हमारी संस्कृति का सजग प्रहरी है भारतीय संगीत: पद्मश्री उर्मिला श्रीवास्तव

- राज्य संगीत नाटक अकादमी के तत्वावधान में दो दिवसीय संगीत की सम्भागीय प्रतियोगिता का समापन

मीरजापुर, 24 अक्टूबर (हि.स.)। उत्तर प्रदेश सरकार के संस्कृति मंत्रालय के प्रमुख आयाम राज्य संगीत नाटक अकादमी के तत्वावधान में नगर के एक स्कूल के सभागार में दो दिवसीय संगीत की सम्भागीय प्रतियोगिता का समापन बुधवार को किया गया। कार्यक्रम का शुभारम्भ देवी सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण व दीप प्रज्वलित करने के साथ हुआ।

मुख्य अतिथि पद्मश्री उर्मिला श्रीवास्तव ने कहा कि संगीत कला मानवीय भावों की हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति है। यह हमारी अमूल्य धरोहर है, जो हमें विरासत के रूप में अपने पूर्वजों से प्राप्त हुई है। भारत आदिकाल से ही अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विविधता एवं परंपराओं के कारण विश्व पटल पर विशेष पहचान बनाए हुए है। देश में संस्कृति की मुख्य धरोहर शास्त्रीय संगीत ही है।

उन्होंने कहा कि शास्त्रीय संगीत हमारे शास्त्रों से निकली ताल है। जो कि भारतीय संस्कृति की पहचान है। इसको जीवित रखना हमारी जिम्मेदारी है। सरकार भी शास्त्रीय संगीत को बढ़ावा देने के लिए लगातार प्रयास कर रही है।

विशिष्ट अतिथि जिला पंचायत अध्यक्ष राजू कनौजिया व नगरपालिका मीरजापुर अध्यक्ष श्यामसुन्दर केशरी ने कहा कि शास्त्रीय संगीत से भाईचारे को भी बढ़ावा मिलता है। संगीत और संस्कृति का संरक्षण आज की जरूरत है। अनेकता में एकता भारतीय संस्कृति की विशेषता है। भारतीय संस्कृति के संरक्षण के लिए भारतीय संगीत का संरक्षण बहुत ज़रूरी है। विद्यालय स्तर से बच्चों को संस्कृति से जुड़े विषय पाठ्यक्रम में अनिवार्यता के साथ पढ़ाए जाने चाहिए। सरकार संगीत विधा को विकसित करने के लिए प्रतिबद्ध है।

कार्यक्रम की सम्भागीय संयोजिका पूजा केशरी ने कहा कि वैदिक काल में संगीत के सात स्वरों का आविष्कार हो चुका था। भारतीय महाकाव्य रामायण तथा महाभारत की रचना में भी संगीत का मुख्य प्रभाव रहा। भारत में सांस्कृतिक काल से लेकर आधुनिक युग तक आते-आते संगीत की शैली एवं प्रकृति में अत्यधिक परिवर्तन हुआ। भारतीय संगीत के इतिहास के महान संगीतकारों जैसे कि तानसेन, स्वामी हरिदास, अमीर खुसरो आदि ने संगीत की उन्नति एवं विकास के लिए अत्यधिक योगदान दिया। वर्तमान में शास्त्रीय की विभिन्न शैलियां प्रचलित हैं। शास्त्रीय तथा उपशास्त्रीय संगीत के अंतर्गत भारत में ख्याल, ध्रुपद, धमार, चतुरंग, तराना, ठुमरी, दादरा इत्यादि गायन शैलियां प्रचलित हैं। भारतीय संगीत एवं संस्कृति की इस धरोहर के उत्थान एवं संरक्षण के लिए प्रयास किए जाने चाहिए। अकादमी की ओर से अतिथियों का स्वागत विभाग संयोजिका पूजा केशरी ने बुके व गीता की पुस्तिका दे कर किया। साथ ही विजयी प्रतिभागियों को प्रमाणपत्र वितरित किया गया। सम्भाग में बाल, किशोर व युवा वर्ग में प्रथम स्थान प्राप्त अभ्यर्थियों को लखनऊ की प्रांतीय स्तर की प्रतियोगिता में शामिल होने का मौका मिला। निर्णायक मंडल में प्रतापगढ़ से पुरुषोत्तम प्रसाद पांडेय, लखनऊ से अनंत कुमार प्रजापति व विकास पांडेय, अकादमी प्रतिनिधि के रूप में पवन कुमार तिवारी शामिल रहे।

हिन्दुस्थान समाचार / गिरजा शंकर मिश्रा

   

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