जूनागढ़ में गिरनार की लीली परिक्रमा 12 नवंबर से, महेश गिरी की अपील- बदरुद्दीन दिखाई दे तो पुलिस के हवाले करें
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- Nov 08, 2024
जूनागढ़, 8 नवंबर (हि.स.)। गुजरात के जूनागढ़ जिले के गिरनार के जंगल में 12 से 15 नवंबर तक लीली (हरियाणी) परिक्रमा आयोजित की जाएगी। इस बीच जूनागंढ के भूतनाथ मंदिर के महंत महेश गिरी ने कहा है कि यात्रा में कोई बदरुद्दीन दिखाई दे तो उसे अच्छी तरह से प्रसाद देकर पुलिस के हवाले करें। उन्होंने कहा कि सभी श्रद्धालु अपने साथ भगवा ध्वज लेकर आएं जिससे पूरी यात्रा भगवामय हो जाए।
गिरनार परिक्रमा हर साल कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी से शुरू होकर पूर्णिमा तक चलती है। इस वर्ष यह 12 नवंबर से शुरू होगी। परिक्रमा से पूर्व जूनागढ़ के महंत ने यात्रा को लेकर श्रद्धालुओं अपील की है। उन्होंने कहा कि सनातन हिंदू धर्म के लाखों लोग इस यात्रा में शामिल होकर धर्म और परंपरा को जीवंत रखें। श्रद्धालु भगवा ध्वज लेकर आएं जिससे पूरी यात्रा भगवामय हो जाएग। उन्होंने कहा कि यात्रा के दौरान यदि कोई बदरुद्दीन दिखाई दे तो उसे अच्छी तरह से प्रसाद देकर पुलिस के हवाले करें।
दूसरी ओर गिरनार परिक्रमा को लेकर प्रशासन ने अंतिम दौर की तैयारी शुरू कर दी है। यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं को सेवा देने वाली सेवाभावी संस्थाएं भी अपनी-अपनी तैयारी में जुट गई हैं। हर साल इस लिली परिक्रमा में लाखों श्रद्धालु राज्य एवं बाहर के राज्यों से आते हैं। इस परिक्रमा रूट में गिर अभयारण्य होने की वजह से वन विभाग भी इस दौरान मुस्तैद रहता है। परिक्रमा रूट में जंगली जानवरों के होने से प्रशासन कई तरह के नियमावली जारी कर श्रद्धालुओं को सावधान करता है। इसके साथ ही इस परिक्रम को पूरी तरह से प्लास्टिक मुक्त बनाने की मुहिम भी प्रशासन की ओर से चलाई जाती है।
एकादशी के दिन श्रद्धालु दामोदर कुंड में स्नान के बाद दामोदरजी, भवनाथ महादेव, दूधेश्वर महादेव के दर्शन के बाद गिरनार की तलहटी में ही रात बिताते हैं। एकादशी की रात से हरी झंडी औपचारिक रूप से शुरू हो जाती है। श्रद्धालु करीब साढ़े 5 दूर हसनपुर या जिनबावा माधी में उत्तर की ओर पहाड़ों को पार करते हुए सफर करते हैं। इसके बाद कार्तिक शुक्ल पक्ष त्रयोदशी के दिन श्रद्धालु रात को गिरनार के उत्तरी तट पर विश्राम करते हैं, जहां सूरजकुंड का स्थान है। गिरनार की लीली परिक्रमा में पांच दिनों तक लाखों श्रद्धालु आते हैं। इसके लिए प्रशासन, पुलिस विभाग, स्वास्थ्य और वन विभाग की ओर से सभी तैयारियां की गई हैं।
गिरनार पर्वत की 36 किलोमीटर लंबी लीली परिक्रमा का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है। परिक्रमा रूट भवनाथ तलहटी से शुरू होकर यही पूरी होती है। इस दौरान सड़क और पगदंडी दोनों आते हैं। भवनाथ से रूपायतन का रास्ता, रूपायतन से ईटवा तक का रास्ता, ईंटवा से चार चौक होकर जीणाबावा की मढी, जांबुडी थाणा से चार चौक, जीणाबावी की मढी से मालवेला तक की पगदंडी, झीणा बावा की मढी से सरकडिया हनुमान तक की पगदंडी, मालिडा से पाटवड कोठा होकर सूरजकुंड का रास्ता, सूरजकुंड से सरकडिया तक का रास्ता, सूरजकुंड से सुखनाला तक का रास्ता, सुखनाला से मालवेला तक की पगदंडी, मालवेला से नलपाणी की घोडी तक की पगदंडी, नलपानी घोडी से नलपाणी की जगह, नलपाणी की जगह से बोरदेवी तीन रास्ते तक, तीन रास्ते से बोरदेवी और बोरदेवी से भवनाथ तक कुल 36 किलोमीटर की यात्रा श्रद्धालु पूरी करते हैं।
मानसून के बाद गिरनार पर्वत हरियाली से ढका रहता है। यही वजह है कि गिरनार परिक्रमा को लीली (हरियाली) परिक्रमा कहा जाता है। गिरनार परिक्रमा गिरनार पर्वत के चारों ओर घूमती है। यात्रा 36 किलोमीटर लंबी है। परिक्रमा गिरनार परिक्रमा द्वार, रूपायतन से शुरू होती है और गिरनार तलहटी, भवनाथ पर समाप्त होती है। ऐसा माना जाता है कि गिरनार परिक्रमा 1864 से की जा रही है। वन विभाग इस क्षेत्र में लोगों को वन्य प्राणियों के क्षेत्र में जाने से रोकता है। साथ ही वन्य प्राणियों के साथ किसी तरह की छेड़छाड़ को भी रोकने के लिए जगह-जगह वन विभाग के कर्मचारी और अधिकारी निगरानी रखते हैं।
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हिन्दुस्थान समाचार / बिनोद पाण्डेय