स्वार्थ से ऊपर उठकर ही मनुष्य परमार्थी बनता हैः मुनि डॉ. मणिभद्र

जैन धर्म में अहिंसा, तप, दान और शील मुक्ति का मार्गः स्वामी रामदेव

हरिद्वार, 15 मार्च (हि.स.)। राष्ट्र संत, नेपाल केसरी डॉ. मणिभद्र महाराज सर्वोदय शांति यात्रा पर हैं। यह वर्तमान पद यात्रा मेरठ से लेकर बद्रीनाथ धाम तक जाएगी। यात्रा का दो दिवसीय पड़ाव पतंजलि योगपीठ बना है। जहां आज उनकी भेंटवार्ता पतंजलि योगपीठ के परमाध्यक्ष स्वामी रामदेव महाराज से हुई। स्वामी रामदेव ने जैन मुनि का स्वागत करते हुए कहा कि जैन मुनि डॉ. मणिभद्र जैन धर्म के महान संत हैं। उन्होंने कहा कि जैन दर्शन सत्यान्वेषी है, जिसमें जैन श्रमण, साधु, साध्वी एक स्थान पर न रहकर विहार भ्रमण करते रहते हैं, यह यात्रा भी उसी का विग्रह रूप है। स्वामी जी ने कहा कि जैन धर्म में अहिंसा, तप, दान और शील को मुक्ति का मार्ग बताया गया है।

इस अवसर पर जैन मुनि ने कहा कि पतंजलि योगपीठ के महामंत्री आचार्य बालकृष्ण महाराज से उनका भातृवत आत्मीय सम्बंध है। पतंजलि योगपीठ भ्रमण का उनका यह तीसरा अवसर है। इससे पूर्व वे 2007 व 2011 में पतंजलि योगपीठ पधारे थे। पतंजलि के विविध सेवा प्रकल्पों यथा- पतंजलि अनुसंधान संस्थान, पतंजलि वेलनेस सेंटर, पतंजलि कन्या गुरुकुलम् व पतंजलि आयुर्वेद हॉस्पिटल आदि का भ्रमण कर उन्होंने कहा कि गत यात्रा के पश्चात पतंजलि ने अपनी सेवापरक गतिविधियों में अभूतपूर्व विस्तार किया है। उन्होंने कहा कि आचार्य बालकृष्ण के नेतृत्व में पतंजलि योगपीठ आयुर्वेद अनुसंधान के क्षेत्र में अग्रणी कार्य कर रहा है। डॉ. मणिभद्र ने कहा कि वनस्पतियों व पर्यावरण के लिए स्वामी रामदेव व आचार्य बालकृष्ण के पुरुषार्थ को देखकर सुखद अनुभूति हुई। उन्होंने बताया कि वनस्पतियों में 24 लाख प्रकार का वर्णन है। इनका पता व इन पर अनुसंधान आप्त पुरुष ही कर सकते हैं।

जैन मुनि ने कहा कि प्राकृतिक चिकित्सा, पंचकर्म, षट्कर्म, योग, आयुर्वेद के द्वारा चिकित्सकीय सेवाएँ, शिक्षा, कृषि, अनुसंधान, गौ-संरक्षण, उद्योग आदि की एक ही स्थान से उत्कृष्ट सेवाओं की व्यक्ति मात्र कल्पना कर सकता है किन्तु पतंजलि योगपीठ ने इसे साकार रूप दिया है। पतंजलि की सेवाओं का लाभ वैश्विक स्तर पर लाखों-करोड़ों लोगों को मिल रहा है। उन्होंने कहा कि स्वार्थ से ऊपर उठकर ही मनुष्य परमार्थी बनता है।

हिन्दुस्थान समाचार/ रजनीकांत/दधिबल

   

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