बीजेपी के पूर्व जिलाध्यक्ष दयाशंकर ने थामा बसपा का दामन

बस्ती, 05 अप्रैल (हि.स.) जिले में भारतीय जनता पार्टी ने एक और निष्ठावान कार्यकर्ता खो दिया। 1989 से लगातार एक निष्ठावान कार्यकर्ता के रूप में पार्टी को अपना योगदान दे रहे पूर्व जिलाध्यक्ष दयाशंकर मिश्रा ने बसपा का दामन थाम लिया। कई दिनों से यक खबर सोशल मीडिया में चर्चा का विषय बनी थी, लेकिन आज स्टेशन रोड स्थित एक होटल के सभागार में प्रेस प्रतिनिधियों से वार्ता करते हुये श्री मिश्र ने खुद इस बात का खुलासा किया कि वे लखनऊ से बहन कु. मायावती का आशीर्वाद लेकर वापस लौटे हैं और बस्ती में तख्ता पलट के बाद ही चैन से बैठेंगे।

दयाशंकर मिश्र ने पत्रकारों के सवालों का जवाब देते हुये कहा 35 वर्षों से लगातार इस उम्मीद में पार्टी को अपने खून पसीने से सींचता रहा कि हमें भी कभी अवसर मिलेगा। 2014 के चुनाव में हरीश द्विवेदी को चुनाव लड़ने का अवसर मिला तो प्रसन्नता हुई कि किसी कार्यकर्ता को पार्टी ने महत्व दिया है। कभी हमारा भी नम्बर आयेगा। इस उम्मीद के साथ पूरी ताकत से हरीश द्विवेदी को चुनाव जिताने में अपना योगदान दिया, किन्तु लगातार उपेक्षा होती रही। 2017 का चुनाव आया, अमित शाह ने बुलाकर कहा हरीश जी को चुनाव जिताइये इसके बाद कहीं एडजस्ट किया जायेगा। 2019 आ गया, मै अवसर का इंतजार करता रहा। वे लगातार चुनाव जीतते रहे और हम उपेक्षा का शिकार होते रहे।

इन 35 सालों में दो बार जिलाध्यक्ष व क्षेत्रीय अध्यक्ष प्रदेश कार्य समिति के सदस्य की भूमिका का बखूबी निर्वहन किया। इस बीच तमाम अवसर आये जब मै चुनाव जीतकर विधानसभा में जा सकता था लेकिन वे रोड़ा बनते गये। भला हो बसपा के जोनल कोआर्डिनेटर का, उन्होने इच्छाशक्ति जागृत किया और बहन कु. मायावती से मिलाया। विस्तृत वार्ता के बाद उनका आशीर्वाद मिला और अब जनता की अदालत में हूं। बड़े विश्वास के साथ दयाशंकर मिश्र ने कहा कि भाजपा के तमाम उपेक्षित कार्यकर्ता उनके संपर्क में, इस्तीफा देकर चुनाव में मदद करने को तैयार हैं, दूसरे दलों में भी यही हाल है। उन्होंने कहा 35 सालों से निष्ठावान कार्यकर्ता था।

उपेक्षा से आजिज आकर मैने बसपा ज्वाइन किया। उन्होंने यह भी कहा कि पार्टी के लोग दबाव बनाने का हर संभव प्रयास कर रहे हैं लेकिन मेरा उनसे एक ही सवाल है 35 सालों में हमे क्या मिला ? हिसाब कर लें और जो बढ़ रहा हो वापस ले लें अन्यथा मेरा खून न पीयें। यह भी कहा कि टिकट मिलने पर मैंने हरीश द्विवेदी को बधाई देने के लिये तीन बार फोन किया, उन्होंने न तो फोन उठाया और न ही काल बैक किया। उनके अंदर इतना नैतिक साहस नहीं है कि वे हमारे दरवाजे पर आयें और कहें कि आप चुनाव मत लड़िये। साहस बाजार में नहीं मिलता, इसके लिये कार्यकर्ताओं, समर्थकों के समर्पण का सम्मान करना पड़ता है और उन्हे भी आगे भी बढ़ने के लिये रास्ता बनाना पड़ता है। दयाशंकर मिश्र बस्ती की राजनीति में दो प्रमुख धुरी बन चुके हरीश द्विवेदी और रामप्रसाद चौधरी के बीच मतदाताओं में कितनी पैठ बना पायेंगे यह वक्त बतायेगा। पत्रकार वार्ता में जोनल कोआर्डिनेटर उदयभान, के.के. गौतम, जयहिन्द गौतम के साथ अनेक कार्यकर्ता उपस्थित रहे।

हिन्दुस्थान समाचार/महेंद्र/बृजनंदन

   

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