उपवास ध्यान साधना के माध्यम से आत्म शुद्धि होती है : स्वामी कुन्दनानन्द महाराज
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- Oct 04, 2024
सहरसा, 04 अक्टूबर (हि.स.)।
दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के संस्थापक व संचालक दिव्य गुरु सर्वश्री आशुतोष महाराज जी के शिष्य स्वामी कुन्दनानन्द ने कहा की नवरात्र का हिन्दू धर्म में अत्यधिक महत्व है। यह पर्व शक्ति की आराधना का प्रतीक है और देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा के रूप में मनाया जाता है।
हर वर्ष चार नवरात्र होते है जिसमें विद्वानों ने दो नवरात्रों का विशेष महत्व बताया है।चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से दसवी तिथि तक की गई उपासना को बासंती नवरात्रा या चैती नवरात्रा भी कहते है तथा आश्विन मास के शुक्ल प्रातिप्रदा से आरंभ नवरात्र को शारदीय नवरात्र कहते है।सिद्धि व साधना की दृष्टि से शारदीय नवरात्र को अधिक महत्व दिया गया है। शक्ति की उपासना आदिकाल से चली आ रही है। देवी शक्ति को सम्पूर्ण सृष्टि और जीवन की आधार शक्ति के रूप में माना जाता है, जो सृजन, पालन और संहार की ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करती है।
सनातन हिन्दू धर्म में शक्ति के उपासना का मुख्य उद्देश्य मनुष्य को आत्मिक, मानसिक, और शारीरिक रूप से सशक्त बनाना है।यह पर्व प्रकृति, मानव जीवन और अध्यात्म के बीच गहरा सामंजस्य स्थापित करता है। यह केवल धार्मिक पूजा - पाठ या कर्मकांड ही नहीं है, बल्कि इसमें प्राकृतिक, जैविक, मानसिक स्तर को उत्थान प्रदान करता है। इस समय मौसम में महत्वपूर्ण बदलाव आता है, जो वर्षा ऋतु का अंत तथा शरद ऋतु के प्रारंभ का है। इस परिवर्तन के समय पर्यावरण और मानव शरीर दोनों पर मौसम का प्रभाव पड़ता है जिस कारण हमारा पाचन-तंत्र और प्रतिरक्षा-तंत्र कमजोर हो जाते है।उपवास और ध्यान-साधना के माध्यम से आत्म - शुद्धि होती है जो न केवल शरीर को बल्कि हमारे मन और आत्मा को भी शुद्ध करती है।
शारदीय नवरात्रा के दौरान पृथ्वी और आकाश की ऊर्जा में विशेष परिवर्तन होता है। इस समय पृथ्वी पर सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह अधिक होता है जिससे ध्यान – साधना करने वाले व्यक्ति के मस्तिष्क में न्यूरोप्लास्टीसिटी बढ़ती है, जिससे मस्तिष्क की कार्यक्षमता और ध्यान की शक्ति में सुधार होता है, जिस कारण व्यक्ति का आत्मविश्वास और मानसिक संतुलन बढ़ाता है। खगोलशास्त्र के अनुसार इस समय सूर्य और चंद्रमा के प्रभाव से ऊर्जा के प्रवाह में एक विशेष परिवर्तन होता है। उपवास व ध्यान के समय यह ऊर्जा हमारे शरीर और मन को प्रभावित करती है, जो हमें ब्रम्हांडीय ऊर्जा तरंगों से जोड़ती है। इस समय मस्तिष्क में न्यूरोट्रांसमीटर जैसे सेरोटोनिन और डोपामाइन का स्तर बढ़ता है, जो हमें मानसिक शांति व स्थिरता प्रदान करता है, जिससे चिंता व तनाव कम होते है। इस प्रकार के सामूहिक गतिविधियों से व्यक्ति के मस्तिष्क में ऑक्सीटॉक्सिन हॉर्मोन्स का स्राव होता है जो सामाजिक बंधनों को मजबूत करता है।
हिन्दुस्थान समाचार / अजय कुमार