद्ध रचना ‘उत्तराखंड मेरी मातृभूमि, मातृभूमि मेरी पितृभूमि’ का गायन प्रस्तुत किया। साथ ही संस्कार गीतों, लोक गीतों एवं बाल गीतों की जानकारी भी प्रतिभागियों को दी गई। इस दौरान शिक्षकों व शिक्षिकाओं ने भी गायन एवं नृत्य के माध्यम से सक्रिय सहभागिता निभाई। इसके अतिरिक्त मोहन जोशी ने रंगमंच में लोकगीतों के प्रयोग पर चर्चा की एवं विभिन्न कुमाउनी लोक गीतों को गाकर उनकी विशेषताओं की जानकारी दी। द्वितीय सत्र में वरिष्ठ रंगकर्मी हरीश पांडे ने रंगमंच के विविध पहलुओं की विस्तृत जानकारी प्रदान की। प्रशिक्षक बृजमोहन जोशी ने कुमाउनी पारंपरिक लोक चित्र कला ऐपण के धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि ऐपण कला हमारे संस्कारों, कर्मकांडों एवं पूजा पद्धति से किस प्रकार जुड़ी हुई है। साथ ही, मांगलिक संस्कार गीतों का ऐपण से संबंध भी समझाया गया।

कार्यशाला के द्वितीय सत्र में प्रशिक्षक रंगकर्मी मोहन जोशी ने लोकगीतों के विविध आयामों पर चर्चा की। वहीं प्रशिक्षक शंभू दत्त साहिल ने लोक वाद्य यंत्र ‘हुड़का’ की विस्तृत जानकारी दी। बताया गया कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत स्थानीय लोक कला का प्रचार-प्रसार एवं संरक्षण इस कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य है। साथ ही शिक्षण प्रक्रिया को अधिक रोचक एवं आनंददायी बनाने के लिये शिक्षकों में रंगमंच कौशल का विकास करने, स्थानीय प्रसिद्ध लोक कलाकारों एवं रंगकर्मियों की पहचान कर उनके सहयोग से आने वाली पीढ़ी को लोक कला एवं संस्कृति से जोड़ने, कुमाउनी लोक संस्कृति, लोक गीत, झोड़ा, छपेली, चांचरी, न्योली, भगनौल, लोकचित्र कला ऐपण एवं लोक वाद्यों को पुनर्जीवित करने एवं इन लोक विधाओं को पाठ्यक्रम से जोड़कर शिक्षा में समावेश करने के उद्देश्य भी हैं। प्रशिक्षण कार्यशाला में शिक्षक-शिक्षिकाओं ने रंगमंच, लोककला एवं पारंपरिक विधाओं का गहन अध्ययन एवं अभ्यास किया।

हिन्दुस्थान समाचार / डॉ. नवीन चन्द्र जोशी

   

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