बंगाल सरकार ने आखिरी डबल-डेकर बस को संरक्षित करने का फैसला किया

कोलकाता, 14 अक्टूबर (हि.स.)। पश्चिम बंगाल सरकार ने आखिरी डबल-डेकर बस को स्क्रैप करने के अपने पूर्व निर्णय को बदलते हुए अब इसे संरक्षित करने का फैसला किया है। यह बस, जिसने 2000 के शुरुआती दशक में परिचालन बंद कर दिया था, अब संग्रहालय में प्रदर्शित की जाएगी।

सोमवार को एक वरिष्ठ परिवहन अधिकारी ने बताया कि पहले इस बस को उच्च रख-रखाव लागत के कारण हटाने का निर्णय लिया गया था। हालांकि, अब विभाग ने इसे संग्रहालय में प्रदर्शनी के लिए नवीनीकरण करने का निर्णय लिया है। इस बस पर एक वाहन निर्माता का लोगो (चिन्ह) और पूर्व कोलकाता राज्य परिवहन निगम (सीएसटीसी) का प्रतिष्ठित बाघ चिन्ह अंकित है।

अधिकारी ने कहा, विचार-विमर्श के बाद हमने इस बस को बहाल कर राज्य सरकार द्वारा संचालित संग्रहालय में पालकी और हाथ से खींचे जाने वाले रिक्शा के मॉडल के साथ प्रदर्शित करने का निर्णय लिया है, जिससे शहर के परिवहन के विकास को दर्शाया जा सके।

सितंबर के अंतिम सप्ताह में शहर के उत्तरी हिस्से के एक स्क्रैप यार्ड में इस बस की तस्वीर सामने आने के बाद जनता में आक्रोश फैल गया था। ‘कोलकाता बस-ओ-पीडिया’ नामक बस प्रेमियों के समूह ने इस मुद्दे को परिवहन मंत्री स्नेहाशीष चक्रवर्ती के सामने उठाया, जिन्होंने इसे संरक्षित करने का बीड़ा उठाया।

समूह के महासचिव अनिकेत बनर्जी ने बताया कि मंत्री के साथ चर्चा के बाद यह सुनिश्चित किया गया कि इस डबल-डेकर बस को स्क्रैप नहीं किया जाएगा। फिलहाल, इस बस का उत्तर कोलकाता के पैकपाड़ा डिपो में नवीनीकरण किया जा रहा है।

संगठन ने अपने बयान में कहा, डब्ल्यूबीएस 1095 को विनाश के कगार से बचा लिया गया है और अब यह आने वाले दिनों, महीनों और वर्षों में भविष्य की पीढ़ियों के लिए एक कहानी सुनाएगी।

यह बस 2005 में शहर की सड़कों से हटा दी गई थी और 2016 में इको पार्क में पर्यटन के लिए पुनर्निर्मित की गई थी। लेकिन मार्च 2020 में महामारी के कारण पार्क बंद होने पर इसे फिर से परे कर दिया गया, जिससे इस साल की शुरुआत में इसे स्क्रैप करने का निर्णय लिया गया था।

कोलकाता की सड़कों पर पहली बार लाल डबल-डेकर बस 1926 में उतरी थी, जो शहर के विभिन्न हिस्सों को जोड़ती थी। 1985 तक 350 से अधिक डबल-डेकर बसें चल रही थीं, लेकिन 2005 तक इनकी संख्या घटकर केवल दो रह गई, जिन्हें बाद में सेवा से हटा लिया गया। इन बसों में से एक को बिना छत के पर्यटन के लिए पुनर्निर्मित किया गया था। 1990 के दशक की शुरुआत में लगभग 400 लाल डबल-डेकर बसों का बेड़ा धीरे-धीरे सड़कों से गायब हो गया, क्योंकि राज्य ने इन्हें उच्च परिचालन और रख-रखाव लागत के कारण अनुपयोगी घोषित कर दिया था।

हिन्दुस्थान समाचार / ओम पराशर

   

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