वेदानुसार वैदिक धर्म और राजनीति साथ-साथ चलते हैं— डॉ जगदेव विद्यालंकार

वेदानुसार वैदिक धर्म और राजनीति साथ-साथ चलते हैं— डॉ जगदेव विद्यालंकार

अजमेर, 19 अक्टूबर(हि.स)। रोहतक के आर्य विद्वान डॉ. जगदेव विद्यालंकार ने कहा कि धर्म राजनीति से अलग नहीं। उन्होंने कहा कि आजकल ''धर्म को राजनीति से अलग रखें, ऐसा कहना प्रगतिशीलता का सूचक माना जाता है जो सिर्फ सामी सम्प्रदायों के लिए ही ठीक है। वेदानुसार वैदिक धर्म और राजनीति साथ-साथ चलते हैं।

महर्षि दयानन्द पहला व्यक्ति- 'आर्यसमाज और राजनीति, विषय पर बोलते हुए डॉ. प्रो. रामचन्द्र कुरुक्षेत्र ने कहा कि आधुनिक काल में महर्षि दयानन्द प्रथम ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने मानव प्रगति व सुख के बाधक सदियों के अंधकार, अंधविश्वास का दूर कर सुपथ दिखाया। सामाजिक सार्थक व्यवस्था के लिए राजनीति का शुद्ध होना अनिवार्य है और राजनीति में धर्म भी अनिवार्य रूप से जुड़ा रहे। बिना यथार्थ वैदिक धर्म के राजनीति भ्रष्ट और सारहीन हो जाती है।

वेदों में राजनीति के सूत्र- वेदों में सर्वजन हितकारी धर्मयुक्त राजनीति के सूत्र हैं जिसकी व्याख्या महर्षि दयानन्द ने अमर ग्रन्थ 'सत्यार्थप्रकाश, के छठे समुल्लास में किया है। इन्हीं सूत्रों को रामायण में श्रीराम के वन में मिलने आए भरत को बताया था। उत्तम धार्मिक चरित्र ही सुखसाधक होता है जो राजनेता पर भी लागू होता है। राजा में कोई बुराई और दुर्व्यसन न हो- महर्षि दयानन्द ने अपने शिष्य उदयपुर के महाराणा सज्जनसिंह को पत्र में लिखा था कि राजा का चरित्र उत्तम धार्मिक होना चाहिए जिसमें कोई बुराई न हो। राज्य में सब जगह विद्यालय व धर्मशाला हो तथा विद्यालय में संस्कृत व वेद अवश्य पढ़ाया जाए। श्रेष्ठ राष्ट्र व समाज का निर्माण श्रेष्ठ राजनेता ही करता है। भ्रष्ट राजनेता राष्ट, समाज को भी भ्रष्ट कर देता है। यथा राजा तथा प्रजा। महर्षि दयानन्द ने महाराणा को मनुस्मृति और विदुर-प्रजागर पढ़ाया था।

भारतीय जनता पार्टी, तेलांगना प्रान्त के संगठन महामन्त्री चन्द्रशेखर ने कहा कि ऋषि मेला भारत को महान उज्ज्वल बनाने की दिशा देगा। चन्द्रशेखर ने कहा कि देश को स्वतन्त्र बनाने के लिए ज्ञानात्मक नेतृत्व महर्षि दयानन्द ने ही स्वतन्त्र बनाने के लिए ज्ञानात्मक नेतृत्व महर्षि दयानन्द ने ही किया था। रामप्रसाद बिस्मिल, सरदार भगतसिंह, लाला लाजपतराय स्वामी श्रद्धानन्द आदि हजारों स्वतन्त्रता सेनानियों के प्रेरक महर्षि दयानन्द ही थे।

महर्षि दयानन्द ने ही देश को अंधविश्वास कुरीतियों से मुक्त किया था। स्वामी जी ने सोये भारत को जगाया व संजीवनी दी।

आर्य प्रतिनिधि सभा राजस्थान के महामंत्री आचार्य जीववर्धन शास्त्री ने कहा कि स्वामी दयानन्द व उनके शिष्य श्रद्धानन्द ने सर्वप्रथम शुद्धि आन्दोलन चलाकर देश को विधर्मी होने से बचाया। आपने कहा कि धर्म के आधार पर देश का विभाजन होने के बाद भी प्रथम और अन्य छह भारत के शिक्षामन्त्री मुस्लिम बनाए गए जिन्होंने साम्यवादियों से देश का झूठा इतिहास लिखवाया।

जीववर्द्धन शास्त्री ने कहा कि यदि महर्षि दयानन्द के शिष्य राजनीति में गए होते तो कुटिल अंग्रेजों व मिशनरियों द्वारा गढ़ा गया झूठ कि आर्य विदेशी आक्रमणकारी थे। स्कूलों में नहीं पढ़ाया जाता। आधुनिक शोध आर्यों के विदेश - आक्रमणकारीनहीं बताते। अपितु आर्य इसी देश भारत के मूल निवासी श्रेष्ठ लोग थे। दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा के महामन्त्री विनय आर्य ने कहा कि महर्षि दयानन्द ने सत्यार्थप्रकाश के छठे समुल्लास में शुद्ध राजनीति के ऊपर जो लिखा वैसा कोई भी आधुनिक धार्मिक नेता ने नहीं लिखा। महर्षि लिखते हैं कि ईश्वर के बाद धार्मिक परोपकारी राजा ही सम्मानीय है।

