भारतीय सांस्कृतिक जीवन जियें, थोड़ा और पाने की इच्छा छोड़ें : आचार्य सागर
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- Apr 05, 2025

नैनीताल, 5 अप्रैल (हि.स.)। अहिंसा संस्कार पद यात्रा के प्रणेता अन्तर्मना जैन आचार्य प्रसन्न सागर महाराज अपने चतुर्विध संघ के साथ पहली बार शनिवार को देवभूमि उत्तराखंड की पावन धरती नैनीताल पहुंचे। उन्होंने बताया कि वह तेलंगाना के कुलचाराम पारसनाथ से पिछले वर्ष 7 नवम्बर 2024 को बद्रीनाथ स्थित अष्टापद आदिनाथ भगवान की मोक्ष स्थली की वंदना हेतु पदयात्रा पर निकले हैं और संभवतः कुमाऊं के नये मार्ग से 2 मई को बद्रीनाथ धाम पहुचेंगे। हालांकि उनका पदयात्राओं का सिलसिला 2 अक्टूबर 2004 को गोहाटी से प्रारंभ हो चुका था। इस दौरान यहां नैनीताल जनपद के मुक्तेश्वर में 9 से 11 अप्रैल के बीच उनका तीन दिवसीय रत्नत्रय आनंद महोत्सव एवं अंतर्मना दर्शन सम्मेलन-37वां दीक्षा महोत्सव होना है, जिसमें प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, राजस्थान के कई सांसद एवं विधायकों के भी पहुंचने की संभावना है।
इस बीच नैनीताल में पत्रकारों से वार्ता करते हुए दिगंबर आचार्य प्रसन्न सागर ने कहा कि नग्नता प्रकृति का उपहार है। धरती पर प्रकृति का हर अग्न नग्न है और यही प्राकृतिक जीवन है। यदि व्यक्ति ऐसा प्राकृतिक जीवन न जी पाए तो उन्हें भारत की संस्कृति से जुड़ा सांस्कृतिक संस्कार युक्त जीवन जीना चाहिए, लेकिन कदापि भी विकृतियों से युक्त जीवन जीना नहीं चाहिए। उन्होंने कहा कि आज का पद, प्रतिष्ठा और पैंसा, हर समय और अधिक पाने की चाह वाला सुविधाओं के अधीन हुआ व्यक्ति वास्तव में पराधीन-कृत्रिम जीवन जी रहा है। यदि ‘थोड़ा और’ पाने की चाह समाप्त हो जाए तो जीवन अत्यंत मधुर और स्वादिष्ट हो सकता है।
उन्होंने कहा कि आज जीवन की सारी भागदौड और अधिकतर कार्य-व्यापार, पैसा और स्वार्थ से जुड़ चुके हैं लेकिन यह भी सत्य है कि जितना अधिक किसी को धन मिलता है, वह उतना ही अधिक दुःखी, परेशान और तनावग्रस्त दिखता है। पैसे के साथ जिम्मेदारियां बढ़ जाती हैं, जिससे जीवन तनावपूर्ण हो जाता है। जिसका जितना बड़ा वेतन पैकेज होता है, उसके उतने ही अधिक तनाव होते हैं। मनुष्य को काम से तनाव शरीर से नहीं, बल्कि मन की थकावट से होता है, और मन की थकावट आपसी दुर्भाव, प्रतिस्पर्धा, महत्वाकांक्षा, ईर्ष्या, राजनीति, एक-दूसरे को नीचा दिखाने की प्रवृत्ति जैसे भावों से उत्पन्न होती है, जो हमारे भीतर की ऊर्जा को नष्ट कर देती है।
इस अवसर पर उनके साथ मौजूद उपाध्याय सौम्यमूर्ति मुनि पीयूष सागर ने बताया कि अन्तर्मना गुरुदेव ने तीर्थराज सम्मेद शिखर पर्वत पर 557 दिन की अखण्ड मौन तप साधना की, जिनमें से 496 दिन उन्होंने निर्जल उपवास एवं 61 दिन पारणा किया। उन्होंने अपनी 37 वर्षों की तप साधना में 5 हजार से अधिक उपवास व्रत किए व 30 प्रांतों में सवा लाख किलोमीटर से अधिक पद विहार किया है और इस सब का उद्देश्य मानव मात्र का कल्याण है। उन्हें वियतनाम, लंदन एवं गुजरात विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया गया है। उनके नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड सहित सौ से अधिक विश्व कीर्तिमान भी दर्ज हैं। इस अवसर पर जेके जैन, गोपाल सिंह रावत व श्रवण कुमार सहित कई लोग व्यवस्थाओं में शामिल रहे।
हिन्दुस्थान समाचार / डॉ. नवीन चन्द्र जोशी