गंगा में विलीन हुईं सुग्रीवानंद महाराज की पावन अस्थियाँ
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- Mar 06, 2025

ऊना, 06 मार्च (हि.स.)। डेरा रुद्रानंद आश्रम के अधिष्ठाता, विद्यालंकार, वेदांताचार्य, अध्यात्म के महान संत श्री श्री 1008 परम पूज्य सुग्रीवानंद महाराज की पवित्र अस्थियाँ गुरुवार को विधि-विधान से हरिद्वार में गंगा में प्रवाहित की गईं। इस भावपूर्ण अवसर पर सैकड़ो भक्तों ने अश्रुपूर्ण नेत्रों से अपने गुरु को अंतिम विदाई दी। गंगा के तट पर जब हेमानंद महाराज ने अपने पूज्य गुरु की अस्थियों को प्रवाहित किया, तो समूचा वातावरण भक्ति, श्रद्धा और गहन भावनाओं से भर उठा। भक्तों के लिए यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं था, बल्कि अपने गुरु के प्रति प्रेम और सम्मान व्यक्त करने का पावन क्षण था।
गंगा तट पर गूंजते भजन और मंत्रों की दिव्य ध्वनि ने वातावरण को आध्यात्मिक ऊर्जा से भर दिया। “गुरुदेव सदा हमारे हृदय में बसें!” जैसे जयघोषों से गंगा तट पर एक अनूठी आध्यात्मिक तरंग प्रवाहित हो रही थी। किसी के हाथ प्रार्थना में जुड़े थे, तो कोई आँखें बंद कर अपने गुरु की शिक्षाओं और मधुर स्मृतियों में खोया हुआ था। कुछ भक्तों ने गंगा जल को अपने मस्तक से लगाकर अपने श्रद्धासुमन अर्पित किए। गंगा की निर्मल लहरें जब पूज्य महाराज की अस्थियों को अपने साथ लेकर प्रवाहित हुईं, तो ऐसा लगा जैसे प्रकृति स्वयं इस महान संत का स्वागत कर रही हो। हेमानंद महाराज, जो वर्षों से अपने गुरु के सान्निध्य में रहे थे, उनकी आँखों में श्रद्धा और भावनाओं का सागर उमड़ पड़ा।
उन्होंने कहा कि गुरुदेव का शरीर भले ही अब हमारे बीच न हो, लेकिन उनकी शिक्षाएँ और उनके आशीर्वाद की छाया हमेशा हमारे साथ रहेगी। उनका जीवन हमें सत्य, धर्म और सेवा के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता रहेगा।उनके इन शब्दों ने सभी भक्तों के हृदय को गहराई से छू लिया। यह क्षण जितना भावुक था, उतना ही आध्यात्मिक शांति से भरा हुआ भी था। एक ओर, गुरु से बिछड़ने का दुःख था, तो दूसरी ओर यह विश्वास भी कि वे अब एक उच्च अवस्था में पहुंचकर अनंत लोकों से अपने भक्तों का मार्गदर्शन कर रहे हैं। गंगा की लहरों ने आज एक संत की पावन देह को अपने भीतर समाहित कर लिया, लेकिन उनकी आध्यात्मिक उपस्थिति युगों-युगों तक भक्तों के मन में प्रकाश की तरह बनी रहेगी।
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हिन्दुस्थान समाचार / विकास कौंडल