हम खुशी की तलाश में भाग रहे हैं लेकिन पता नहीं कहां मिलेगी : प्रो. शर्मा

रायपुर , 7 जून (हि.स.)। कुशाभाउ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बल्देव भाई शर्मा ने कहा कि हम पूरी जिन्दगी खुशी की तलाश में लगे रहते हैं। हम खुशियों के पीछे भाग रहे हैं लेकिन मालूम नहीं है कि खुशी कहॉ और कैसे मिलेगी? इसी उधेड़बुन में सारी जिन्दगी निकल जाती है।

प्रो. बल्देव भाई शर्मा आज शुक्रवार सुबह प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय द्वारा विधानसभा मार्ग पर स्थित शान्ति सरोवर रिट्रीट सेन्टर रायपुर में आयोजित आओ खोलें खुशियों के द्वार- राजयोग अनुभूति शिविर के उद्घाटन अवसर पर अपने विचार रख रहे थे। उन्होंने आगे कहा कि मन की मनमानी को रोकना ही ध्यान है। सारा खेल मन का है। आज राधिका दीदी ने शिविर में सबके लिए खुशियों के द्वार खोल दिए हैं। ब्रह्माकुमारी परिवार सम्पूर्ण मानव जाति को प्रेम, सुख और शान्ति से जीने का मार्ग दिखा रहा है। उसी का यह राजयोग शिविर छोटा सा स्वरूप है।

इस अवसर पर हैदराबाद की वरिष्ठ राजयोग शिक्षिका ब्रह्माकुमारी राधिका दीदी ने कहा कि राजयोग के लिए स्वयं की पहचान जरूरी है। राजयोग मेडिटेशन से जीवन में स्थायी खुशी प्राप्त की जा सकती है। यदि हम अपने जीवन को चिन्ता रहित, सुख-शान्ति सम्पन्न बनाना चाहते हैं तो यह जानना निहायत जरूरी है कि मैं कौन हूॅं?

ब्रह्माकुमारी राधिका दीदी ने आगे कहा कि जब हम कहते हैं कि मुझे शान्ति चाहिए? तो यह कौन है जो कहता है कि मुझे शान्ति चाहिए? शरीर शान्ति नही चाहता। शरीर की शान्ति तो मृत्यु है। उन्होने बतलाया कि आत्मा कहती है कि मुझे शान्ति चाहिए। उन्होने आगे कहा कि आत्मा एक चैतन्य शक्ति है। शक्ति को स्थूल नेत्रों से देखा नही जा सकता लेकिन मन और बुद्घि से उसका अनुभव किया जाता है। उसी प्रकार आत्मा के गुणों का अनुभव करके उसकी उपस्थिति का अहसास होता है। आत्मा का स्वरूप अतिसूक्ष्म ज्योतिबिन्दु के समान है। उसे न तो नष्टï कर सकते हैं और न ही उत्पन्न कर सकते हैं। वह अविनाशी है। आत्मा के शरीर से निकल जाने पर न तो शरीर कोई इच्छा करता हैं और न ही किसी तरह का कोई प्रयास करता है।

ब्रह्माकुमारी राधिका दीदी ने बतलाया कि आत्मा तीन शक्तियों के द्वारा अपना कार्य करती है। वह किसी भी कार्य को करने से पहले मन के द्वारा विचार करती है, फिर बुद्घि के द्वारा यह निर्णय करती है कि उसके लिए क्या उचित है और क्या अनुचित? तत्पश्चात किसी भी कार्य की बार-बार पुनरावृत्ति करने पर वह उस आत्मा का संस्कार बन जाता है।

उन्होंने आगे बतलाया कि आत्मा की सात मूलभूत विशेषताएं होती हैं- ज्ञान, सुख, शान्ति, आनन्द,पवित्रता, प्रेम, और शक्ति। यह सभी आत्मा के मौलिक गुण हैं, जो कि शान्ति की अवस्था में हमें अनुभव होते हैं। उन्होने कहा कि हमारा मन किसी न किसी व्यक्ति, वस्तु या पदार्थ की स्मृति में भटकता रहता है, अब उसे इन सबसे निकालकर एक परमात्मा की याद में एकाग्र करना है। इसी से आत्मा में आत्मविश्वास और शक्ति आएगी।

शिविर का शुभारम्भ जायसवाल निको कम्पनी के प्रेसीडेन्ट (एच. आर.) दिलीप मोहन्ती, प्रो. बल्देव भाई शर्मा, ब्रह्माकुमारी सविता दीदी, राधिका दीदी और सन्तोष दीदी ने दीप प्रज्वलित करके किया।

हिन्दुस्थान समाचार/ गेवेन्द्र

   

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