शौर्य, धैर्य, सत्य, शील और विवेक योद्धा के लिए सबसे बड़े रथ और कवच - स्वामी स्वरूपा नंद 

रायबरेली, 27 नवंबर (हि.स.)। युद्ध में शौर्य, धैर्य, सत्य, शील, बल, परोपकार, विवेक और इंद्रियों को वश में करने का बल किसी भी वीर के लिए सबसे बड़ा रथ और कवच है, भगवान राम के पास यही सब था और रावण इन सभी से विहीन था। यही कारण है कि उसकी पराजय हुई। यह विचार एनटीपीसी के चिन्मय विद्यालय के तीसवें वार्षिक समारोह में चिन्मय मिशन के विश्व प्रमुख स्वामी स्वरूपा नंद महराज ने विभीषण गीता का आरंभ करते हुए कही। उन्होंने कहा कि रावण से युद्ध के दौरान भगवान राम को रथ और कवच विहीन देखकर विभीषण के मन में संशय हुआ था, उसने भगवान राम से सवाल किया तो भगवान राम ने उसे विभीषण गीता सुनाई, जिसके बाद विभीषण का संदेह दूर हुआ।

उन्होंने कहा कि भगवान राम ने विभीषण से कहा कि निर्मल (पाप रहित) और अचल ( स्थित) मन तरकश के समान है। शम (मन का वश में होना ), अहिंसादि, यम और नियम बहुत सारे वाण है। ब्राह्मणों और गुरु का पूजन अभेद्य कवच है। इसके समान विजय का दूसरा कोई उपाय नहीं है।

इससे पूर्व बुधवार की सुबह कार्यक्रम की शुरुआत में स्वामीजी का विद्यालय परिसर में पारंपरिक तरीके से स्वागत किया गया। एनसीसी कैडेट्स ने स्वामीजी को गार्ड ऑफ ऑनर दिया। तत्पश्चात विद्यार्थियों ने अध्यात्मिक एरोबिक प्रस्तुत कर सभी का दिल जीत लिया।

संध्या कालीन कार्यक्रम का शुभारंभ पूर्ण कुंभकम से हुई। इसमें वैदिक रीति से स्वामीजी का स्वागत किया। इसी क्रम में दीप प्रज्वलन का कार्यक्रम संपन्न हुआ, जिसमें चिन्मया मिशन के विश्व प्रमुख स्वामी स्वरूपानंद ने किया। साथ में स्वामी चिदरूपानंद और स्वामी अव्ययानंद उपस्थित रहे। तत्पश्चात विभीषण गीता पर प्रवचन की शुरू हुआ। स्वामी स्वरूपानंद ने कहा कि विभीषण गीता का अध्ययन हर व्यक्ति को करना चाहिए, चाहे वह कोई बच्चा हो या बड़ा, क्योंकि इससे मन के भ्रम और संशय समाप्त होते हैं। उन्होंने रामायण की इस अमूल्य शिक्षा को आज के समय में भी प्रासंगिक बताया। स्वामी का यह प्रवचन लगातार चार दिनों तक चलेगा। स्वामीजी ने बताया कि राष्टीय शिक्षा नीति 2020 में यह वर्णन है कि भारतीय संस्कृति को ज्ञान से जोड़ना है। इसलिए सभी बच्चों एवम अभिभावकों को इस में सहभागिता करनी चाहिए।

हिन्दुस्थान समाचार / रजनीश पांडे

   

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