श्रेष्ठताओं को समाहित करना अध्यात्म : डॉ. प्रणव

अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला

-देसंविवि में दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला का शुभारंभ

हरिद्वार, 21 मार्च (हि.स.)। विज्ञान और अध्यात्म दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। जहां श्रेष्ठताओं को समाहित करना अध्यात्म है, तो वही तथ्यों के आधार पर अपनी बातों को रखना विज्ञान है। उन्होंने गायत्री महामंत्र के भावार्थ को बताते हुए भी वैज्ञानिक अध्यात्मवाद पर विस्तृत प्रकाश डाला।

वैज्ञानिक अध्यात्मवाद विषय पर दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला में वर्चुअल रूप से जुड़कर देसंविवि के कुलाधिपति डॉ. प्रणव पण्ड्या ने उक्त विचार व्यक्त किए। कार्यशाला में देश-विदेश से 200 से अधिक विषय विशेषज्ञ, शिक्षक, शोद्यार्थी प्रतिभाग कर रहे हैं।

डॉ. चिन्मय पंड्या ने कहा कि मानवता का उत्थान विज्ञान और अध्यात्म के समन्वय से संभव है। वैज्ञानिक अध्यात्मवाद ही भविष्य का धर्म है। उन्होंने कहा कि विज्ञान और अध्यात्म एक दूसरे के पूरक है। विज्ञान मनुष्य के लौकिक विकास में सहायक है, जबकि अध्यात्म मनुष्य के आंतरिक उन्नति के लिए जरूरी है। विज्ञान भौतिक तत्वों के विशेष ज्ञान है और बुद्धि का विषय है। जबकि अध्यात्म बुद्धि से परे आत्मा और परमात्मा का आंतरिक ज्ञान है।

प्रख्यात मर्म चिकित्सक डॉ. सुनील जोशी ने कहा कि दुनिया की सबसे पुरानी चिकित्सा पद्धति मर्म चिकित्सा है। मर्म चिकित्सा सार्वभौमिक रूप से टिकाऊ चिकित्सा प्रणाली है। डॉ जोशी ने मर्म चिकित्सा का स्पाइनल डिसॉर्डर्स की भूमिका पर चर्चा की।

युवा वैज्ञानिक अवार्ड से सम्मानित देसंविवि की डॉ. रुचि सिंह ने कहा कि ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान में सन् 1979 से यज्ञ पर रिसर्च की जा रही है। अब तक यज्ञ को लेकर सात रिसर्च हो चुकीं हैं। इसमें छह प्रकार की विशेष जड़ी बूटियों से तैयार हवन सामग्री का उपयोग किया जा रहा है।

पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. सुखनंदन सिंह, डॉ. आशुतोष मोदी, प्रोफेसर नचिकेता तिवारी, डॉ. नीलमणि, डॉ. कामता साहू आदि ने भी अपने विचार प्रकट किये। इस अवसर पर आकांक्षा जोशी, जागृति भाटिया, अमृत शर्मा, डॉ. सौरभ मिश्रा, सौरभ श्रीवास्तव सहित अनेक लोगों ने वैज्ञानिक अध्यात्मवाद पर अपने शोधपत्र प्रस्तुत किये।

हिन्दुस्थानसमाचार/रजनीकांत/सत्यवान/रामानुज

   

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