वैशाख अमावस्या में त्रेता युग की शुरुआत हुई थी: गुरु साकेत

किशनगंज, 07 मई (हि.स.)। महाकाल मंदिर में मंगलवार को अमावस्या पूजा की गई। महाकाल मंदिर के पुरोहित गुरु साकेत ने बताया कि इस बार वैशाख अमावस्या 8 मई को मनाई जाएगी। उन्होंने कहा कि सनातन धर्म में वैशाख अमावस्या का विशेष महत्व बताया गया है। इसी महीने में त्रेता युग की शुरुआत हुई थी।

वैशाख माह में पड़ने वाली अमावस्या को वैशाख अमावस्या कहते हैं। गुरु साकेत कहते है कि वैशाख अमावस्या पर कुंडली में मौजूद कालसर्प जैसे कष्टकारी दोषों को आसानी से दूर किया जा सकता है। वैशाख अमावस्या पर दान-स्नान और पितरों का तर्पण अत्यंत कल्याणकारी माना गया है। गुरु साकेत कहते है वैशाख अमावस्या के दिन स्नान-दान की परंपरा सदियों से चली आ रही है। इस दिन पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण या कर्मकांड करने से बहुत पुण्य मिलता है।

वैशाख अमावस्या के दिन बहते हुए जल में तिल का प्रवाह कर सकते हैं। इससे जीवन में सुख-समृद्धि और सकारात्मकता का संचार होता है। वैशाख अमावस्या के दिन सूर्य देव को अर्घ्य देना बेहद शुभ होता है। स्नान और पूजन के बाद अपने सामर्थ्य के अनुसार दान करना भी बेहद फलदायी माना गया है। गुरु साकेत कहते है वैशाख अमावस्या पर कुछ सरल उपाय से कुंडली के कालसर्प दोष को भी दूर किया जा सकता है। इस दिन विधिवत पूजन के बाद पीपल के पेड़ को जल अर्पित करना भी शुभ होता है।

गुरु साकेत ने बताया कि इस साल वैशाख अमावस्या तिथि 7 मई को (यानी आज मंगलवार को) सुबह 11 बजकर 41 मिनट पर आरंभ होगी और अगले दिन यानी 8 मई को सुबह 8 बजकर 52 मिनट पर समाप्त होगी। हालांकि वैशाख अमावस्या 8 मई को ही मान्य है। इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में सुबह 4.10 बजे से सुबह 4.52 बजे तक अमावस्या तिथि का स्नान किया जा सकता है। जबकि दान पुण्य के कार्य सुबह 5.34 बजे से सुबह 7.15 बजे तक करना शुभ रहेगा।

गुरु साकेत ने बताया कि वैशाख अमावस्या के दिन गरीबों और जरूरतमंदों को अपनी क्षमतानुसार कपड़े, चीनी, अनाज और धन का दान करना चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से जातक पर पितरों की कृपा हमेशा बनी रहती है। अमावस्या तिथि के दिन पशु-पक्षियों के सेवा करना और उन्हें दाना खिलाना बेहद शुभ माना गया है। मान्यता है कि ऐसा करने से जीवन में सुख-समृद्धि और खुशहाली आती है। वैशाख अमावस्या के दिन पितृ दोष से मुक्ति पाने के लिए ॐ कुल देवताभ्यों नमः मंत्र का जाप करना लाभकारी साबित हो सकता है।

गुरु साकेत ने बताया कि वैशाख अमावस्या के महत्व से जुड़ी एक कथा पौराणिक ग्रंथों में मिलती है। प्राचीन काल में धर्मवर्ण नाम का एक ब्राह्मण था। वो बहुत ही धार्मिक और ऋषि-मुनियों का आदर करने वाला व्यक्ति था। एक बार उन्होंने किसी महात्मा के मुख से सुना कि कलियुग में भगवान विष्णु के नाम स्मरण से ज्यादा पुण्य किसी भी कार्य में नहीं है।

धर्मवर्ण ने इस बात को आत्मसात कर लिया और सांसारिक जीवन छोड़कर संन्यास लेकर भ्रमण करने लगा। एक दिन घूमते हुए वह पितृलोक पहुंचा। वहां धर्मवर्ण के पितृ बहुत कष्ट में थे। पितरों ने उसे बताया कि उनकी ऐसी हालत तुम्हारे संन्यास के कारण हुई है। क्योंकि अब उनके लिए पिंडदान करने वाला कोई शेष नहीं है। यदि तुम वापस जाकर गृहस्थ जीवन की शुरुआत करो, संतान उत्पन्न करो तो हमें राहत मिल सकती है। साथ ही, वैशाख अमावस्या के दिन विधि-विधान से पिंडदान करो। धर्मवर्ण ने उन्हें वचन दिया कि वह उनकी अपेक्षाओं को अवश्य पूर्ण करेगा। इसके बाद धर्मवर्ण ने संन्यासी जीवन छोड़कर पुनः सांसारिक जीवन को अपनाया और वैशाख अमावस्या पर विधि विधान से पिंडदान कर अपने पितरों को मुक्ति दिलाई।

हिन्दुस्थान समाचार/धर्मेन्द्र/गोविन्द

   

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