अमौर प्रखंड में हर साल बाढ़ का कहर, नदियों की मनमानी से त्रस्त लोग, स्थायी समाधान की उठी मांग
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- Oct 09, 2025
पूर्णिया, 9 अक्टूबर (हि.स.)। पूर्णिया जिले के अमौर प्रखंड का इलाका हर साल बाढ़ की विभीषिका झेलने को मजबूर है। यह क्षेत्र नदियों के अभिशाप से सदैव अभिशप्त रहा है।
विडंबना यह है कि यहां की नदियां, कनकई, महानंदा और परमान खुशियों के गीत नहीं गातीं, बल्कि हर वर्ष बरसात के दिनों में उफनकर रिहायशी इलाकों की ओर रुख करती हैं। परिणामस्वरूप, इन इलाकों में रहने वाले लोगों की जिंदगी कठिनाइयों और संकटों से भर जाती है।
इन क्षेत्रों के लोग ही बता सकते हैं कि बाढ़ के दौरान उनकी जीवन-स्थिति कितनी विकट हो जाती है। नदियों की मनमानी अब यहां के लोगों की नियति बन चुकी है। सच्चाई यह है कि इन हालातों से लोगों ने समझौता कर लिया है, क्योंकि जब जिम्मेदार लोग इसे “प्राकृतिक आपदा” कहकर राहत सामग्री बांटने तक ही अपने कर्तव्य को सीमित कर लेते हैं, तो गरीबों के पास समझौते के अलावा कोई रास्ता नहीं बचता।
लगातार बाढ़ और कटाव ने यहां के लोगों को आर्थिक रूप से कमजोर कर दिया है। जून से ही कटाव का सिलसिला शुरू हो जाता है, और जुलाई में बाढ़ का पानी इन गांवों में तबाही मचाने लगता है। बाढ़ के कारण खेती बर्बाद हो जाती है, जिससे लोगों को अपने परिवार का पेट पालने के लिए साल के नौ महीने परदेस में मजदूरी करने जाना पड़ता है।
अमौर अनुमंडल के सीमलवारी, नगरा टोला, सूरजपुर सहित कई गांव हर साल बाढ़ से प्रभावित होते हैं। यहां से बहने वाली महानंदा, कनकई, दास, बकरा और परमान नदियां हर वर्ष तबाही का कारण बनती हैं।
क्षेत्र की समाजसेवी चुन्नी देवी ने सरकार से मांग की है कि बाढ़ की इस त्रासदी से लोगों को बचाने के लिए स्थायी समाधान निकाला जाए। साथ ही, बाढ़ प्रभावित गांवों के लोगों को तत्काल राहत सामग्री उपलब्ध कराई जाए ताकि वे इस आपदा से कुछ राहत पा सकें।
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हिन्दुस्थान समाचार / नंदकिशोर सिंह



