खालसा कॉलेज में रामदरश मिश्र पर दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी शुरू
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- Nov 12, 2024
नई दिल्ली, 12 नवंबर (हि.स.)। दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के श्री गुरु तेग बहादुर खालसा कॉलेज में मंगलवार को ‘साहित्य की शती उपस्थिति: रामदरश मिश्र’ विषय पर एक अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारंभ हुआ। इसमें वक्ताओं ने कहा कि प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार प्रोफेसर रामदरश मिश्र की कविताएं पाठकों के अंतःकरण का घनत्व बढ़ाती हैं। सौ वर्ष की उम्र में भी उनका उत्साह सराहनीय है। मिश्र की साहित्य की जड़े गहरी हैं और पाठकों के लिए मील का पत्थर साबित होंगी।
संगोष्ठी के मुख्य अतिथि के रूप में पूर्व केंद्रीय शिक्षा मंत्री एवं साहित्यकार डॉ. रमेश पोखरियाल 'निशंक', डीयू के एस.जी.टी.बी. खालसा कॉलेज की प्रबंध समिति के अध्यक्ष तरलोचन सिंह, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, दिल्ली में अंतरराष्ट्रीय प्रभाग के निदेशक प्रो. जितेंद्र श्रीवास्तव, हिंदी अकादमी दिल्ली के उपाध्यक्ष सुरेंद्र शर्मा आदि उपस्थित रहे।
कॉलेज प्राचार्य प्रो. गुरमोहिंदर सिंह ने प्रो रामदरश मिश्र के साहित्य के कुछ पहलुओं को उजागर किया। उन्होंने बताया कि मिश्र सादगी वाला जीवन जीना पसंद करते हैं। मिश्र को साहित्य अकादमी, व्यास सम्मान आदि अनेक पुरस्कार प्राप्त हैं। कार्यक्रम इन सभी सम्मानों का निचोड़ साबित होगा।
प्रो जितेंद्र श्रीवास्तव ने कहा कि मिश्र की पुतलियों में शताब्दी का मुक्ति संघर्ष का पूरा इतिहास शामिल है। मिश्र ने साहित्य में करुणा को विचार और विचार को करुणा का सहचर बताया है। सहजता सरलता का अभिप्राय नहीं है, मिश्र के यहां सहजता में भी अद्भुत संलिष्टता देखने को मिलती है। मिश्र प्रथमत: कवि है मूलत: कवि हैं, अंतत: कवि हैं। मिश्र की कविताएं पाठकों के अंतःकरण का घनत्व बढ़ाती है।
सुरेन्द्र शर्मा ने कहा कि आज के कवियों को पूंजीवाद या समाजवाद से ज्यादा समझवाद से काम लेने की जरूरत है।
तरलोचन सिंह ने मिश्र के जीवन की कुछ अनोखी बातें प्रस्तुत की। उन्होंने कहा कि सौ वर्ष की उम्र में भी मिश्र का उत्साह आज भी सराहनीय है। मिश्र की साहित्य की जड़ें गहरी हैं और हमारे लिए मील का पत्थर साबित होंगी। प्रकृति और संस्कृति जैसे विविध विषयों में लेखन कर, गांव से शहर तक की यात्रा मिश्र के गीतों में में देखने को मिलती है। उन्होंने कहा कि मिश्र में नकारात्मकता के भाव कतई नहीं है। इनकी कविताओं में आशा, जुनून और कभी न थकने की ऊर्जा है।
प्रो. स्मिता मिश्र ने कहा कि रामदरश मिश्र की पुत्री होना सौभाग्य की बात है। दुनिया को समझने की कोशिश आपने अपने पिता की दृष्टि द्वारा की।
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हिन्दुस्थान समाचार / सुशील कुमार