ब्राह्मण और दलितों को जोड़कर सीट जीतने की बसपा ने की तैयारी

सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले पर दशकों बाद ब्राह्मण चेहरे पर मायावती ने लगाया है दांव

हमीरपुर, 06 मई (हि.स.)। हमीरपुर-महोबा-तिंदवारी संसदीय क्षेत्र में बसपा ने अब ब्राह्मण और दलितों को जोड़कर सीट जीतने की तैयारी शुरू कर दी है। इसके लिए पार्टी ने जातीय समीकरणों को साधने के लिए चुनावी सभाएं कराए जाने का फैसला किया है। सोशल इंजीनियरिंग का कार्ड एक बार फिर फेंके जाने से यहां चुनावी दंगल में भाजपा और इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी के माथे पर चिंता की लकीरें खिंच गई हैं।

बुंदेलखंड के हमीरपुर-महोबा-तिंदवारी संसदीय सीट के लिए सिटी एमपी व भाजपा प्रत्याशी पुष्पेन्द्र सिंह चंदेल यहां हैट्रिक लगाने के लिए बड़ी जद्दोजहद कर रहे है। वहीं उन्हें घेरने के लिए कांग्रेस के समर्थन से सपा प्रत्याशी अजेन्द्र सिंह राजपूत जातीय समीकरण अपने पक्ष में करने में जुटे है। इस बार मायावती ने कई दशकों यहां की सीट पर पहली बार ब्राह्मण समाज से निर्दाेष दीक्षित को प्रत्याशी घोषित किया है जिससे संसदीय क्षेत्र में चुनावी समीकरण तेजी से बदलने लगे है। चुनावी घमासान के बीच तीनों ही प्रत्याशी एक दूसरे पर भारी पड़ते दिख रहे है। संसदीय क्षेत्र में 22.63 फीसदी के करीब अनुसूचित जाति के मतदाता है जिसे बसपा का आधार वोट माना जाता है।

वहीं ब्राह्मण बिरादरी से नए चेहरे के आने से चुनाव मैदान में इस बार हाथी साइकिल और कमल को कहीं न कहीं झटका दे सकता है। हमीरपुर-महोबा-तिंदवारी संसदीय क्षेत्र में करीब साढ़े दस फीसदी मतदाता ब्राह्मण जाति के है जबकि साढ़े बारह फीसदी से अधिक क्षत्रिय मतदाता है। इसके अलावा करीब तीन फीसदी वैश्य मतदाता है जिसे भाजपा का बेस वोट चुनावी जानकार लोग मानते है। चुनावी विसात में इंडिया गठबंधन में सपा ने जातीय समीकरण को लेकर पहली बार लोधी बिरादरी से अजेन्द्र सिंह राजपूत को प्रत्याशी बनाया है जो इस समय भाजपा प्रत्याशी को सीधी टक्कर दे रहे है लेकिन बसपा प्रत्याशी निर्दाेष दीक्षित के चुनाव मैदान में आने से चुनावी मुकाबला अब त्रिकोणीय हो गया है।

सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले पर दशकों बाद ब्राह्मण चेहरे पर मायावती ने लगाया है दांव

मायावती ने इस बार बुंदेलखंड की हमीरपुर-महोबा-तिंदवारी संसदीय सीट पर सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला अपनाकर ब्राह्मण समाज से निर्दाेष दीक्षित प्रत्याशी चुनाव महामसर में उतारा है। पार्टी ने ब्राह्मण दलितों को जोड़कर इस सीट पर दमदार उपस्थिति दर्ज कराने की बड़ी चाल चली गई है। बसपा की नैया को किनारे तक ले जाने के लिए पार्टी अपने कैडर वोट पर फोकस किए है। कैडर वोट को रिझाने के लिए जल्द ही संसदीय क्षेत्र में चुनावी सभा कराने की तैयारी बसपा ने शुरू कर दी है।

बसपा के सोशल इंजीनियरिंग फार्मूला से चुनावी महासमर में भाजपा व सपा की चिंताएं बढ़ी

संसदीय क्षेत्र में इस बार बसपा के सोशल इंजीनियरिंग फार्मूला से चुनावी महासमर में भाजपा और सपा की चिंताएं बढ़ गई है। साढ़े बाइस फीसदी से ज्यादा वोट अकेले पार्टी का आधार माना जाता है। ऐसे में ब्राह्मण प्रत्याशी के चुनाव मैदान में आने से जातीय समीकरणों का लाभ बसपा को मिल सकता है। बता दे कि बसपा यहां की सीट पर सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले पर 1999 और 2009 में क्षत्रिय समाज पर दांव लगाया था जिससे दोनों बार ही क्षत्रिय समाज ने इस सीट पर जीत दर्ज कराई थी।

हिन्दुस्थान समाचार/पंकज//बृजनंदन

   

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