हिसार : आत्मा से ब्रह्मांड तक का अद्भुत संगम है ब्रह्मनाद ध्यान : आचार्य जितेंद्र

हिसार, 10 नवंबर (हि.स.)। ओशो सिद्धार्थ फाउंडेशन के तत्वाधान में ओशोधारा मैत्री संघ की ओर से कौशिक नगर स्थित ध्यान साधना केंद्र में ओशोधारा हिसार के संयोजक आचार्य जितेंद्र ने रविवार को ब्रह्मनाद ध्यान करवाया। उन्होंने ध्यान के बारे में बताया कि ब्रह्मनाद ध्यान, जिसे ओंकार ध्यान भी कहा जाता है, एक प्राचीन ध्यान तकनीक है जो आंतरिक शांति, मानसिक स्पष्टता और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त करने में सहायक मानी जाती है।

ब्रह्मनाद का अर्थ है ब्रह्म का नाद या सर्वोच्च ध्वनि, जो ब्रह्मांड की मौलिक और शाश्वत ध्वनि मानी जाती है। यह ध्वनि ओम (ॐ) के रूप में जानी जाती है और योग तथा वेदों में इसे अनंत ऊर्जा और ब्रह्मांडीय चेतना का प्रतीक माना गया है। ब्रह्मनाद ध्यान में साधक ओम के उच्चारण के माध्यम से अपने मन और शरीर को शांति में लाने का प्रयास करता है।

यह ध्यान, मन और शरीर में संतुलन बनाता है, जिससे तनाव और चिंता कम होती है। नियमित अभ्यास से विचारों में स्थिरता और स्पष्टता आती है, जिससे ध्यान की शक्ति बढ़ती है। यह ध्यान साधक को ब्रह्मांड से जोड़ने का अनुभव देता है, जो आत्मा के उच्च स्तर को स्पर्श करता है। ब्रह्मनाद के दौरान कंपन्न शरीर की ऊर्जा को संतुलित करता है, जिससे रक्त प्रवाह सुधरता है और इम्यून सिस्टम मजबूत होता है।

ध्यान दें कि ओ और म का संतुलन बना रहे। ओ को लम्बा खींचे और धीरे से म में समाप्त करें। मंत्र के कंपन्न को अपने शरीर में महसूस करें। ओम के उच्चारण के दौरान अपने मन को एक बिंदु पर केंद्रित रखें, चाहे वह आपके मस्तिष्क के मध्य भाग में हो या हृदय के पास। ध्यान की अवधि पूरी होने पर धीरे-धीरे आंखे खोलें और कुछ क्षण शांतिपूर्वक बैठे रहें। ध्यान की प्रक्रिया को धीरे-धीरे समाप्त करें।

ब्रह्मनाद ध्यान के प्रभाव को अनुभव करने के लिए नियमितता आवश्यक है। प्रतिदिन 10 से 20 मिनट का समय देकर इस ध्यान को करने से धीरे-धीरे मानसिक शांति और ऊर्जा का अनुभव बढ़ता है। ब्रह्मनाद ध्यान की सबसे खास बात यह है कि यह साधक को ब्रह्मांड से जोड़ने में सहायक होता है। यह ध्यान न केवल मन और शरीर को शांत करता है, बल्कि साधक को आत्म-ज्ञान के मार्ग पर भी ले जाता है।

हिन्दुस्थान समाचार / राजेश्वर

   

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