ज्ञानवापी केस का फैसला पूर्णतः सत्यता व पारदर्शिता पर आधारित: डॉ अजय कृष्ण विश्वेश

-ज्ञानवापी के मुकदमे मे ऐतिहासिक फैसला देने वाले पूर्व जिला जज का अभिनंदन

वाराणसी, 08 फरवरी (हि.स.)। ज्ञानवापी परिसर में स्थित व्यासजी के तहखाने में पूजा की अनुमति का आदेश देने के बाद जिला जज के पद से रिटायर हुए डॉ अजय कृष्ण विश्वेश को सम्मानित किया गया। गुरुवार को महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के समिति कक्ष में प्रबोधिनी फाउंडेशन एवं प्रबुद्धजन काशी के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित 'काशी में ज्ञानवापी' विषयक एक दिवसीय संगोष्ठी और सम्मान समारोह में प्रबुद्ध जनों ने पूर्व जिला जज के फैसले की जमकर सराहना की।

इस अवसर पर पूर्व जिला जज ने बतौर मुख्य अतिथि कहा कि न्यायिक सेवा अन्य सेवाओं से भिन्न होता है, यहां जो भी निर्णय पत्रावली के साक्ष्य और सबूत के आधार पर किया जाता है, हर साक्ष्य का परीक्षण कर सबूत के आधार पर स्वयं के विवेक का प्रयोग करते हुए न्याय को मूर्त रूप दिया जाता है। ज्ञानवापी मामला सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद जिला न्यायालय में मेरे समक्ष आया, सर्वोच्च न्यायलय का निर्देश हमारे लिए जिम्मेदारी का बोध कराने वाला था, मैंने दोनों पक्षों का बहस और जिरह को पूरा सुनने के बाद, साक्ष्यों के आधार पर ही आदेश पारित किया। मैंने न्याय के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए सभी फैसले सुनाए। अपनी योग्यता और पत्रावली पर मिले साक्ष्यों के आधार पर आदेश दिया। मेरे मन में एक इच्छा हमेशा रहती थी कि जो भी मैं आदेश लिखूं वह बेहतरीन होना चाहिए। उसमें कोई कमी नहीं होनी चाहिए।

मुख्य वक्ता राजर्षि गांगेय हंस विश्वामित्र ने कहा राष्ट्र और राज्य दोनों एक नहीं हैं, लेकिन दोनों का सम्बन्ध शरीर और आत्मा जैसा है, किसी भी देश का भूगोल और इतिहास नहीं बदलता है। जब भारत में संविधान नहीं था, तब भी भारत का अस्तित्व था। उन्होंने आगे कहा कि हमारी सांस्कृतिक शक्ति ही भारत है, इसलिए इसकी रक्षा राष्ट्र की रक्षा है। उन्होंने पूर्व जिला जज को धन्यवाद देते हुए कहा कि मैंने पद का सम्मान होते बहुत देखा, लेकिन आज पहली बार कद का सम्मान होते देख रहा हूं।

सम्मान समारोह में 125 किलो गेंदा और गुलाब के पुष्प से बने विशाल माला को पूर्व जिला जज को पहनाया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के कुलपति प्रो. एके त्यागी ने किया। कार्यक्रम आयोजन समिति के अध्यक्ष विनय शंकर राय मुन्ना ने अतिथियों का स्वागत किया। कार्यक्रम में प्रदीप राय ने भी विचार रखा।

महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के ललित कला विभाग के अध्यक्ष डॉ सुनील विश्वकर्मा, जिन्होंने राम लला की मूर्ति का स्केच बनाया था, उनका सम्मान स्मृति चिन्ह एवं अंगवस्त्र देकर किया गया।

गोष्ठी में डॉ अशोक राय, जितेन्द्र राय बबलू, गिरजानंद चौबे, एडवोकेट दीपा सिंह, महेश्वर सिंह, डॉ राकेश तिवारी, प्रो. के.के. सिंह, प्रो. नागेंद्र सिंह आदि ने भागीदारी की।

हिन्दुस्थान समाचार/श्रीधर/आकाश

   

सम्बंधित खबर