वनवास काल में गुरु गोरखनाथ की तपोस्थली बनी थी प्रभु श्रीराम का निवास स्थान

- गोरखगिरी पर्वत पर स्थित है सीता रसोई

- नागा साधुओं के आश्रम पहुंचकर प्रभु श्रीराम ने किया था पूजन और यज्ञ

महोबा, 14 अप्रैल (हि.स.)। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम की जन्मभूमि अयोध्या में भव्य मंदिर में भगवान के बाल रूप की प्राण प्रतिष्ठा के बाद चैत्र नवरात्रि पर उत्सव का आयोजन जारी है। उत्सव की तैयारियों में 500 वर्ष के बाद पहली रामनवमी में भव्य आयोजन किया जाने वाला है। इसी क्रम में वीरभूमि में भी लोगों में उत्साह का माहौल बना हुआ है। वनवास काल के दौरान भगवान श्री राम, माता जानकी और अनुज लक्ष्मण के साथ चित्रकूट से वीरभूमि पहुंचे थे और गोरखगिरी पर्वत में रुके जिससे यहां की धरा पावन हो गई है।

त्रेता युग में भगवान श्री राम को वनवास का दंश झेलना पड़ा। अयोध्या से सरयू पार कर भगवान श्री राम चित्रकूट पहुंचे। उस समय चित्रकूट एक अज्ञात और साधारण स्थान हुआ करता था। विंध्यपर्वत श्रृंखलाओं की गोद में चित्रकूट स्थित है। विंध्यक्षेत्र यानी बुंदेलखंड कहलाता है। चित्रकूट में 12 वर्ष तक प्रभु श्री राम ने प्रवास किया। वनवास काल के दौरान चित्रकूट से प्रभु श्रीराम वीरभूमि महोबा पहुंचे, जहां उन्होंने गोरखगिरी पर्वत पर गुफा में निवास किया और वही गुफा सिद्ध गुफा कहलाती है। पास में ही कुछ दूरी पर माता भगवती की रसोई थी, जिसे हम सीता रसोई के नाम से जानते हैं। जहां माता जानकी अपने हाथों से भोजन तैयार करती थीं।

गोरखगिरी पर्वत के पास कुछ दूरी पर एक आश्रम है जहां पर नागा संन्यासी अनादि काल से तपस्या कर रहे थे, जहां श्रीराम ने पहुंच कर तपस्या कर रहे साधुओं को अपने दर्शन देकर उनका जीवन कृतार्थ कर दिया।यहीं पर श्री राम ने पूजन कर यज्ञ किया। यह यज्ञ कुंड आज भी मौजूद है जिसे हम रामकुंड के नाम से जानते हैं। जिसके पावन जल से स्नान करने पर जटिल से जटिल बीमारियों से छुटकारा मिल जाता है।

अनादि काल से तपस्या कर रहे नागा साधुओं को प्रभु ने दिए दर्शन

उमंगेश्वर महादेव द्वादश ज्योतिर्लिंग शिवालय के पुजारी पंडित शिवकिशोर पांडेय ने जानकारी देते हुए बताया कि पहले यह एक आश्रम हुआ करता था। यहां पर नागा सन्यासी तप करते थे, जिनकी मढ़िया आज भी यहां पर बनी हुई हैं। जहां पर नागा साधुओं ने समाधि ली हुई हैं। दो वर्ष पूर्व अंतिम नागा साधु तुला गिरी महाराज समाधि में लीन हो गए थे । 1995 में प्रथम सीडीओ रामलाल वर्मा ने मंदिर का जीर्णोंद्धार कराया था और अभी कुछ समय पूर्व नगर पालिका ने 32 लाख रुपये से लघु वाटिका एवं सरोवर का निर्माण कराया है।

12 करोड़ रुपये से हो रहा गोरखगिरी पर्वत का विकास

आजादी के बाद भी सरकारों ने इतने बड़े तीर्थ स्थल को पर्यटन के रूप में विकसित करने की कोई कोशिश नहीं की है। अयोध्या धाम में भगवान श्री राम की प्राण प्रतिष्ठा के बाद राम कुंड को भी धार्मिक क्षेत्र में विकसित करने की कोशिश की जा सकती है। यह संतोष की बात है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री जो कि गुरु गोरखनाथ के शिष्य भी हैं। उन्होंने गोरखगिरी पर्वत के विकास के लिए 12 करोड़ रुपये दिए हैं। जिससे यहां पर विकास कार्य हो रहे हैं।

श्रीराम के निवास स्थान को गुरु गोरखनाथ ने बनाया था अपनी तपोस्थली

गोरखगिरी पर्वत पर स्थित गुफा जहां पर प्रभु श्रीराम ने निवास किया वहीं पर उनके अनन्य भक्त महादेव के अवतार गुरु गोरखनाथ ने गुफा में पहुंचकर तपस्या की जिसे हम गुरु गोरखनाथ की तपोस्थली के रूप में जानते हैं। प्रभु श्रीराम के अनन्य भक्त होने के कारण महादेव के अवतार गुरु गोरखनाथ ने गोरखगिरी पर्वत स्थित पहुंचकर श्रीराम की निवास स्थली रही सिद्ध गुफा को अपनी तपोस्थली बनाया।

शबरी के जूठे बेर खाकर प्रभु श्रीराम ने दिया समरसता का संदेश

शबरी जिसे नीच कुल का कहा जाता उसी शबरी के जूठे बेर खाकर प्रभु श्रीराम ने सामाजिक समरसता की मिसाल पेश करते हुए अपने दर्शन दिए और शबरी का जीवन धन्य कर दिया शबरी के कर्म उच्च कोटि के थे जिन्होंने गुरु के आदेश पर बना विवाह किया प्रभु के इंतजार में जीवन गुजार दिया। वहीं लक्ष्मण के द्वारा फेंकी गई गुठली जो कि संजीवनी बनी और लखनलाल की जीवन रक्षा के लिए काम आई यह सब शबरी की तपस्या का ही फल है।

हिन्दुस्थान समाचार/ उपेंद्र/मोहित

   

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