शारदीय नवरात्र सद्भाव, एकता और उत्सव का भी अवसर:प्रो.बिहारी लाल शर्मा

—पर्व देवी दुर्गा की शक्ति और दिव्यता का प्रतीक

वाराणसी,03 अक्टूबर(हि.स.)। सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बिहारी लाल शर्मा ने कहा कि नवरात्र का पर्व न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह सामाजिक सद्भाव, एकता और उत्सव का भी अवसर है। कुलपति प्रो. शर्मा ने गुरुवार को परिसर में नवरात्र प्रारम्भ होने के प्रथम दिवस पर देवी पूजन के बाद नवरात्र की महिमा का वर्णन किया। उन्होंने कहा कि नवरात्र पर्व, विशेष रूप से आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से आरम्भ होने वाला शारदीय नवरात्र, भारतीय संस्कृति, आध्यात्मिकता और परम्परा का अत्यन्त महत्वपूर्ण उत्सव है। यह नौ दिनों का पर्व मां दुर्गा के नौ रूपों की उपासना के साथ जुड़ा हुआ है और इसमें सामाजिक, आधिभौतिक, आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से गहरे अर्थ और महत्व छिपे हैं।

कुलपति प्रो. शर्मा ने कहा कि नवरात्र में समाज के सभी वर्ग, चाहे वे अमीर हों या गरीब, मिलकर देवी के विभिन्न रूपों की पूजा-अर्चना करते हैं। सामूहिक पूजा, भक्ति संगीत, कीर्तन, गरबा, और रामलीला जैसे सांस्कृतिक आयोजन समाज में आपसी सौहार्द और मेल-जोल को प्रोत्साहित करते हैं। इन नौ दिनों में सामाजिक विभाजन भुलाकर एक साथ मिलकर काम करने की परंपरा समाज के भीतर एकजुटता और सशक्तीकरण की भावना को बढ़ावा देती है। नवरात्र के दौरान उपवास रखने और संयमित जीवन जीने की परंपरा समाज को आत्मसंयम और धैर्य का संदेश देती है। यह पर्व विशेष रूप से महिलाओं की शक्ति का भी प्रतीक है, जिससे समाज में नारी के प्रति सम्मान और सशक्तीकरण का संदेश मिलता है।

7 आध्यात्मिक महत्व:

आध्यात्मिक दृष्टि से नवरात्र अत्यंत महत्वपूर्ण समय होता है। यह पर्व देवी दुर्गा की शक्ति और दिव्यता का प्रतीक है। नौ दिनों तक देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है, जो क्रमशः शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, और सिद्धिदात्री हैं। इन देवी रूपों का संबंध मनुष्य के आंतरिक विकास के विभिन्न चरणों से है।

यह पर्व व्यक्ति को आत्मनिरीक्षण, आत्मशुद्धि और आत्म-उत्थान का अवसर देता है। नौ दिनों की साधना से व्यक्ति अपने भीतर की नकारात्मक शक्तियों को समाप्त कर सकारात्मकता, शांति, और आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त कर सकता है। यह समय ध्यान, साधना, और प्रार्थना के लिए अत्यधिक अनुकूल होता है, जिसमें मन की शुद्धि और भगवान से जुड़ने का मार्ग प्रशस्त होता है।

प्रो. बिहारी लाल शर्मा ने कहा कि नवरात्र का पर्व ऋतु परिवर्तन के समय आता है, जब मानसून समाप्त होकर शरद ऋतु का आगमन होता है। यह समय मानव शरीर के लिए अत्यधिक संवेदनशील होता है, क्योंकि मौसम के बदलाव से स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ सकता है। इस समय उपवास रखने और हल्का भोजन करने से शरीर को विषैले तत्वों से मुक्त किया जा सकता है, जिससे स्वास्थ्य बेहतर होता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, उपवास से शरीर की पाचन क्रिया को विश्राम मिलता है और शरीर स्वयं की सफाई करता है, जिसे आज के समय में “डीटॉक्सिफिकेशन” कहा जाता है। इसके अलावा, इस समय ध्यान और प्राणायाम करने से मानसिक स्वास्थ्य में भी सुधार होता है और तनाव कम होता है। नवरात्र के दौरान किए जाने वाले नियम और संयम, जैसे दिनचर्या में अनुशासन, सकारात्मक विचार, और शारीरिक शुद्धि, इन सबका प्रभाव मानव मस्तिष्क और शरीर पर होता है, जो कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से लाभकारी माना गया है। उन्होंने कहा कि नवरात्र केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं है, बल्कि यह समाज, व्यक्ति और प्रकृति के बीच के संतुलन को बनाए रखने का एक साधन भी है। आधिभौतिक, आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दृष्टि से इसका महत्व गहन और व्यापक है। इस पर्व के दौरान हम न केवल अपने भीतर के अवगुणों का नाश करते हैं, बल्कि समाज में आपसी सद्भाव और सहयोग की भावना को भी प्रबल करते हैं।

हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी

   

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