‘‘कोस-कोस पर पानी बदले, चार कोस पर बानी’’ : प्रो हर्ष कुमार
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- Mar 10, 2025

-बिना संस्कृत के भारत की संस्कृति नहीं जानी जा सकती : प्रो आनंद शंकर
प्रयागराज, 10 मार्च (हि.स.)। ‘‘भारतीय ज्ञान परम्परा एवं संस्कृत साहित्य’’ पर संस्कृत विभाग, ईश्वर शरण महाविद्यालय और राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान, लखनऊ के संयुक्त तत्त्वावधान में व्याख्यान गोष्ठी का आयोजन किया गया। मुख्य वक्ता इविवि के प्रोफेसर हर्ष कुमार ने कहा कि ‘कोस कोस पर पानी बदले चार कोस पर बानी’ अर्थात् भारतीय संस्कृति में इतनी विविधता है फिर भी इसकी एकात्मकता भंग नहीं हो पाई। उन्होंने ऐतिहासिक दृष्टि से भारतीय संस्कृति की विविधता में एकता पर प्रकाश डाला। ईश्वर शरण डिग्री कॉलेज के प्राचार्य प्रो.आनंद शंकर सिंह ने कहा कि बिना संस्कृत के भारत की संस्कृति नहीं जानी जा सकती। वाचिक परम्परा में 2000 वर्ष तक संस्कृत भाषा निरंतर प्रवाहित होती रही। संस्कृत अपने साथ समूची सभ्यता और संस्कृति को गढ़ती है।विशिष्ट वक्ता प्रो. एस.पी सिंह समन्वयक, संस्कृत विभाग सीएमपी डिग्री कालेज ने कहा कि विमान शास्त्र, रसायन शास्त्र आदि का प्राचीन ग्रंथो में इनका विधिवत उल्लेख किया गया है। जो प्रमाणित करता है कि प्राचीन समय का विज्ञान अत्यंत समृद्ध था। सारस्वत वक्ता डॉ. प्रमा द्विवेदी जगत तारन डिग्री कॉलेज ने कहा कि ज्ञान के स्रोत वेद हैं और विद्यादान को सर्वश्रेष्ठ परम्परा माना गया है। डॉ. प्रचेतस शास्त्री संस्कृत विभाग, इविवि ने कहा कि ज्ञान का बीज वेद में है। यदि हमारे पास यज्ञ में आहुति देने के लिए कुछ भी नहीं है तो हम सत्य और श्रद्धा से आहुति दे सकते हैं। डॉ. संत प्रकाश तिवारी संस्कृत विभाग इविवि ने कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा निर्मल और निर्झर निर्झरिणी है जिसमें जीवन की चेतना समायी हुई है। ईश्वर शरण डिग्री कालेज के पीआरओ प्रो मनोज कुमार दुबे ने बताया कि कार्यक्रम संयोजक डॉ एकात्मदेव एवं सह-संयोजिका डॉ अश्विनी देवी रही। संचालन डॉ एकात्मदेव एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ अश्विनी देवी ने किया। कार्यक्रम में प्रो. मान सिंह चीफ़ प्रॉक्टर, डॉ. शतरुद्र प्रकाश, डॉ. योगेंद्र प्रताप सिंह लखनऊ विश्वविद्यालय महेश प्रसाद राय, भगत नारायण महतो, डॉ. विवेक यादव, डॉ. शैलेश यादव, डॉ. प्रियंका सिंह, डॉ. रेफॉक अहमद, शोध छात्र एवं विद्यार्थीगण उपस्थित रहे।
हिन्दुस्थान समाचार / विद्याकांत मिश्र