कन्नड़ साहित्य के परिदृश्य पर बातचीत, उभरकर सामने आए कई दिलचस्प प्रसंग 

देहरादून, 26 अक्टूबर (हि.स.)। लैंसडाउन चौक स्थित दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र की ओर से शनिवार की शाम गिरीश कर्नाड से विवेक शानबाग तक नाटक, कविता और गद्य: आधुनिक कन्नड़ साहित्य में सामयिक प्रवृति विषय पर बातचीत का आयोजन किया गया। बातचीत में निकोलस हॉफलैंड ने भाषा पर अध्ययन कर रहे अम्मार यासिर नकवी से महत्वपूर्ण बिंदुओं पर चर्चा की।

दक्षिणी भाषा की अंतिम कड़ी पर कन्नड़ भाषा और उसके साहित्य के इतिहास के संक्षिप्त परिचय से शुरुआत हुई। विभिन्न साहित्यिक आंदोलनों का उल्लेख करते हुए नौसेना आंदोलन और इसके दो प्रमुख समर्थकों गोपाल कृष्ण व यूआर अनंत मूर्ति के कविता एवं गद्य पर गहराई से बात हुई।

नव काल के लेखकों के लेखन और आधुनिक कन्नड़ साहित्य के निर्माताओं के रूप में उनकी भूमिका पर भी चर्चा हुई। इसके अलावा भारतीपुरा जैसे कई उपन्यासों और लघु कथाओं से उनके लेखन का विकास व मौखिक परंपरा का उपयोग, मुद्रित साहित्य एवं मौखिक परंपराओं पर संतुलन पर भी सवाल किए गए। एके रामानुजन ने कन्नड़ लोक परंपराओं को विश्व मंच पर कैसे पहुंचाया, वीर शैव की कविता के अनुवाद में उनके योगदान व उनकी कविता पर भी प्रकाश डाला गया।

अंत में दो महत्वपूर्ण लेखकों गिरीश कर्नाड और विवेक शानबाग के लेखन के विविध बिंदुओं को उजागर किया गया। बातचीत में अनेक दिलचस्प प्रसंग उभरकर सामने आएं।

कार्यक्रम के आरंभ में दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र के प्रोग्राम एसोसिएट चंद्रशेखर तिवारी ने सभी का स्वागत किया। इस दौरान विजय भट्ट, शैलेंद्र नौटियाल, सुंदर सिंह बिष्ट, विजय शंकर शुक्ला, कुलभूषण व डॉ. वीके डोभाल आदि उपस्थित थे।

हिन्दुस्थान समाचार / कमलेश्वर शरण

   

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