ज्वार, बाजरा और मडुआ पहाड़ों को जल संकट से बचाएगा

ग्राफिक एरा डीम्ड यूनिवर्सिटी में हुई जल प्रबन्धन की रणनीतियों पर राष्ट्रीय कार्यशाला

देहरादून, 14 नवंबर (हि.स.)। पर्वतीय क्षेत्रों में जल संकट से निपटने के लिए गुरुवार को आयोजित एक राष्ट्रीय कार्यशाला में विशेषज्ञों ने जल प्रबन्धन की मौजूदा चुनौतियों पर विचार मंथन किथा और ज्वार, बाजरा व मडुआ को जल संकट का बेहतरीन विकल्प बताया।

ग्राफिक एरा डीम्ड यूनिवर्सिटी में हुई जल प्रबन्धन की रणनीतियों पर राष्ट्रीय कार्यशाला में कुलपति डॉ. नरपिन्दर सिंह ने कहा कि कृषि के साथ ही विभिन्न क्षेत्रों में पानी की मांग बढ़ती जा रही है। इसके लिए जरूरी है कि जल संरक्षण की पारम्परिक प्रणालियों को आज की नई तकनीकों जैसे कि सैटेलाइट डेटा, रियल टाइम माॅनिटरिंग, डीसेलिनाइजेशन व स्मार्ट इरिगेशन से जोड़ा जाये। उन्हाेंने छात्र-छात्राओं से नदी, झीलों व पानी के अन्य स्राेतों को साफ रखने का आह्वान किया। उन्हाेंने कहा कि एक किलोग्राम गन्ना व चावल के उत्पादन में तीन से पांच हजार लीटर तक पानी खर्च होता है।

कार्यशाला में पंतनगर के जीबी पन्त यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर एण्ड टेक्नोलाॅजी के डाॅ. दीपक कुमार ने व्यापक स्तर पर पानी की गुणवत्ता जांचने की आवश्यकता पर दिया। उन्होंने आर्सेनिक, फ्लोराइड, नाइट्रेट व आयरन सामान्य तौर पर पानी में पाने जाने वाले दूषित पदार्थ हैं। ये पदार्थ कैंसर, टायफाइड, कोलरा जैसी गंभीर समस्याएं उत्पन्न करते हैं। उन्होंने पानी को साफ करने के लिए एयर स्पारजिंग, फाईटो रेमेडिएशन, बायो रेमेडिएशन और परमिएबल रिएक्टिव बैरियर तकनीक की जानकारी दी।

सम्मेलन में राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान रुड़की के वैज्ञानिक डाॅ. शक्ति सूयवंशी ने मायन सभ्यता की चुलटुन, सिंधु घाटी की लोथल, राजस्थान के बावड़ी, अण्डमान निकोबार के जैकवैल और महाराष्ट्र के रामटेक जैसी प्राचीन जल संरक्षण प्रणालियों पर प्रकाश डाला। आईआईटी रूड़की की डॉ.कृतिका कोठारी ने कहा कि पहाड़ों में फसल उत्पादन की चुनौती से निपटने के लिए सिंचाई की कुशल प्रणालियों के साथ ही रिमोट सेंसिंग, फसलों पर आधारित डेटा माॅनिटरिंग, यूएवी माॅनिटरिंग जैसी तकनीकों को उपयोग किया जा सकता है। उन्होंने विभिन्न फसलों पर की गई शोध के विषय में जानकारी साझा की।

राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन इण्डियन वाटर रिसोर्सिस सोसायटी स्टूडेण्ट चैप्टर देहरादून ने डिपार्टमेण्ट ऑफ सिविल इंजीनियरिंग के सहयोग से किया। सम्मेलन में एचओडी डॉ. केके गुप्ता, डॉ. अजय गैरोला, कार्यक्रम संयोजक डॉ. नितिन मिश्रा,आयोजन सचिव डॉ. प्रवीण कुमार, डॉ. संजीव कुमार, डॉ. दीपशिखा शुक्ला के अलावा शिक्षक-शिक्षिकाएं और छात्र-छात्राएं मौजूद रहे।

हिन्दुस्थान समाचार / राजेश कुमार

   

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