लोकसभा चुनाव : बागपत में जयंत के सामने खोई विरासत पाने की चुनौती

मेरठ, 29 मार्च (हि.स.)। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह और उनके परिवार के इर्द-गिर्द घूमती रही है। 2013 के बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सियासी समीकरण बदल गए और भाजपा एक नई ताकत बनकर उभरी। 2014 के लोकसभा चुनावों से ही चौधरी चरण सिंह का परिवार जीत के लिए तरस गया। 2024 के लोकसभा चुनाव में अपनी खोई राजनीतिक विरासत को पाने के लिए राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष जयंत चौधरी ने भाजपा से गठबंधन किया है।

बागपत लोकसभा सीट से 1977 में चौधरी चरण सिंह ने पहला चुनाव जीता। इसके बाद 1980 और 1984 में भी वे बागपत से चुनाव जीतकर लोकसभा में पहुंचे। चौधरी चरण सिंह के निधन के बाद उनके पुत्र चौधरी अजित सिंह ने उनकी राजनीतिक विरासत संभाली। अजित सिंह ने बागपत से 1989, 1991 और 1996 में जीत की हैट्रिक लगाई। 1998 में भाजपा के सोमपाल शास्त्री ने अजित सिंह को हराकर इस परिवार का सियासी तिलिस्म तोड़ दिया। हालांकि 1999 में हुए चुनाव में अजित सिंह ने सोमपाल शास्त्री को हराकर फिर से बागपत से सांसद बनने में कामयाबी हासिल कर ली। इसके बाद 2004 और 2009 में भी अजित सिंह ने राष्ट्रीय लोकदल के टिकट पर बागपत से सांसद चुने गए। 2009 में अजित सिंह के पुत्र जयंत चौधरी भी मथुरा से सांसद चुने गए। 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के बाद रालोद का परंपरागत जाट और मुस्लिम का समीकरण टूट गया। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के डॉ. सत्यपाल सिंह ने रालोद मुखिया अजित सिंह को करारी शिकस्त दी तो मथुरा से जयंत चौधरी भी चुनाव हार गए। हार का यह सिलसिला 2019 के लोकसभा चुनाव में भी चलता रहा। हालांकि अजित सिंह ने इस बार बागपत छोड़कर मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और बागपत से अपने पुत्र जयंत चौधरी को चुनाव लड़ाया। इस बार रालोद के पास सपा, बसपा और कांग्रेस का भी साथ था। इसके बाद भी मुजफ्फरनगर और बागपत से दोनों पिता-पुत्र को हार का सामना करना पड़ा। 2017 के उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में रालोद के उम्मीदवार चुनाव हार गए। केवल बागपत की छपरौली सीट पर ही रालोद विधायक चुनाव जीते, हालांकि वे बाद में भाजपा में शामिल हो गए।

2019 के लोकसभा चुनाव और 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में भाजपा को पश्चिमी उत्तर प्रदेश की कई सीटों पर हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद से ही रालोद को अपने पाले में लाने के लिए भाजपा प्रयास में जुटी थी। भारत सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने की घोषणा करके रालोद का दिल बदल दिया। इसके बाद रालोद मुखिया जयंत चौधरी ने भी एनडीए में शामिल होने का ऐलान कर दिया। इसके बाद रालोद के हिस्से में बागपत और बिजनौर लोकसभा सीटें आई। बागपत सीट पर रालोद को अपना सियासी वजूद फिर से साबित करने में उसे भाजपा का साथ मिल रहा है। बागपत से रालोद-भाजपा गठबंधन से डॉ. राजकुमार सांगवान चुनाव लड़ रहे हैं। ऐसे में इस सीट पर रालोद उम्मीदवार की जीत की संभावनाएं काफी बढ़ रही है।

बगपत लोकसभा सीट पर सबसे पहले चुनाव 1967 में हुए थे। उस चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार रघुवीर सिंह शास्त्री पहले सांसद चुने गए। उन्होंने कांग्रेस के केसी शर्मा को हराया। 1971 में कांग्रेस के रामचंद्र विकल ने भारतीय क्रांति दल के रघुवीर सिंह शास्त्री को हराया। 1977 में पहली बार भारतीय लोकदल के चौधरी चरण सिंह ने कांग्रेस के रामचंद्र विकल को हराकर संसद में प्रवेश किया। इसके बाद 1980 और 1984 में भी चौधरी चरण सिंह सांसद चुने गए। 1989 में जनता दल के अजित सिंह सांसद बने। 1991 में भी जनता दल के अजीत सिंह चुनाव जीते। 1996 में भी अजित सिंह ने कांग्रेस के टिकट पर जीत दर्ज की। 1998 में भाजपा के सोमपाल शास्त्री ने भारतीय किसान कामगार पार्टी के अजित सिंह को हराया। 1998, 2004 और 2009 में रालोद के अजित सिंह सांसद चुने गए। 2014 में भाजपा के डॉ. सत्यपाल सिंह ने रालोद के अजित सिंह को हराया। 2019 में भी डॉ. सत्यपाल सिंह ने रालोद के जयंत चौधरी को हराकर कमल खिलाया।

हिन्दुस्थान समाचार/ डॉ. कुलदीप/बृजनंदन

   

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