विनय आर्य ने कहा कि आज जिनकी जनसंख्या ज्यादा होगी वही देश के राजा होंगे। गधों की जनसंख्या अधिक होने पर गधा ही राजा होगा। अत: हमें आज सतर्क हो जाने की जरुरत है। उन्होंने वैदिक धर्मियों को निम्न चार सन्देश दिए-स्वाध्याय, संगठन, संध्या (ईश्वर उपासना) व उत्तम स्वास्थ्य।

सत्र आर्यसमाज और सोशल मीडिया में सुरेशचन्द्र आर्य, डॉ. कुलबीर छिकारा, आचार्य अंकित प्रभाकर, मुनि सत्यजित्, जगदीश शर्मा ने विचार व्यक्त किये।

सत्र आर्यसमाज के गुरुकुल : दशा और दिशा में स्वामी प्रणवानन्द , आचार्य विरजानन्द दैवकरणि, डॉ. योगेन्द्र याज्ञिक, धर्मपाल आर्य, स्वामी ऋतस्पति, आचार्य विजयपाल, आचार्य ऋषिपाल, स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने विचार व्यक्त किये।

सम्मान- स्वामी आशुतोष अध्यापक पुरस्कार गुरुकुल होशंगाबाद के स्वामी ऋतस्पति, आचार्य धनंजय गुरुकुल पौंधा के श्रीमती सुमनलता पुरस्कार, डॉ. निखिल आर्य गुरुकुल गौतम नगर दिल्ली को श्रीमती जमनादेवी रामचन्द्र आर्य विद्वत्त पुरस्कार प्रदान किये गये।

महर्षि दयानन्द की वस्तुओं की प्रदर्शनी बनी आकर्षण का केन्द्र-

ऋषि मेले के अन्तर्गत सरस्वती भवन में आयोजित महर्षि दयानन्द सरस्वती द्वारा काम में ली जाने वाली वस्तुओं व चित्रों की प्रदर्शनी दर्शकों के लिए आकर्षण का केन्द्र बनी। प्रदर्शनी में महर्षि द्वारा लन्दन से खरीदी प्रिन्टिंग मशीन, उदयपुर नरेश व शाहपुरा नरेश द्वारा महर्षि दयानन्द को विदाई के समय भेंट किया गया शॉल, स्वामी जी द्वारा लिखी गई पुस्तकें, उनके द्वारा प्रयोग की गई वस्तुएं जिसमें ताम्र कमंडल, तुम्बा, रेत घड़ी, तराजू, पलड़े, उस्तरा, चिमटी, हस्ताक्षर की मोहर, आचमन पत्रा, दवात, चाकू, हिसाब की बही, सूची पत्र, यज्ञ के विविध कास्ट पत्र इत्यादि प्रदर्शित किए गए हैं। साथ ही स्वामी जी की पुस्तकों के विभिन्न संस्करण, हस्तलिखित ग्रन्थों की प्रतिलिपियां, पत्र व्यवहार एवं महर्षि दयानन्द सरस्वती की स्मृति में भारत सरकार द्वारा प्रकाशित डाक टिकट भी प्रदर्शित किए गए हैं।

सरस्वती भवन में प्रदर्शित महर्षि दयानन्द के जीवन के चित्रों को देख अतिथियों ने महर्षि के बाल्यकाल, वैराग्य, पाखण्ड खण्डिनी पताका, काशी में शास्त्रार्थ, आर्यसमाज स्थापना, उदयपुर में सत्यार्थ प्रकाश लेखन एवं अजमेर में निर्वाण व अन्तिम संस्कार आदि को आत्मसात् किया।

पांच साै आर्यवीरों व वीरांगनाओं ने किया भव्य व्यायाम प्रदर्शन-

सांयकाल पांच साै आर्यवीरों व वीरांगनाओं ने भव्य व्यायाम प्रदर्शन किया। आर्यवीर दल के जिला संचालक विश्वास पारीक के निर्देशन में राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश से आए आर्यवीरों ने संर्वाङ्ग सून्दर व्यायाम, जूडो कराटे, सूर्य नमस्कार, भूमि नमस्कार का संगीतमय प्रदर्शन किया। अन्य गुरुकुलों से आए ब्रह्मचारी-ब्रह्मचारिणियों ने भी इस प्रदर्शन में भाग लिया। लाठी, भाला, तलवार, लेजियम का संगीतमय प्रदर्शन किया साथ ही मलखम्भ, रस्सा मलखम्भ पर अनेक कठिन आसनों का प्रदर्शन व संरचना बनाकर दर्शकों को मन्त्रमूग्ध कर दिया। व्यायाम प्रदर्शन में प्रशिक्षक भागचन्द आर्य, दिनेश आर्य का सहयोग रहा।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सार्वदेशिक आर्यवीर दल के आजीवन संचालक स्वामी देवव्रत, संचालक सत्यवीर शास्त्री, प्रान्तीय संचालक भवदेव आर्य, नगर निगम अजमेर के उपमहापौर नीरज जैन, आर्यवीरांगना दल की प्रान्तिय संचालिका सरोज मालू उपस्थित रहे। राजस्थान के तीस शिक्षक-शिक्षिकाओं का सम्मान भी किया गया। जो राष्ट्रीय स्तर पर प्रक्षिशण प्राप्त कर सेवाएं देने के लिए संगठन के साथ कार्य कर रहे हैं।

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हिन्दुस्थान समाचार / संतोष

   

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