वाराणसी में गंगाघाटों पर नागा संतों का डेरा गुलजार,चहुंओर मिनी कुंभ का नजारा

घाटों पर नागा संत

—प्रयागराज से आने के बाद संतों ने धुनी रमाई,सुरसरि के तट पर रात में साधना,पूरे दिन धर्म -अध्यात्म पर चिंतन,विदेशी पर्यटक भी पहुंच रहे

वाराणसी,10 फरवरी (हि.स.)। प्रयागराज महाकुंभ से काशी आए नागा संतों के चलते उत्तरवाहिनी जान्हवी (गंगा) का किनारा गुलजार है। राजघाट से दशाश्वमेध, प्रयागराज घाट,चेतसिंह किलाघाट,शिवाला,केदारघाट,हरिश्चंद्रघाट और हनुमानघाट के बीच नागा संतों के तम्बुओं में विदेशी पर्यटक भी बैठ कर भारतीय आध्यात्मिक परम्परा को समझने का प्रयास करते देखे गए। पर्यटकों के लिए नागा संतों की खास अंदाज में शरीर में भभूत लगाना,वेशभूषा और साधना में लीन होने का अंदाज भा रहा है । किसी नागा ने रुद्राक्ष की मालाओं को अपने पूरे बदन में लपेटा है। तो किसी की जटा पैरों तक है। घाटों पर लोग बाबाओं के जटाओं की भी सेल्फी ले रहे है। उधर, प्रयागराज से आने के बाद नागा संतों ने विश्राम के बाद अलसुबह से ही अपने तम्बूनुमा अस्थायी डेरे में अपने आराध्य देव की आराधना की। इसके बाद जलपान कर साधना में धुनी रमाई। कई शिविरों में संत भगवान शिव की चालीसा और अन्य धार्मिक पुस्तकें भी पढ़ते रहे। कई तंबुओं में नागा संतों के साथ स्थानीय युवा चिलम में गांजे की 'कश'लगाकर उनकी बातें सुनते रहे। कुछ संत तंबुओं के पास घाटों पर बैठकर कर भी आपस में बातचीत करते रहे। कुछ नागा संतों से मीडिया कर्मी भी बातचीत के लिए जुटे रहे। इसमें सिर्फ चाय पीने वाले जूना अखाड़े के बाबा जोगी दास भी शामिल रहे। लगभग 12 साल से अधिक समय तक सिर्फ चाय ही पीने वाले जोगी बाबा ने अन्न नहीं खाया है। योग के प्रति झुकाव रखने वाले दिनभर में दस लीटर चाय पी जाने वाले जोगी बाबा महाकुंभ से लौटे श्रद्धालुओं में कौतूहल का विषय बने हुए हैं।

हिमालय में साधना करने वाले बाबा बचपन से ही संतों की सेवा करते रहे हैं। काशीपुराधिपति के विवाहोत्सव (महाशिवरात्रि) में भाग लेने और बाबा का दर्शन करने के बाद काशी से सनातनी संस्कृति के प्रचार —प्रसार के लिए रवाना हो जाएंगे। खास बात है कि गंगाघाटों पर संतों के चलते मिनी कुंभ का नजारा है। देश के कोने—कोने से प्रयागराज महाकुंभ में पहुंचे संतों ने पवित्र त्रिवेणी में तीन अमृत स्नानों में भाग लिया। इसके बाद यहां काशी पहुंचे है। इसमें से कोई जूना अखाड़ा, अग्नि अखाड़ा, महानिर्वाणी अखाड़ा से संबधित है तो कोई आवाहन, निरंजनी, अटल अखाड़ों से है। कई नागा संत कश्मीर,हिमाचल,उत्तराखंड के भी हैं।

प्रयागराज महाकुंभ से आए ज्यादातर नागा संत बैजनत्था स्थित जपेश्वर मठ में ठहरे हैं। इसमें आचार्य महामंडलेश्वर, थानापति जैसे ओहदेदार नागा संत भी हैं। जूना अखाड़े के अध्यक्ष श्रीमहंत प्रेम गिरी महाराज की अगुवाई में नागा संत अपने आराध्यदेव की आराधना करने के बाद 12 फरवरी को जपेश्वर मठ से पंचगंगाघाट पर स्नान के लिए शोभायात्रा (पेशवाई) निकालकर पहुंचेंगे। इसके बाद महाशिवरात्रि के दिन गंगा स्नान कर दिगंबर शिव के बारात में भी शामिल होने के साथ बाबा के पावन ज्योर्तिलिंग का दर्शन-पूजन करेंगे।

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हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी

   

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