लोक आस्था पर्व छठ : उगी ना सूर्य देव भईल भोर... आसमां में बिखरी भगवान भास्कर की लालिमा तो अर्घ्य देकर व्रत का समापन
- Admin Admin
- Nov 08, 2024
- छठ के समापन पर आस्था, विश्वास, श्रद्धा, समर्पण व उल्लास का अनूठा संगम
देहरादून, 08 नवंबर (हि.स.)। आस्था, विश्वास, श्रद्धा, समर्पण व उल्लास का अनूठा संगम...। लोक आस्था के चार दिवसीय महापर्व छठ के अंतिम दिन शुक्रवार को व्रती महिलाओं ने उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देकर कठिन व्रत का समापन किया। हर ओर आस्था व श्रद्धा का अद्भुत दृश्य दिखा। भोर से ही मंगल गीत गाती व्रती महिलाओं के आने का क्रम शुरू हो गया। टपकेश्वर, मालदेवता, प्रेमनगर, चंद्रबनी, पटेलनगर, हरभजवाला, गुल्लरघाटी, छह नंबर पुलिया, केसरवाला, रिस्पना पुल, रायपुर, ब्रह्मवाला आदि राजधानी दून समेत प्रदेश भर में गंगा किनारे आस्था का समंदर हिलोरें मार रहा था।
एक तरफ व्रती महिलाओं की टोली छठ मइया की उपासना में जुटी थी तो दूसरी ओर सैकड़ों लोग उनकी कठोर तपस्या के साक्षी बनने को लालायित थे। अल सुबह ही ऐसा लग रहा था मानों पूरा नगर ही घाटों पर उमड़ आया हो। आसमान में लालिमा बिखेरते सूर्यदेव जैसे ही प्रकट हुए व्रतियों ने अर्घ्य देकर अपने कठिन छठ व्रत का समापन किया। छठ घाटों पर भीड़ के मद्देनजर सुरक्षा के कड़े प्रबंध किए गए थे।
गुरुवार की सांझ बेला अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने के बाद से ही लोग उगते सूर्य को अर्घ्य देने की तैयारी में जुट गए थे। आधी रात के बाद से ही श्रद्धालुओं की टोली छठ घाट पर पहुंच गई। छठ घाटों पर पहुंचने के बाद वेदी पूजन कर महिलाएं जल में प्रवेश कर गईं, जो उजाला होते ही हाथों में अर्घ्य सामग्री लेकर सूर्य के उगने का इंतजार कर रही थीं। लगातार 36 घंटे तक निर्जला व्रत रख साफ-सुथरे सूप व डलिया में सेब, संतरा, केला, शरीफा, कंदा, मूली, गन्ना, नारियल के साथ ही माला-फूल, धूपबत्ती व दीपक सजाकर पूजन के लिए तैयार महिलाओं के चेहरे पर थकावट का भाव नहीं दिखा। छठ मइया के प्रति उनका विश्वास और आस्था देख साथ आई महिलाएं भी उनके प्रति श्रद्धाभाव दिखाती रहीं। व्रती महिलाएं छठ माई के पारंपरिक गीत गाकर भगवान सूर्य से उदय होने के लिए मनुहार करती रहीं। घंटों कमर भर पानी में खड़े रहकर छठ मइया की आराधना की।
सुबह जैसे ही भगवान भास्कर की लालिमा आसमान में दिखी, अर्घ्य देने का सिलसिला शुरू हो गया। लोगों ने उगते सूर्यदेव को मंत्रोच्चारण के बीच जल और दूध अर्पित कर सुख-समृद्धि की कामना की। वहीं, व्रती महिलाओं के साथ उनके परिजनों और रिश्तेदारों ने भगवान भाष्कर को अर्घ्य देकर उनके प्रति आस्था जताई। अर्घ्य देने के साथ लोगों में प्रसाद लेने की होड़ मच गई। दिन भर प्रसाद वितरण का दौर चला। जिसके घर छठ पूजा हुई थी वे अपने शुभचिंतकों को प्रसाद देने निकल पड़े।
सूर्यदेव, उषा, प्रकृति, जल और वायु को समर्पित है छठ व्रत
छठ देवी सूर्यदेव की बहन है, इसलिए छठ पर्व पर छठ देवी को प्रसन्न करने के लिए सूर्यदेव को प्रसन्न किया जाता है। छठ व्रत सूर्य देव, उषा, प्रकृति, जल और वायु को समर्पित हैं। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को श्रद्धा और विश्वास से करने से नि:संतान स्त्रियों को संतान सुख की प्राप्ति होती है।
छठ गीतों से वातावरण भक्तिमय
उगते सूर्य को अर्घ्य देकर और छठी माई को याद कर व्रती महिलाओं ने परिवार की सुख-समृद्धि की कामना की। इस दौरान छठ गीतों से वातावरण भक्तिमय हो गया।
घाट पर प्रसाद वितरण
पूजा होने के बाद छठ घाट पर लोगों को प्रसाद बांटने की भी परंपरा है। प्रसाद का अर्थ दूसरे का आशीर्वाद लेने की प्रक्रिया है। प्रसाद ग्रहण करने से अंतःकरण के तमाम विकार खत्म हो जाते हैं।
छठ की छटा को सेल्फी में किया कैद
छठ की छटा को मोबाइल में कैद करने, सेल्फी में उतारने की भी होड़ रही। छठ पूजन की लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जितनी महिलाएं पूजन अर्चन करती रहीं उससे कहीं ज्यादा पूजन की पूरी प्रक्रिया देखने के लिए महिलाओं, बच्चों और युवतियों की घाटों पर भीड़ रही।
-------------
हिन्दुस्थान समाचार / कमलेश्वर शरण