लोक की रचना व्यक्ति नहीं समाज करता है: प्रो.रवीन्द्र नाथ

केविवि में विशिष्ट व्याख्यान में भाग लेते शोधार्थी व वक्तागणकेविवि में विशिष्ट व्याख्यान में भाग लेते शोधार्थी व वक्तागण

पूर्वी चंपारण,09 फरवरी(हि.स.)। महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के तत्वावधान में लोक साहित्य में चित्रित समाज पर विशिष्ट व्याख्यान का आयोजन शुक्रवार को किया गया।कार्यक्रम में मुख्य वक्ता नव नालंदा महाविहार सम विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के प्रो. रविंद्र नाथ श्रीवास्तव परिचय दास ने कहा कि लोक साहित्य हमारे जीवन में सदैव उपस्थित होता है। समकालीन समय में लोक का चिंतन बदल गया है। लोक मौखिकता की मनोगति है, क्योंकि लोक की रचना व्यक्ति नहीं समाज करता है। उसका मूल्य समाजगत है। लोकगायन में एक निश्चित कथा विन्यास होता है इसलिए लोक गाथाकार कहता है कि कथा नष्ट नहीं होती, यह लोकगाथा का मर्म है।

उन्होने कहा हमारे समाज में शिव सबसे अच्छे बिम्ब है। समाज को जोड़ने का सबसे सुंदर साधन लोक है। यह जीवन का एकीकरण है। लोक जीवन में सबसे बड़ा महत्व स्मृति का है, इससे हम अपने जीवन में बने रहते हैं। मानवीकरण रचनात्मक साहित्य से कहीं अधिक इस लोक में उपस्थित होता है,क्योंकि यहां मौखिकता की परंपरा पर बल होता है,जिसके कारण यह टिकाऊ होता है। आज समय बदला है, ज्ञान सूचनाओं में बदल गया है। इससे जीवन भी सूचना में रूपांतरित हो गया है। भावना का स्थान सूचना ने ले लिया है।

केविवि में हिंदी विभाग के सहायक आचार्य डॉ. गोविंद प्रसाद वर्मा ने कहा कि लोक साहित्य की समुदायिकता होती है। यह पूरे समाज का चित्रण करता है। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि वंदना श्रीवास्तव को पुष्पगुच्छ एवं शाॅल भेंटकर सम्मानित किया गया। इसके साथ ही उन्हें विश्वविद्यालय की पत्रिका ज्ञानग्रह भी प्रदान किया गया।

इस अवसर पर मुख्य अतिथि वंदना श्रीवास्तव ने अपने भोजपुरी चित्रों का स्लाइड के माध्यम से चित्रण किया। उन्होने एक-एक चित्र पर अपनी टिप्पणियों से अवगत कराते हुए कहा कि त्यौहारों को जीवंत रखने के लिए लोक कला को जीवित रखना आवश्यक है, क्योंकि इसका सामाजिक प्रभाव है। भोजपुरी चित्रों को आधुनिक रूप देने की बात होनी चाहिए। लोक कला वर्षों का संचयन होता है इसलिए प्रत्येक विश्वविद्यालय में एक लोक विभाग अवश्य होना चाहिए।

हिन्दुस्थान समाचार/आनंद प्रकाश/चंदा

   

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