समुदाय-आधारित प्रयासों के महत्व को रेखांकित करता सस्टेना इंडिया प्रदर्शनी शुरू
- Admin Admin
- Feb 05, 2025
![](/Content/PostImages/6512db69aa87a6731efc04bda0ea7691_1723110003.jpg)
नई दिल्ली, 05 फरवरी (हि.स.)। समुदाय-आधारित प्रयासों के महत्व को रेखांकित करता सस्टेना इंडिया प्रदर्शनी शुरू हो गई है। सस्टेना इंडिया अपनी तरह का पहला मंच है, जहां विज्ञान कला के साथ मिलकर सामूहिक जलवायु कार्रवाई को प्रेरित करता है। यह प्रदर्शनी एसटीआईआर आर्ट गैलरी में 01 फरवरी को शुरू हुई है और 16 फरवरी तक चलेगी। यह काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वॉटर (सीईईडब्ल्यू), एशिया के प्रमुख सस्टेनेबिलिटी थिंक टैंक में से एक, और प्रसिद्ध आर्टिस्ट की जोड़ी ठुकराल व टागरा का एक साझेदारीपूर्ण प्रयास है। इस वर्ष सस्टेना इंडिया की थीम, ‘विद द ईच सीड वी सिंग’ है, जो जलवायु चुनौतियों का समाधान करने के लिए समुदाय-आधारित उपायों के महत्व को रेखांकित करती है।
सस्टेना इंडिया के दूसरे संस्करण में तीन फेलो के कार्यों (शुभि सचान- मटेरियल लाइब्रेरी ऑफ इंडिया, पोलुदास नागेंद्र सतीश - कोरा डिज़ाइन कोलैबोरेटिव, और सरस्वती मल्लूवालासा - आरोग्य मिलेट सिस्टर्स) को प्रदर्शित किया गया है। प्रदर्शनी में चंदर हाट, एडिबल इश्यूज जैसे कई अन्य आमंत्रित कलाकार भी हिस्सा ले रहे हैं, जो पानी, भोजन और महिला सशक्तिकरण से जुड़ी कहानियों को विभिन्न प्रकार से कह रहे हैं। सस्टेना इंडिया के दूसरे संस्करण में फिल्म, इंस्टॉलेशन, चित्र, अभिनयात्मक प्रदर्शन और पैनल को भी शामिल किया गया है। इसका उद्देश्य भोजन, कपड़े और कचरे जैसी दैनिक जीवन की वस्तुओं के बारे में हमारी सोच में बदलाव लाना है।
ठुकराल व टागरा, सह-क्यूरेटर, सस्टेना इंडिया ने बताया कि जलवायु संकट तेजी से स्पष्ट होने के साथ सस्टेना इंडिया एक अनूठे मंच के रूप में सामने आया है, जिसे सीईईडब्ल्यू और हम जैसे कलाकारों समेत विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों ने तैयार किया है। अपने दूसरे संस्करण में सस्टेना का उद्देश्य ऐसी पद्धतियों का एक समुदाय बनाना है, जो हमारे समय की गंभीर चुनौतियों का समाधान करने के लिए नए और आवश्यक हस्तक्षेपों को रेखांकित करते हैं। इन प्रयासों के माध्यम से सस्टेना इंडिया का उद्देश्य प्रमुख वैश्विक चुनौतियों को हल करने वाले आवश्यक हस्तक्षेपों को रेखांकित करना और एक सतत भविष्य के लिए सार्थक मार्गदर्शिका उपलब्ध कराना है। तीनों फेलो की पद्धतियां पर्यावरणीय परिवर्तन के प्रति गहरी संवेदनशीलता को दर्शाती हैं, जो उन बारीकियों की पहचान और उनके संबोधित करने पर केंद्रित हैं, जिनकी अक्सर अनदेखी हो जाती है। इनमें शामिल दृष्टिकोण गहरे विमर्श और प्रभावशाली कार्रवाई के लिए रास्ता तैयार करते हैं।”
श्रीनिवास आदित्य मोपिदेवी, सह-क्यूरेटर, सस्टेना इंडिया ने कहा कि सस्टेनेबिलिटी की जटिल भाषा को सरल बनाने और जनता को उन कहानियों व प्रक्रियाओं से परिचित कराने की तत्काल जरूरत है, जो इसके वास्तविक अर्थ की जानकारी देती हैं। सस्टेना का यह संस्करण इस दिशा में एक कदम है। इसमें हम अपने भोजन, कपड़े और कचरे से जुड़ी प्रणालियों की गहरी समझ को सामने लाए हैं। हम समुदाय-आधारित और समुदाय-उन्मुख कार्रवाई का समर्थन करते हैं, जो सभी अवसरों को बदलाव के बीज के रूप में देखती है।
इस बार आगंतुकों को प्रदर्शनी के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन और सस्टेनेबिलिटी पर कहानी के सत्रों, पैनल चर्चाओं, समूह चर्चा, वर्कशॉप, क्विज़ शो और थीमेटिक डे में शामिल होने के अवसर मिलेंगे। सस्टेना इंडिया अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचने के लिए साझेदारियां, खासकर स्कूल और कॉलेज के छात्रों के लिए विशेष सत्र और गतिविधियों के जरिए, भी कर रहा है।
सीईईडब्ल्यू के शोध से पता चलता है कि जलवायु पैटर्न बदल रहा है। भारत के 55 प्रतिशत तहसीलों में, खासकर राजस्थान, गुजरात और मध्य महाराष्ट्र जैसे सूखे क्षेत्रों में, मानसून की बारिश में 10 प्रतिशत से ज्यादा की वृद्धि हुई है। इसके विपरीत 11 प्रतिशत तहसीलों में, जिनमें भारत-गंगा के मैदान के वर्षा-आधारित क्षेत्र शामिल हैं, बारिश में कमी देखी गई है, जो बारिश वितरण में बदलाव की प्रवृत्ति को दिखाता है। जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए नीतियों और नवाचारों में समुदायों को सबसे आगे रखने की जरूरत है। हालांकि, ऐसे कई अवसर भी उभर रहे हैं, जो जॉब्स, डेवलपमेंट और सस्टेनेबिलिटी (रोजगार, विकास और सततशीलता) को ला सकते हैं, जैसे कचरे का पुनर्उपयोग (रियूज) के लिए सर्कुलर इकोनॉमी का लाभ लेना और कपड़ों से लेकर मोटे अनाज तक सस्टेनेबल लाइफस्टाइल व जलवायु अनुकूल कृषि को बढ़ावा देना। हमें अपनी खाद्य प्रणालियों में बदलाव करके उन्हें जलवायु के साथ जोड़ना होगा और अपनी फसल कैलेंडर में जलवायु-अनुकूल बीजों को जोड़ने के लिए निवेश करना होगा। संदर्भ-विशेष के लिए कृषि पद्धतियों को दोबारा जीवित करने में समुदायिक ज्ञान को शामिल करना चाहिए। सस्टेना इंडिया-2 में प्रदर्शित तीन फेलो के कार्य इन्हीं बातों के सैद्धांतिक उदाहरण पेश कर रहे हैं।
---------------
हिन्दुस्थान समाचार / विजयालक्ष्मी