गुरू-शुक्र तारा अस्त होने के कारण मई-जून में एक भी विवाह के मुहूर्त नहींः पंडित शास्त्री और दाधीच

जयपुर, 29 अप्रैल (हि.स.)। मई-जून में शादियों के वैसे शादी के काफी मुहूर्त होते है। लेकिन वर्ष 2024 में गुरु व शुक्र तारा अस्त होने के कारण मई-जून में एक भी विवाह के मुहूर्त नहीं है। जुलाई के बाद चातुर्मास होने के कारण चार माह तक कोई विवाह का मुहूर्त नहीं है। मई-जून में मात्र तीन दिन आखातीज ,पीपल पूर्णिमा, भड़ली (भड़ल्या) नवमी और इसके बाद देव उठनी एकादशी पर सावों का अबूझ मुहूर्त होने से शादियां हो सकेंगी। तारा अस्त से तीन दिन पहले और उदय के तीन दिन बाद तक वुद्वत्व व बालत्व दोष माना जाता है। इस वजह से तारा अस्त होने से तीन दिन पहले और तीन दिन बाद तक कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है।

शुक्र तारा वैशाख कृष्णा पंचमी 29 अप्रैल को रात्रि 11 बजकर 14 मिनट पर पूर्व दिशा में अस्त होगा। इसके बाद आषाढ़ कृष्णा अमावस्या 7 जुलाई को शाम 4.20 बजे उदय होगा। इसी दौरान वैशाख कृष्णा चतुर्दशी 7 मई से ज्येष्ठ कृष्ण अष्टमी 31 मई तक गुरु का तारा अस्त रहेगा। अतरू गुरु व शुक्र तारा अस्त होने से विवाह समेंत मांगलिक कार्यों पर रोक रहेगी। वैशाख शुक्ला तृतीया आखातीज का अबूझ मुहूर्त होने से विवाह करने में कोई दोष नहीं रहेगा। इसी तरह पीपल पूर्णिमा पर व भड़ली(भड़ल्या) नवमी भी अबूझ मुहूर्त रहेगा।

अबूझ मुहूर्त में चार सावे

पंडित शैलेश शास्त्री ने बताया कि 29 अप्रैल से 7 जुलाई तक शुक्र तारा अस्त रहेगा। इसी दौरान 7 मई को गुरु भी अस्त हो जाएगा। गुरु व शुक्र तारा अस्त होने से विवाह समेंत मांगलिक कार्यों पर रोक रहेगी। विवाह के शुद्ध व शुभ मुहूर्त के लिए जुलाई तक इंतजार करना होगा। इस बीच वैशाख शुक्ला तृतीया आखातीज 10 मई, 16 मई जानकी नवमी को अबूझ मुहूर्त होने से विवाह करने में कोई दोष नहीं रहेगा। 23 मई पीपल पूर्णिमा व 15 जुलाई को भड़ल्या नवमी पर भी अबूझ मुहूर्त रहेगा। इसी प्रकार जून महीने में गंगा दशमी का भी अबूझ मुहूर्त रहेगा।

देवशयनी से देवउठनी तक मुहूर्त नहीं

पंडित खेमराज दाधीच ने बताया कि जुलाई में भी विवाह के केवल 6 मुहूर्त ही है। इसके पश्चात 17 जुलाई को देवशयनी एकादशी से 16 नवंबर तक चातुर्मास लगने से शुभ कार्य नहीं किए जा सकेंगे। चातुर्मास में करीब 66 दिनों के लिए विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश, उद्यापन आदि मांगलिक कार्य पर रोक लग जाएगी।

कैसे होता तारा अस्त

पंडित शास्त्री और दाधीच के अनुसार सौरमंडल के नवग्रहों में शुक्र का विशेष महत्व है। भौतिक सुख और सुविधाओं का कारक होने से शुक्र अस्त होने से किसी भी प्रकार के मांगलिक कार्य वर्जित माने गए है। शुक्र के आकाश में सबसे तेज चमकने वाला तारा माना जाता है। शुक्र जब सूर्य के दोनों ओर 10 डिग्री या इससे अधिक पास आ जाता है तो शुक्र अस्त हो जाता है।

तारा अस्त में क्या न करें

विवाह, गृह प्रवेश, बावड़ी, भवन निमार्ण, कुआं, तालाब, बगीचा, जल के बडे होदे, व्रत का प्रारम्भ, उद्यापन, प्रथम उपाकर्म, नई बहू का गृह प्रवेश, देवस्थापन, दीक्षा, उपनयन, जडुला उतारना आदि कार्य नहीं करें।

हिन्दुस्थान समाचार/ दिनेश सैनी/ईश्वर

   

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