राममंदिर और नागरिकता अधिनियम होगा बंगाल में भाजपा का मुख्य चुनावी मुद्दा

कोलकाता, 11 फरवरी (हि.स.)। देश में लोकसभा चुनाव का बिगुल बजने वाला है। भाजपा की पश्चिम बंगाल इकाई राज्य की 42 लोकसभा सीटों में से 35 पर जीत दर्ज करने के अपने लक्ष्य को प्राप्त करने की कवायद में जुटी है। इसलिए अब राज्य में मुख्य चुनावी एजेंडा के तौर पर भ्रष्टाचार के मुद्दे के साथ अयोध्या में राममंदिर और संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) जैसे मुद्दों को मुख्य रूप से जनता के बीच ले जाने का मन बनाया है। भाजपा की रणनीति पश्चिम बंगाल में आगामी लोकसभा चुनाव विपक्षी गठबंधन से अलग होकर अकेले लड़ने के तृणमूल कांग्रेस के फैसले पर आधारित है। इस कदम ने भाजपा के भीतर तृणमूल विरोधी वोट हासिल करने की उम्मीदें बढ़ा दी हैं।

2019 में बढ़ा था भाजपा का मत प्रतिशत

भाजपा को 2014 में 17 प्रतिशत वोट मिले थे जो 2019 में बढ़कर 40 प्रतिशत हो गया जिसके परिणामस्वरूप उसे 18 लोकसभा सीटें मिली थीं। राज्य में 2021 के विधानसभा चुनाव में हार के बाद से आंतरिक कलह और चुनावी झटकों के बावजूद ममता बनर्जी सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों को भुनाने की भाजपा की कोशिशें रंग नहीं लायी हैं। लोकसभा की 42 में से 35 सीटें जीतने का लक्ष्य तय करते हुए भाजपा अब राममंदिर और सीएए जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित कर रही है।

भाजपा की प्रदेश महासचिव अग्निमित्रा पॉल ने कहा कि राममंदिर में प्राण प्रतिष्ठा और सीएए लागू करना दोनों ही पार्टी के अहम मुद्दे हैं। उन्होंने कहा कि दोनों मुद्दे भावनात्मक हैं और बंगाल का इससे गहरा नाता रहा है।

भाजपा सांसद और राज्य के पूर्व अध्यक्ष दिलीप घोष ने इन मुद्दों खासतौर से मतुआ समुदाय की शरणार्थी चिंता को हल करने में इनके ऐतिहासिक महत्व पर जोर दिया। घोष ने कहा कि सीएए लागू करने के वादे ने भाजपा की चुनावी सफलता में एक अहम भूमिका निभायी है। उन्होंने कहा कि राममंदिर से पश्चिम बंगाल का भी भावनात्मक लगाव रहा है। सैकड़ों साल के इंतजार के बाद यह मौका आया है तो निश्चित तौर पर बंगाल के लोग भी इससे खुश हैं।

बंगाल की राजनीति में मतुआ समुदाय का है खासा प्रभाव

राज्य की अनुसूचित जाति की आबादी का एक अहम हिस्सा मतुआ समुदाय के लोग पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में धार्मिक उत्पीड़न से भागकर 1950 से पश्चिम बंगाल में रह रहे हैं। उनका एकजुट होकर मतदान करना उन्हें एक अहम मतदाता वर्ग बनाता है। खासतौर से सीएए पर भाजपा के रुख को देखते हुए। सीएए और राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) के वादों पर भरोसा करते हुए मतुआ समुदाय ने 2019 में राज्य में सामूहिक रूप से भाजपा के लिए वोट किया था। केंद्रीय मंत्री और मतुआ समुदाय के नेता शांतनु ठाकुर ने हाल में कहा था कि सीएए को जल्द ही लागू किया जाएगा। भाजपा को यह भी लगता है कि पश्चिम बंगाल में इंडी गठबंधन (इंडियन नेशनल डेवलेपमेंटल इन्क्लूसिव एलायंस) से अलग होकर अकेले चुनाव लड़ने के तृणमूल के फैसले से उसे तृणमूल विरोधी वोट मिलने में मदद मिलेगी।

तृणमूल प्रवक्ता कुणाल घोष ने कहा कि मतदाता पश्चिम बंगाल में भाजपा के विभाजनकारी हथकंडों को नाकाम कर ममता बनर्जी का समर्थन करेंगे।

राजनीतिक विश्लेषक मैदुल इस्लाम ने कहा कि भावनात्मक मुद्दों पर भाजपा की निर्भरता उसकी संगठनात्मक कमजोरियों से पैदा हुई है। उन्होंने कहा कि राममंदिर, समान नागरिक संहिता (यूसीसी) और सीएए जैसे मुद्दे पश्चिम बंगाल में आगामी लोकसभा चुनाव में हावी रहेंगे। हिन्दुस्थान समाचार /ओम प्रकाश /गंगा/संजीव

   

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