अग्निहोत्र का ज्ञान-विज्ञान जानेंगे जयपुरवासी

जयपुर, 19 मार्च (हि.स.)। सूर्योदय और सूर्यास्त के समय होने वाले अग्निहोत्र की प्राचीन परम्परा को पुन: घर-घर में शुरू करने के लिए भोपाल के माधव आश्रम की संचालिका नलिनी माधव के मार्गदर्शन में 22 और 23 मार्च को राजधानी में चार कार्यक्रम होंगे। इनमें तीन कार्यक्रम ठीक सूर्योदय और सूर्यास्त के समय होंगे। गायत्री परिवार सहित अनेक संस्थाएं इस कार्यक्रम में सहयोगी है।

कार्यक्रम से जुड़े राकेश गर्ग ने बताया कि 22 मार्च को सूर्योदय के समय सुबह 6 से 7:20 बजे तक मालवीय नगर के बी ब्लॉक स्थित सिद्धेश्वर महादेव मंदिर के योग साधना केन्द्र में अग्निहोत्र किया जाएगा। इसी दिन शाम को छह से सात बजे तक गोविंद देवजी मंदिर अग्निहोत्र का लाइव डेमो दिया जाएगा। अगले दिन रविवार, 23 मार्च को सुबह साढ़े आठ से दस बजे तक बरकत नगर के वेणु ज्ञानम साधना केन्द्र और शाम को पांच से सात बजे तक त्रिवेणी नगर के दाधीच गार्डन में अग्निहोत्र किया जाएगा। चारों कार्यक्रमों के माध्यम से लोगों को बताया जाएगा कि अग्निहोत्र का क्या है। इसे कैसे किया जाता है। इसके करने से क्या लाभ होते हैं। जयपुर में बड़ी संख्या में लोग सूर्योदय और सूर्यास्त के समय अग्निहोत्र करते हैं। विदेश में भी इसका प्रचलन बढ़ रहा है। खास बात यह है कि अग्निहोत्र की शक्ति को मानने वाले भगवान को नहीं मानते।

चार साल से अग्निहोत्र कर रहे मणिशंकर पाटीदार ने बताया कि अग्निहोत्र एक संक्षिप्त यज्ञ है जो सूर्योदय और सूर्यास्त के समय ही किया जाता है। कोई भी व्यक्ति अग्निहोत्र कर सकता है। इसके साथ विशेष नियम- उप नियम नहीं है। अग्निहोत्र प्राचीन काल से किया जा रहा है। प्राचीन भारत के ऋषियों के आश्रम में दोनों समय अग्निहोत्र होते थे। अग्नि का अर्थ आग है और होत्र का अर्थ भगवान को अर्पित करना है। यह हिन्दू संस्कृति का एक प्रमुख अंग है। अग्निहोत्र अपने सिद्धांत रूप में प्रकट रूप और निर्गुण रूप के चैतन्य को आकर्षित करने के लिए तेज (पूर्ण अग्नि सिद्धांत) का आह्वान करके जाने वाला व्रत का एक रूप है। अग्निहोत्र अग्नि में आहुतियां देने की जाने वाली एक दिव्य पूजा है।

सुख-समृद्धि लाता है अग्निहोत्र:

अग्निहोत्र सुख, शांति और समृद्धि लाता है। यह हमारे सामने आने वाली कई समस्याओं का समाधान कर सकता है। अग्निहोत्र प्रदूषण से मुक्ति पाने में बहुत शक्तिशाली है। जब व्यक्ति अग्निहोत्र करता हैं तो उसके चारों ओर एक सुरक्षा कवच बन जाता है। अग्निहोत्र पात्र तांबे का होता है। बर्तन के चारों ओर समान अंतराल पर तीन पिरामिड जैसी रेखाएं होती है। इसे अग्निहोत्र स्टैंड पर रखा जाता है। अग्निहोत्र में गाय के गोबर के उपले, भीमसेनी कपूर, देसी गाय का घी, साबुत चावल का उपयोग किया जाता है। सूर्योदय और सूर्यास्त से पंद्रह मिनट पूर्व अग्निहोत्र के लिए बैठ जाना होता है। सूर्योदय से पांच सात मिनिट पूर्व कपूर जला लेना होता है। सूर्योदय होते ही अग्नि में गाय के घी में अक्षत मिलाकर विशिष्ट मंत्र से आहुति अर्पित की जाती है।

बढ़ जाती है मिट्टी की गुणवत्ता:

अग्निहोत्र की छोटी सी प्रक्रिया से सूक्ष्म दुनिया में बहुत बड़ा परिवर्तन आता है। खेतों में मिट्टी की ऊर्जा बहुत बढ़ जाती है,बीजों का अंकुरण बढ़ जाता है,कोशिका निर्माण की गति बहुत बढ़ जाती है जिससे पत्तियों का आकार दोगुना-तीन गुना तक ज्यादा बढ़ जाता है। देश-प्रदेश में कई किसान यह प्रयोग कर रहे है। जिन किसानों ने अग्निहोत्र विद्या को अपनाया उनको रासायनिक खेती के मुकाबले कई गुणा अधिक उपज प्राप्त हुई है। पश्चिम की दुनिया के अनेक देशों में यह विधा होमा फार्मिंग के नाम से प्रचलन में आ है।

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हिन्दुस्थान समाचार / दिनेश

   

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