पूर्वी चंपारण,29 जनवरी (हि.स.)।
संस्कृत भाषा भारतीय संस्कृति का सबसे बड़ा रक्षक है।ऐसे में संस्कृत भाषा की रक्षा करना हम सबका परम कर्तव्य है उक्त बातें संग्रामपुर प्रखंड के समीप अवस्थित ऋषिकुल आश्रम में संस्कृत के उपशास्त्री व महाविद्यालय के दाता सदस्य सह मठाधीश श्री श्री 108 स्वामी हरदेवानंद सरस्वती ने बुधवार को मौनी अमावस्या के अवसर पर आयोजित संस्कृत संभाषण के दौरान महाविद्यालय के छात्र-छात्राओं व अभिभावकों को संबोधित करते हुए कही।
स्वामी जी ने कहा कि संस्कृत से ही संस्कार बनता है और जिनके संस्कार उत्तम होते है उन्हीं से संस्कृति की रक्षा भी होती है। महाविद्यालय के प्राचार्य सुरेंद्रनाथ द्विवेदी ने कहा कि जो अपने संस्कार और संस्कृति की रक्षा करना चाहते हैं उन्हें संस्कृत से जरूर लगाव होना चाहिए। सनातन धर्म की रक्षा के लिए अपनी संस्कृति को बचाना ही सही संस्कार है।वहीं शिक्षक मुकुल कुमार पाण्डेय ने बताया कि संस्कृति की रक्षा के लिए गांव-गांव घूम कर संस्कृत का प्रचार प्रसार जरूरी है ताकि भटके हुए बच्चे संस्कृत से जुड़कर संस्कृति की रक्षा कर सकें और अपने संस्कारों में सुधार ला सकें। महाविद्यालय की छात्रा अनामिका एवं श्रेया ने बताया कि संस्कृत में ही सभी वेद पुराणों की रचना की गई है इसलिए इसको बचाना हमारा परम कर्तव्य है। संस्कृत पढ़ने बोलने और सुनने में भी अच्छा लगता है इसलिए इसे बचाना हमारा परम कर्तव्य है।महाविद्यालय के अन्य छात्रों ने भी अपने-अपने विचार व्यक्त किए।
सभा को स्थानीय अभिभावक शिक्षक रंजीत कुमार तिवारी, ओंकार नाथ तिवारी,अखिलेश मिश्रा, पूर्व सरपंच पप्पू कुमार मिश्र, ने भी संबोधित किया। मौके पर विवेक कुमार पाण्डेय, शुभम चौबे, गोपाल उपाध्याय, शिवम कुमार पांडे, आनंद कुमार, मधुरेंद्र कुमार, सूरज कुमार, अंकित कुमार, आर्यन कुमार, राहुल कुमार सहित कई मौजूद थे।
हिन्दुस्थान समाचार / आनंद कुमार