जिले में अब भी नहीं चढ़ा चुनावी रंग, मतदाताओं के मन को थाह पाना मुश्किल
- Admin Admin
- Oct 28, 2025
चुनाव में महज 8 दिन बचे, फिर भी माहौल में राजनीतिक गर्माहट नहीं
गोपालगंज, 28 अक्टूबर (हि.स.)। बिहार विधानसभा चुनाव में अब मतदान में सिर्फ 8 दिन बचे हैं, लेकिन जिले के छह विधानसभा क्षेत्रों में चुनावी सरगर्मी अब तक परवान नहीं चढ़ी है। प्रत्याशी पूरे दमखम से जनसंपर्क में जुटे हैं, रैलियों और सभाओं का सिलसिला जारी है, लेकिन मतदाता अब भी खामोश हैं। इस खामोशी ने प्रत्याशियों की बेचैनी बढ़ा दी है। हर उम्मीदवार यह मानकर चल रहा है कि उनकी जाति, बिरादरी और क्षेत्र का वोट उसी के खाते में जा रहा है, जबकि जमीनी हकीकत कुछ और है। हर दल और प्रत्याशी जातीय समीकरण साधने में जुटे हैं। कोई ब्राह्मण, भूमिहार, राजपूत या बनिया मतदाताओं की गिनती कर रहा है तो कोई कुर्मी, कोइरी, दलित या नोनिया वोटरों की गणित बिठा रहा है।
उन्होंने सवाल उठाया कि किसी को यह बताने की फुर्सत नहीं कि जिले में कितने रोजगार सृजित हुए, कितने उद्योग खुले या बंद पड़े हैं। सोशल मीडिया पर भी जातीय ठेकेदारों का बोलबाला है। हर कोई फेसबुक और व्हाट्सएप के जरिए अपने समुदाय को जोड़ने की कोशिश कर रहा है, लेकिन आम मतदाता अब इन दावों को तवज्जो नहीं दे रहा। जिले के मतदाता फिलहाल मौन मोड में हैं। न वे खुलकर किसी प्रत्याशी के पक्ष में बोल रहे हैं, न विरोध में । युवा सड़क, रोजगार और शिक्षा जैसे मुद्दों पर ध्यान देने की बात कर रहे हैं। मतदाताओं का कहना है कि नेता चुनाव के बाद वादे भूल जाते हैं, इसलिए वे सोच-समझकर वोट देंगे।
बुजुर्गों का कहना है कि उन्हें विकास चाहिए, झूठे आश्वासन नहीं। जात नहीं । गांवों की गलियों से लेकर बाजारों तक चुनावी चर्चाओं का दौर जरूर जारी है, लेकिन मतदाता अपना मन किसी के सामने नहीं खोल रहा। इस वजह से प्रत्याशी भी भ्रम में हैं कि जनता उनके पक्ष में है।मतदाता इस बार न तो चुनावी जोश दिखा रहे हैं, न प्रत्याशियों से किसी तरह की मांग। आमतौर पर चुनाव के दौरान लोग सड़कों पर चर्चा करते, जुलूसों में शामिल होते दिखते हैं, पर इस बार ऐसा माहौल नहीं दिख रहा। प्रत्याशी और उनके समर्थक मतदाताओं को रिझाने के लिए तमाम जतन कर रहे हैं, लेकिन जनता चुपचाप सुनती है, कुछ कहती नहीं।
स्थानीय राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मतदाताओं की चुप्पी किसी बड़े उलटफेर का संकेत भी हो सकती है। लोगों का कहना है कि उन्होंने पहले भी सांसदों और विधायकों से अपनी समस्याएं बताईं, लेकिन परिणाम सिफर रहा। ऐसे में अब वे वादों पर भरोसा करने के बजाय चुप रहकर वोट देने की नीति पर चल रहे हैं।चुनावी प्रचार में अब युवाओं की टीमों का भी बोलबाला है। जिले में करीब 50 से 100 युवाओं की कई टीमें सक्रिय हैं, जो प्रत्याशियों के साथ जनसंपर्क अभियान में घूमती हैं। इन युवाओं को रोजाना 500 रुपए मजदूरी और भोजन-नाश्ता दिया जा रहा है। एक युवक ने बताया कि घर में बैठने से अच्छा है कि चुनाव के समय कुछ कमाई कर ली जाए। यानी, चुनाव अब केवल राजनीतिक उत्सव नहीं, बल्कि अस्थायी रोजगार का साधन भी बन गया है।
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि गोपालगंज में इस बार का चुनाव मतदाताओं की खामोशी पर टिका है। किसी दल या प्रत्याशी के लिए साफ लहर नहीं दिख रही। यह स्थिति प्रत्याशियों के लिए चुनौती है, क्योंकि वे यह नहीं समझ पा रहे कि असल में जनता का रुझान किस ओर है। 6 नवंबर को जिले में 18 लाख 12 हजार 383 मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे, जिसमें 9 लाख 60 हजार 892 पुरुष, महिला 8 लाख 51 हजार 433 और 58 थर्ड जेंडर शामिल है। मतदान के दिन ही यह तय होगा कि मतदाताओं की यह मौन क्रांति किसके पक्ष में जाती है। सत्ता के दावेदारों के लिए यह खामोशी राहत लाएगी या करारी शिकस्त।
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हिन्दुस्थान समाचार / Akhilanand Mishra



