डसॉल्ट एविएशन का रिलायंस डिफेंस से करार खत्म, अब अकेले खोलेगी एमआरओ


- लड़ाकू मिराज-2000 और राफेल जेट के बेड़े की मरम्मत और ओवरहालिंग होगी आसान

- इंडोनेशियाई वायु सेना के 42 राफेल लड़ाकू विमानों की जरूरतों को भी पूरा किया जायेगा

नई दिल्ली, 03 जुलाई (हि.स.)। फ्रांसीसी कंपनी डसॉल्ट एविएशन ने भारतीय साझेदार अनिल अंबानी की रिलायंस डिफेंस से अलग होकर भारत में अकेले ही रखरखाव सुविधा (एमआरओ) स्थापित करने का फैसला लिया है। यह एमआरओ उत्तर प्रदेश के जेवर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के पास खोला जायेगा, जहां भारत के लड़ाकू मिराज-2000 और राफेल जेट के बेड़े के रखरखाव, मरम्मत और ओवरहालिंग की जाएगी। यहीं से इंडोनेशियाई वायु सेना की जरूरतों को भी पूरा किया जायेगा, जो 42 राफेल लड़ाकू विमानों का संचालन करती है।

दरअसल, रिलायंस डिफेंस और फ्रांसीसी कंपनी का संयुक्त उद्यम 'डसॉल्ट रिलायंस एयरोस्पेस लिमिटेड' (डीआरएएल) है, जो फाल्कन बिजनेस जेट और राफेल के लिए पुर्जे बनाने के लिए नागपुर में एक संयंत्र संचालित करता है। इसके बाद डसॉल्ट एविएशन ने भारतीय साझेदार रिलायंस डिफेंस के साथ लड़ाकू मिराज-2000 और राफेल जेट के बेड़े की रखरखाव, मरम्मत और ओवरहालिंग के लिए अलग से एमआरओ स्थापित करने की योजना बनाई थी।

अब डसॉल्ट एविएशन ने इस परियोजना के लिए अपने भारतीय साझेदार अनिल अंबानी की रिलायंस डिफेंस से अलग होने का फैसला लिया है। फ्रांसीसी रक्षा प्रमुख डसॉल्ट एविएशन ने एमआरओ स्थापित करने के लिए भारत सरकार के पास एक आवेदन दायर किया है। यह डसॉल्ट एविएशन का एक स्वतंत्र उपक्रम होगा और इसका पूर्ण स्वामित्व फ्रांसीसी विमानन फर्म के पास होगा। कंपनी ने यह आवेदन भारत में अपने उद्यम के प्रस्तावित नाम को पंजीकृत करने के लिए दिया है।

जेवर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के पास बनने वाले एमआरओ में भारतीय वायु सेना के 36 राफेल लड़ाकू विमानों और भारतीय नौसेना के लिए खरीदे जाने वाले 26 राफेल मरीन के लिए पूरी सुविधा होगी। डसॉल्ट एविएशन इसी एमआरओ से इंडोनेशिया की जरूरतों को भी पूरा करेगी, जो 42 राफेल लड़ाकू विमानों का संचालन करता है। भारत ने आपातकालीन खरीद के तहत 36 राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद की है लेकिन वायु सेना की घटती लड़ाकू ताकत को और मजबूत करने की बड़ी जरूरत बनी हुई है।

वायु सेना को मीडियम रोल फाइटर एयरक्राफ्ट (एमआरएफए) कार्यक्रम के तहत नए लड़ाकू विमानों की लंबे समय से आवश्यकता है, जिसके तहत 'मेक इन इंडिया' मार्ग के माध्यम से 114 नए लड़ाकू विमान खरीदना चाहती है। फिलहाल वायु सेना के पास स्वीकृत 42 लड़ाकू स्क्वाड्रन के मुकाबले 31 स्क्वाड्रन हैं, जिनमें पुराने हो चुके मिग-21 और जगुआर के अलावा मिग-29 भी शामिल हैं। इन सभी रूसी विमानों को 2029-30 तक सेवामुक्त किये जाने की योजना है ।

लड़ाकू विमानों की स्क्वाड्रन में करीब 270 सुखोई-30 एमकेआई विमान हैं, जिनकी मरम्मत के लिए अक्सर रूसी पुर्जों की जरूरत पड़ती रहती है, लेकिन रूस-यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध ने प्रमुख स्पेयर पार्ट्स की खरीद को और भी मुश्किल बना दिया है। इसलिए अस्थायी व्यवस्था के तौर पर भारतीय वायु सेना कतर से 12 पुराने मिराज लड़ाकू विमान खरीदने के लिए बातचीत कर रही है। हालांकि, यह उन विमानों से अलग है, जिनका इस्तेमाल भारतीय वायु सेना कर रही है और इसलिए इसे एक अलग स्क्वाड्रन के तौर पर तैयार किए जाने की संभावना है।

हिन्दुस्थान समाचार/सुनीत निगम 

   

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