मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम कथा सरिता में भक्तों ने लगाए गोते

- शंकराचार्य आश्रम रायपुर पोख्ता में चल रही श्रीराम कथा

मीरजापुर, 25 फरवरी (हि.स.)। श्रीराम कथा के तीसरे दिन रविवार को शंकराचार्य आश्रम रायपुर में संगीतमय कथा का अक्षुण्ण प्रवाह बहा। रामायण में आए प्रसंग में रावण, कुम्भकर्ण एवं विभूषण ने घनघोर तपस्या की। सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा ने तीनों की अत्यंत प्रशंसनीय तपस्या को देखकर आशीर्वाद देने की इच्छा प्रकट की।

स्वामी नारायणानन्दतीर्थ महाराज ने बताया कि रावण ने साभिमान वर मांगते हुए कहा कि मैं नर और वानर को कुछ नहीं समझता हूं। अतः इनसे मुझे कोई हानि नहीं है। इनसे अतिरिक्त कोई दैवीय शक्ति या अन्य मेरे संहार की अवश्यंभावी कारण न बने। चतुर्मुखी ब्रह्मा ने विचार कर आशीर्वाद दे दिया। कालान्तर में नर रूप में नारायण और वानर रूप धरे देवताओं ने राक्षसों का सम्पूर्ण विनाश किया।

स्वामीजी ने श्रीराम जन्म की कथा को आगे बढ़ाते हुए कहा कि राजा दशरथ के कुलगुरु वशिष्ठ के निर्देशन से पुत्रेष्टि यज्ञ का सम्पादन श्रृंगीऋषि द्वारा हुआ। विद्वान् ब्राह्मणों ने दशरथ के पुत्रेष्टि यज्ञ में वेद मंत्रों द्वारा आहुतियां दी गईं। भगवान् विष्णु यज्ञगत चारु में प्रविष्ट हो गए। अग्नि भगवान् ने यज्ञान्त में प्रगट होकर खीर चारू प्रदान किए और कहा कि जाओ इसी से तुम्हारी अभीप्सा पूर्ण होगी।

रामायण में गोस्वामीजी कहते हैं- अरध भाग कौसल्यहिं दीन्हा उभय भाग आधे कर लीन्हा। चारों अंशानुसार तीनों रानियों ने दिव्यता का आधान किया। साक्षात् भगवान् विष्णु ने दशरथ का पुत्र भाव स्वीकार किया। साथ ही ब्रह्मा ने सभी देवताओं को हरि की सेवा के लिए पृथ्वी लोक पर अवतरित होने का आदेश दिया। कथा के पूर्व महाराजश्री का वैदिक विधि से पादुका पूजन सम्पन्न हुआ।

हिन्दुस्थान समाचार/गिरजा शंकर/सियाराम

   

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