जल जीवन मिशन, ना हर घर नल ना हर घर जल

प्रधानमंत्री मोदी के जलजीवन मिशन कठुआ जिला में लागु नहीं हो रहा है। कड़ी धुप और तपते गर्मी के मौसम में जहाँ पानी लोगों को राहत पहुंचता है वहीं कठुआ जिले के लोगों को पीने के पानी की भी आवश्यकता अनुसार उपलब्धि नहीं मिल रही है। आधिकारिक सूत्रों के हवाले से पता चला है कि कठुआ जिले में लगभग साढ़े तीन हज़ार हैंडपंप हैं लेकिन 1000 से ’यादा काम नहीं कर रहे हैं। स्थानीय लोगों ने बताया कि जल जीवन मिशन का काम लगाने के लिए पुराणी पाइपें को उखाड़ दिया जा रही हैं और नई लगायी जा रही हैं जिसका काम भी बीच में बंद कर दिया गया है जिस कारण पानी की सप्लाई में दिक्कत आ रही है। यह हाल पुरे कठुआ जिला का है खासकर कंडी पहाड़ी क्षेत्रों में बिजली की अनियनित कटौती के काम और भी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। बता दें कि कुछ दिनों पहले हैंडपंप मुरम्मत की राशि की मांग के लिए डीडीसी अध्यक्ष द्वारा एक पत्र भी भेजा गया था।
 धूप और तपती गर्मी के बीच उपमंडल बसोहली के कई इलाकों में पानी की किल्लत से लोग परेशान हैं। कहीं लोगों को सप्ताह भर से पानी नहीं मिल रहा तो कहीं अपने घरों से दूर कई किलोमीटर का पैदल सफर तय कर लोग प्राकृतिक जल स्रोतों से पानी ला रहे हैं। जिंदरैली से गुजर बस्ती की दूरी करीब दो किलोमीटर की है। यहां 1500 की आबादी के लिए नल तक नहीं लगाए गए हैं। इसके चलते लोगों को पानी नहीं मिल पा रहा है और लोग अपने घरों से दूर कई किलोमीटर जंगली रास्ते से पैदल चलकर प्राकृतिक जलस्रोत से पानी ला रहे हैं। यही हाल घोड़ल नंगली, जान्नु दन्ना,सांधर, सिआलग जैसे कई इलाकों में देखने को मिल रही हैं। पूर्व बीडीसी चेयरमैन सुषमा जम्वाल ने बताया कि पलाही पंचायत रवि नदी के किनारे बस्ता है, यहाँ पानी की कमी नहीं होनी चाहिए लेकिन यहाँ भी लोगों को पानी की किल्लत से जूझना पड़ रहा है। पुराणी पाइपों को उखड लिया गया है और नहीं लगायी तक नहीं गयी हैं। कई काम के चलते टूट गयी हैं लेकिन उनकी फिर से मुरम्मत नहीं की गयी हैं। उन्होंने बताया ग्रामीण इलाकों में हालत और भी बुरे हैं। हैंडपंप खऱाब होने के कारण पीने का जल उपलब्ध नहीं है और लोगों को पैसे देकर टैंकरों का सहारा लेना पड़ रहा है। 
जंगल में आग लगने से जल सकती हैं प्लास्टिक पाइपें, फिर भी यही लगायी हैं 
शीतलनगर के एक किसान ने बताया कि पहाड़ों के लोग ग्रेविटी के पानी पर निर्भर करते हैं उनके पास इसके इलावा और कोई जल स्त्रोत नहीं है। इस लिए ज़रूरी हो जाता है की जो पाइपें बिछाई जा रही हैं लोहे की हो और मजबूत हों। उन्होंने बताया कि गर्मियों ले दिनों में अक्सर पहाड़ी इलाके के जंगलों में आग लग जाती है। ऐसे में जंगलों से गुजऱ रही पाइप का जलना आम बात हो जाती हैं। पहाड़ी इलाकों में ना तो कोई सरकारी बाबू नौकरी करने को तैयार है और जो हैं काम चोरी करने में कमी नहीं छोड़ते,ऐसे में कौन आकर उसी दिन पाइपलाइन ठीक करेगा ? उन्होंने बताया कि ’यादातर पहाड़ी लोग नजदीक घराट से अपने वाहनों में पानी भरकर घरों तक पहुंचाते हैं। कई बार तो हालत इतनी खराब हो जाते हैं कि जब प्राकृतिक जल स्रोत पर पानी खत्म हो जाता है तो निजी टैंकरों के सहारे काम चलाना पड़ता है। उन्होंने कहा की परेशानी इतनी बाद चुकी है कि अब उन्होंने प्रदर्शन करने का मन बना लिया है। 
जलशक्ति विभाग के सम्बंधित अधिकरियों ने बताया कि जहां पानी की कमी से लोग जूझ रहे हैं, वहां टीम को भेजकर हरसंभव प्रयास किया जा रहा है। कहीं पाइपलाइनों को दुरुस्त किया जा रहा है और कहीं टैंकरों के जरिए पानी भेजा जा रहा है। जिन इलाकों में पानी की किल्लत पड़ रही है वहां उनके विभाग द्वारा पानी के टेंकरों को भी पोहंचाया जा रहा है।

   

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