प्रेम, भक्ति, स्वास्थ्य और मानसिक शांति का प्रतीक है शरद पूर्णिमा : प्रो.बिहारी लाल शर्मा

वाराणसी,15 अक्टूबर (हि.स.)। सनातन संस्कृति में आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि शरद पूर्णिमा श्री हरि और महालक्ष्मी को समर्पित है। इसे कोजागरी पूर्णिमा, रास पूर्णिमा या कमला पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। पर्व इस बार 16 अक्टूबर बुधवार की रात मनाया जाएगा। पूर्णिमा तिथि 16 अक्टूबर को रात 08 बजकर 41 मिनट पर प्रारंभ होगी। पूर्णिमा तिथि का समापन अगले दिन शाम 4 बजकर 55 मिनट पर होगा। शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रोदय का समय शाम 5 बजकर 7 मिनट का रहेगा।

सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति के अनुसार शरद पूर्णिमा का धार्मिक, आध्यात्मिक तथा वैज्ञानिक महत्व गहरा है। यह माना जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा अपनी पूर्णता और तेजस्विता में होता है, और उसकी किरणों में औषधीय गुण होते हैं। इस दिन को विशेष रूप से धार्मिक क्रियाओं, उपासना और साधना के लिए पवित्र माना जाता है।

उन्होंने बताया कि शरद पूर्णिमा का सबसे प्रमुख धार्मिक महत्व भगवान श्रीकृष्ण की रासलीला से जुड़ा हुआ है। मान्यता है कि इस दिन श्रीकृष्ण ने वृंदावन में गोपियों के साथ ‘महा रास’ किया था। यह दिव्य लीला प्रेम और भक्ति का प्रतीक मानी जाती है, जहां आत्मा और परमात्मा के बीच प्रेमपूर्ण और आध्यात्मिक संबंध का प्रतीक मिलता है। इस दिन भक्त भगवान कृष्ण की पूजा कर उनकी कृपा प्राप्त करने की कामना करते हैं। शरद पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है, जिसका अर्थ है “कौन जाग रहा है?”। इस दिन विशेष रूप से देवी लक्ष्मी की आराधना की जाती है। यह माना जाता है कि माता लक्ष्मी इस रात जागरण कर रहे भक्तों पर अपनी कृपा बरसाती हैं।

—चंद्रमा की पूजा

कुलपति प्रो. बिहारी लाल शर्मा ने बताया कि भारतीय परंपराओं में चंद्रमा को मन का कारक माना गया है, और शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा की पूजा विशेष महत्व रखती है। चंद्रमा की चांदनी मन को शांति, संतुलन और स्थिरता प्रदान करती है। इस दिन चंद्रमा की पूजा करने से मानसिक स्वास्थ्य और शांति प्राप्त होती है, साथ ही शारीरिक और मानसिक तनाव दूर होते हैं। इस दिन खीर बनाकर उसे चंद्रमा की चांदनी में रखा जाता है, जिसे अगले दिन प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है। धार्मिक मान्यता है कि इस प्रसाद में चंद्रमा की औषधीय किरणों के गुण समाहित होते हैं, जो शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी होते हैं।

वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है और उसकी किरणें सबसे अधिक प्रभावशाली मानी जाती हैं। यह माना जाता है कि चंद्रमा की किरणों में कुछ विशेष औषधीय गुण होते हैं, जो शरीर के लिए लाभकारी होते हैं। शरद पूर्णिमा की रात में चंद्रमा की चांदनी में रखी गई खीर में औषधीय गुण आ जाते हैं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से चंद्रमा की किरणें खाद्य पदार्थों पर सकारात्मक प्रभाव डालती हैं, जिससे उनका स्वास्थ्य पर लाभकारी प्रभाव होता है। इस खीर को खाने से पाचन शक्ति में सुधार होता है और शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। शरद पूर्णिमा से शरद ऋतु की शुरुआत होती है। इस समय वातावरण में विशेष प्रकार की ठंडक होती है, जो स्वास्थ्य के लिए लाभकारी मानी जाती है। शरद पूर्णिमा के समय आकाश निर्मल और शुद्ध होता है, जिससे चंद्रमा की किरणों का अधिकतम प्रभाव मानव शरीर पर पड़ता है।

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हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी

   

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